चंपावत में अनोखे ढंग से मनाया जाता है रक्षाबंधन, पत्थरबाजी कर एक-दूसरे को करते हैं लहू-लुहान

punjabkesari.in Monday, Aug 27, 2018 - 11:55 AM (IST)

चम्पावत: उत्तराखंड के चंपावत जिले में एक मंदिर में अनोखे ढंग से रक्षा-बंधन का त्योहार मनाया जाता है। रविवार को उत्तर भारत का सुप्रसिद्ध देवीधूरा बग्वाल मेला हर्षोल्लास के साथ संपन्न हो गया। इस बार भी फल-फूलों के साथ पत्थरों की मार लगभग 8 मिनट तक चली। इसमें 110 बग्वाली वीर और दर्शक लहूलुहान हो गए, जिन्हें प्राथमिक उपचार दिया गया। पत्थरबाजी करने के बाद सभी गुट के लोग आपस में गले मिलकर खुशियां मनाते हैं और एक दूसरे का हाल जानते हैं। इस रोमांचक, अदभुत और अकल्पनीय नजारे को हजारों से अधिक दर्शक टकटकी लगाकर देखते रहे।

बाराही धाम में पूजा-अर्चना के बाद जत्थे आने हुए शुरू
जानकारी के अनुसार, रविवार सुबह बाराही धाम में विशेष पूजा-अर्चना के बाद दिन में दोपहर एक बजे से 7 थोकों और 4 खामों के बग्वाली वीरों के जत्थे आने शुरू हो गए। खाम के लोगों ने अलग-अलग रंग की पगड़ियों के साथ मां बाराही के जयघोष के बीच मंदिर और बग्वाल मैदान खोलीखांड द्रुबाचौड की परिक्रमा की। बांस के फर्रों और डंडों के बीच बग्वाली वीर उछल-उछल कर मैदान में रोमांच के साथ जोश और जज्बा पैदा कर रहे थे। सबसे पहले चमियाल खाम और अंत में गहड़वाल खाम का जत्था पहुंचा। इसके बाद वालिक खाम तिरंगे के साथ पहुंचे। 

8 मिनट तक चली पत्थरबाजी
मंदिर छोर पर लमगडिया और बालिक तथा बाजार छोर में गहड़वाल और चमियाल खाम के बग्वाली वीर आमने-सामने आ गए। जैसे ही पुजारी ने शंख और घंट ध्वनि की उतावले बग्वाली वीरों ने फल-फूलों के साथ ही पत्थर चल पड़े। इसके बाद जब पुजारी को आभास हुआ कि एक मानव के बराबर रक्तपात हो गया है तो वह चंवर ढुलाते और मां बाराही के छत्र के साथ मैदान में पहुंचे और शंखध्वनि के साथ बग्वाल बंद करने का ऐलान किया। इसके बाद भी एक-दो मिनट पत्थर उछलते रहे। 2 बजकर 38 मिनट पर बजे शुरु हुई बग्वाल 2 बजकर 46 मिनट यानि 8 मिनट चली। इसमें 60 रणबांकुरों के साथ दर्शक भी लहू-लुहान हो गए, जिनका प्राथमिक उपचार हुआ। वहीं कुछ घायलों का बिच्छू घास लगाकर भी परंपरागत उपचार हुआ।

देश-विदेश से लाखों लोग होते हैं एकत्रित 
बता दें कि परमाणु युग में प्राचीनकालीन सभ्यता का अदभुत नजारा मां बाराही धाम में बग्वाल मेले में देखने को मिलता है। हर साल की भांति इस साल भी अगस्त से शुरू हुए 12 दिवसीय मेले में 26 अगस्त को होने वाली बग्वाल (पत्थर युद्ध) को देखने के लिए लाखों लोग देश-विदेश से आकर परमाणु युग में पाषाण कालीन सभ्यता से रूबरू होने के लिए मां बाराही के धाम में एकत्र होते हैं।


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Nitika

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