उत्तराखंडः द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर धाम में हर साल लाखों की संख्या में पहुंचते हैं श्रद्धालु

punjabkesari.in Thursday, May 24, 2018 - 04:48 PM (IST)

रुद्रप्रयागः उत्तराखंड में चारधाम यात्रा में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिल रही है। आज भी देवभूमि में आस्था और परम्पराओं के चलते हर साल की तरह देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए दर्शनार्थ पहुंचते हैं। कठिन चढ़ाई होने के बावजूद भी यहां 6 महीने बाबा के प्रति श्रद्धा के कारण श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी रहती है। 

धाम में भगवान शिव के नाभि भाग की होती है पूजा 
जानकारी के अनुसार, केदारनाथ के द्वितीय केदार के रूप में भगवान मद्महेश्वर को जाना जाता है। यह शिव का धाम है और यहां आज भी सभी परम्पराओं का पालन किया जाता है। यहां पर भगवान के मध्यभाग नाभि भाग की पूजा की जाती है। अति कोमल भाग होने के कारण यहां पर पुजारी के अतिरिक्त कोई भी शिवलिंग पर हाथ नहीं लगा सकता।  यहां पर विवाह को बाद भगवान शिव और माता पार्वती ने कैलाश जाने से पहले एक दिन यहां विश्राम किया था। रुद्रप्रयाग जिले के अंतिम गांव गौंडार से करीब 18 किमी की दुर्गम चढ़ाई के बाद मद्महेश्वर धाम आता है। 

शंख की ध्वनि के साथ चलती है भगवान की डोली 
परंपरा के अनुसार, यहां पर बाबा के पहुंचने से पहले कपाट खोल दिए जाते हैं और इस दौरान वहां पर केवल ठौर भंडारी के अतिरिक्त कोई भी मौजूद नहीं रहता। भगवान की डोली देवदर्शनी में इंतजार करती है और जब ठौर भंडारी शंख ध्वनि करते है तब ही डोली और श्रद्धालु धाम में जाते है। मान्यता है कि यहां पर भगवान का बड़ा ताम्र भंडार है और इसकी जानकारी केवल ठौर भंडारी को ही रहती है। भगवान यहां पहुंचकर सबसे पहले अपने भंडार का निरीक्षण करते हैं और अगर एक भी बर्तन कम होता है तो भगवान की डोली अंदर प्रवेश नहीं करती है। इतना ही नहीं डोली के साथ बाध्य यंत्र भी नहीं बजते हैं केवल शंख की ध्वनि के साथ ही भगवान की डोली चलती है। 

हर साल दर्शन के लिए आती हैं उमा भारती 
बाबा मद्महेश्वर को अपने पिता कहने वाली केंद्रीय मंत्री उमा भारती भी यहां हर साल आती है। उमा भारती धाम को अपना मायका मानती है। उनके अनुसार यह सबसे अलौकिक धाम है, जहां पर शिव और पार्वती दोनों मौजूद हैं।

Nitika