उत्तराखंड में अग्रिम जमानत प्रावधान बहाल पर हो रहा है विचार: राज्य सरकार

punjabkesari.in Monday, Oct 22, 2018 - 06:16 PM (IST)

देहरादूनः उत्तराखंड में राज्य सरकार ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि उत्तर प्रदेश की तरह ही वह भी नागरिकों को गिरफ्तारी से पहले राहत प्रदान करने संबंधी अग्रिम जमानत के प्रावधान को बहाल करने के लिए कानून में संशोधन पर विचार कर रही है। न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ को राज्य सरकार के वकील ने सूचित किया कि पिछले महीने ही उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि गिरफ्तारी की आशंका में राहत प्रदान करने संबंधी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 उत्तराखंड में भी लागू होती है।      

राज्य सरकार के वकील ने उच्च न्यायालय के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 लागू है। अग्रिम जमानत का प्रावधान उत्तराखंड में भी है। वकील ने कहा कि सिद्धांत रूप में सरकार इस बात से सहमत है कि नागरिकों को इस धारा का लाभ मिलना चाहिए। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी हाल ही में शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि राज्य विधानसभा ने 1976 में आपातकाल के दौरान निरस्त किए गये अग्रिम जमानत के प्रावधान को बहाल करने के लिए एक संशोधन पारित किया है और इसे राष्ट्रपति की संस्तुति का इंतजार है। शीर्ष अदालत उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अग्रिम जमानत का प्रावधान बहाल करने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान पीठ ने इस तथ्य को नोट किया कि 1976 में एक संशोधन के माध्यम से प्रावधान किया गया था कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 उत्तर प्रदेश में लागू नहीं होगी और उत्तराखंड, जिसका सृजन नवंबर, 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग करके किया गया था, वहां यह स्थिति पूर्ववत बनी रही। 

पीठ ने कहा कि जहां तक उत्तराखंड का संबंध है तो राज्य के उपमहाधिवक्ता ने सूचित किया है कि सरकार उत्तर प्रदेश विधान सभा द्वारा पारित (अग्रिम जमानत का प्रावधान लागू करने संबंधी) संशोधन की तरह ही एक संशोधन करने पर विचार कर रही है। शीर्ष अदालत ने 2008 में उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि राज्य में अग्रिम जमानत का प्रावधान बहाल करने के लिए उचित कदम उठाए और अध्यादेश लाए। उत्तर प्रदेश सरकार कानून में संशोधन कर इसमें अग्रिम जमानत का प्रावधान शामिल करने के लिए 2010 में एक संशोधन विधेयक लाई थी और उसी साल अगस्त में विधानसभा ने इसे पारित किया था लेकिन सितंबर, 2011 में राष्ट्रपति ने इसे लौटा दिया था।   


 

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