बद्रीनाथ धाम में पौराणिक परंपराओं के साथ छेड़छाड़ करने को लेकर अब तक मचा है घमासान

punjabkesari.in Monday, Jun 07, 2021 - 06:46 PM (IST)

देहरादून(कुलदीप रावत): बीते 18 मई को प्रातः 4:15 पर ब्रह्म मुहूर्त में विश्व विख्यात बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद प्रातः प्रतिदिन मंदिर के द्वार खुलने का समय बदलने को लेकर बद्रीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी भुवन उनियाल के बयान के बाद अब नया मोड़ आ गया है।

धर्माधिकारी भुवन उनियाल ने स्पष्ट कहा है कि उन्होंने कपाट खुलने के समय और मुहूर्त को लेकर अपना पक्ष मजबूती के साथ बोर्ड के अधिकारियों के सामने रख दिया था। लेकिन बद्रीनाथ धाम में मौजूद देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के अपर मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह एसओपी का हवाला देकर प्रातः ब्रह्म मुहूर्त की जगह मंदिर को 7 बजे खोलने के अड़ियल रुख पर कायम रहे। धर्माधिकारी का कहना है कि सदियों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक यात्रा काल में कपाट खुलने के बाद मंदिर प्रतिदिन प्रातः ब्रह्म बेला में ही खुलता रहा है। धार्मिक मान्यताओं वह परंपराओं को दरकिनार करते हुए देवस्थानम बोर्ड के अपर मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह द्वारा बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रविनाथ रमन द्वारा चार धाम के लिए जारी  एसओपी का हवाला देकर कपाट को देरी से खोलने का मामला किसी के गले नहीं उतर रहा है। आखिर किसके इशारे पर यह सब किया गया और इसके पीछे अधिकारी मंशा क्या थी यह समझ पाना मुश्किल है।
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क्या है पूरा मामला
इस वर्ष 18 मई को जब भगवान बद्री विशाल के कपाट सुबह ब्रह्म मुहूर्त को खोले गए। उसके बाद से देवस्थानम बोर्ड के द्वारा प्रतिदिन बद्रीनाथ के कपाट ब्रह्म मुहूर्त पर नहीं खोले जा रहे थे और इसके साथ ही सुबह पूजा भी देरी से हो रही थी जिसके बाद पुजारी दिनभर पंचायत के पूजा में हो रही देरी को लेकर भारी विरोध किया जिसके चलते देवस्थानम बोर्ड के अधिकारियों के द्वारा फिर से पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ही विधि विधान से पूजा आरंभ कर दी गई तब से लेकर इस मामले में घमासान मचा हुआ है। बद्रीनाथ धाम भारत के चार धामों में से सर्वश्रेष्ठ धाम के रूप में प्रख्यात है। 6 महीने कपाट खुलने के साथ ही बद्रीनाथ धाम की पूजा व्यवस्था एक विशिष्ट परंपरा वह मान्यता से जुड़ी हुई है, तो ऐसे में बद्रीनाथ धाम की धार्मिक मान्यता व परंपरा को क्या एक एसओपी से बांधा जा सकता है इस पर सवाल खड़े उठना लाजमी है।

उल्लेखनीय है कि 19 मई से 29 मई तक बद्रीनाथ मंदिर के कपाट प्रातः 7 बजे खुलने के बाद जब मामले ने तूल पकड़ा तो फिर कपाट को पुरानी परंपरा के अनुसार प्रातः 4:30 पर खोला जाने लगा। मामले के तूल पकड़ने के बाद बद्रीनाथ सहित उत्तराखंड के चारो धाम की पूजा व्यवस्था से जुड़े हुए तीर्थ पुरोहितों ने जब इसका प्रबल विरोध किया तो देवस्थानम बोर्ड के अधिकारी  कभी अभिषेक के लिए दूध, तो कभी टेहरी नरेश के 1970 से लेकर 1975 तक की व्यवस्था की मनगढ़ंत कहानी अपने बचाव के लिए गढ़ते नजर आ रहे हैं। बद्रीनाथ धाम के पुजारी समुदाय कि बद्रीनाथ डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत के अध्यक्ष राकेश कुमार डिमरी व कार्यकारी अध्यक्ष विनोद डिमरी श्रीराम ने बोर्ड के इस अधिकारी द्वारा एसओपी का हवाला देकर लिए गए निर्णय पर हैरानी जताते हुए कहा कि इससे पूर्व बद्रीनाथ मंदिर के पुजारी समुदाय, हकहकूक धारियों व मुख्य पुजारी रावल के संज्ञान में यह विषय लाया जाना चाहिए था। लेकिन अधिकारी द्वारा मान्यताओं और परंपराओं को किनारे रखकर मंदिर को 7 बजे खोलने का फरमान जारी कर दिया।

पंचायत के अध्यक्ष राकेश कुमार डिमरी,कार्यकारी अध्यक्ष विनोद डिमरी श्रीराम ने सरकार से बद्रीनाथ धाम के संदर्भ में इस विवाद को जन्म देने वाले जिम्मेदार अधिकारियों  के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। पंचायत अध्यक्ष ने कहा कि बद्रीनाथ डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत पूरी तरीके से प्राचीन काल से चली आ रही बद्रीनाथ धाम की पौराणिक, धार्मिक मान्यता व परंपराओं के निर्वहन के लिए प्रतिबद्ध है। पंचायत का स्पष्ट मत है कि श्री बदरीनाथ धाम की पौराणिक मान्यता व पारंपरिक रीति रिवाज भगवान बद्री विशाल की अखंड ज्योति की तरह ही जीवंत रहनी चाहिए।


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Nitika

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