देवस्थानम बोर्ड के अपर मुख्य कार्य अधिकारी के बयान से डिमरी समाज में उबाल

punjabkesari.in Friday, Jun 18, 2021 - 12:27 PM (IST)

 

देहरादून(कुलदीप रावत): उत्तराखंड में बीते 18 मई को बद्रीनाथ धाम के कपाट प्रातः 4:15 पर ब्रह्म बेला में खुलने के बाद 19 मई से 29 मई तक बद्रीनाथ धाम की पौराणिक मान्यता व परंपरा के विपरीत कपाट देरी से 7:00 बजे खोलने का मामला अभी थमा भी नहीं था कि देवस्थानम बोर्ड के अपर मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह का एक बयान के बाद फिर इस मामले ने तूल पकड़ लिया है।

इस मामले में बद्रीनाथ धाम के पुजारी समुदाय बद्रीनाथ डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत ने जब इस विवाद को जन्म देने वाले देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीडी सिंह के खिलाफ सरकार से कार्रवाई की मांग की, तो बीडी सिंह ने अब अपने बचाव के लिए नया तर्क देकर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। बीडी सिंह का कहना है कि डिमरी समाज में वह लोग उसका विरोध कर रहे हैं, जिनको बद्रीनाथ धाम में पूजा का अधिकार ही नहीं है।

बीडी सिंह ने यहां तक कह डाला कि पंचायत के अध्यक्ष पूजा के अधिकारी नहीं है। डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत की ओर से जारी प्रेस नोट में बद्रीनाथ धाम में पूजा समय बदलने को लेकर किए गए विरोध करने वालों में पंचायत के अध्यक्ष राकेश कुमार डिमरी, कार्यकारी अध्यक्ष विनोद डिमरी श्रीराम, केंद्रीय पंचायत के सदस्य विनय डिमरी "विपुल", प्रकाश चंद्र डिमरी, गोवर्धन प्रसाद डिमरी, परवेज डिमरी, संजय डिमरी, भास्कर डिमरी, कमलेश डिमरी,सुभाष डिमरी आदि के नाम शामिल है। ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि जिन लोगों को पूजा का अधिकार ही नहीं है तो आखिर बीते वर्ष 2020 में डिमरी पंचायत द्वारा देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को सौंपी गई। पुजारियों की सूची के अनुसार, अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी के हस्ताक्षर से जारी आदेश के बाद किस आधार पर विनय डिमरी विपुल, प्रकाश चंद डिमरी व अन्य को पूजा करने का अधिकार सौंपा गया...?

उल्लेखनीय है कि यात्रा काल 2020 में इस अधिकारी के हस्ताक्षर द्वारा जारी किए गए आदेश के अनुसार ही विनय डिमरी विपुल बद्रीनाथ धाम में भितला बड़वा व प्रकाश चंद्र डिमरी लक्ष्मी बड़वा के पूजा कार्य को संपादित कर रहे थे। केंद्रीय पंचायत अध्यक्ष राकेश कुमार डिमरी भी वर्ष 2018 की सूची के अनुसार बद्रीनाथ मंदिर में पूजा कार्य में अपना योगदान दे चुके हैं। प्रातः बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खोलने की परंपरा को तोड़कर चर्चा में आए अधिकारी बीडी सिंह अब अपने किए हुए पर पर्दा डालने व शासन की कार्रवाई के शिकंजे से बचने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे।
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आखिर क्या था या पूरा मामला....
बीते 18 मई को बद्रीनाथ धाम के कपाट प्रातः 4:15 पर ब्रह्म बेला में खुलने के बाद 19 मई 29 मई तक कपाट 7:00 बजे खोलने के मामले ने तूल पकड़ा था और बद्रीनाथ समेत चारों धामों के तीर्थ पुरोहित, पंडा समाज व पुजारियों ने इसका कड़ा विरोध किया था। कपाट खुलने के बाद प्रातः प्रतिदिन मंदिर के द्वार खुलने का समय बदलने को लेकर बद्रीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी भुवन उनियाल के बयान के बाद अब नया मोड़ आ गया था। धर्माधिकारी भुवन उनियाल ने स्पष्ट कहा है कि उन्होंने कपाट खुलने के समय और मुहूर्त को लेकर अपना पक्ष मजबूती के साथ बोर्ड के अधिकारियों के सामने रख दिया था। लेकिन बद्रीनाथ धाम में मौजूद देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के अपर मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह एसओपी का हवाला देकर प्रातः ब्रह्म मुहूर्त की जगह है मंदिर को 7:00 बजे खोलने के अड़ियल रुख पर कायम रहे। धर्माधिकारी के साथ ही अपर धर्माधिकारी, वेदपाठी का कहना है कि सदियों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक यात्रा काल में कपाट खुलने के बाद मंदिर प्रतिदिन प्रातः ब्रह्म बेला में ही खुलता रहा है। इतना ही नहीं स्वयं बद्रीनाथ के मुख्य पुजारी रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदिरि के द्वारा भी बीडी सिंह के 7:00 बजे मंदिर खोलने के फरमान का विरोध कर दिया गया था।

धार्मिक मान्यताओं वह परंपराओं को दरकिनार करते हुए देवस्थानम बोर्ड के अपर मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह द्वारा बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रविनाथ रमन द्वारा चार धाम के लिए जारी एसओपी का हवाला देकर कपाट को देरी से खोलने का मामला किसी के गले नहीं उतर रहा है। आखिर किसके इशारे पर यह सब किया गया और इसके पीछे अधिकारी की मंशा क्या थी यह समझ पाना मुश्किल है। बद्रीनाथ धाम भारत के चार धामों में से सर्वश्रेष्ठ धाम के रूप में प्रख्यात है। 6 महीने कपाट खुलने के साथ ही बद्रीनाथ धाम की पूजा व्यवस्था एक विशिष्ट परंपरा वह मान्यता से जुड़ी हुई है, तो ऐसे में बद्रीनाथ धाम की धार्मिक मान्यता व परंपरा को क्या एक एसओपी से बांधा जा सकता है। इस पर सवाल खड़े उठना लाजमी है।

उल्लेखनीय है कि 19 मई से 29 मई तक बद्रीनाथ मंदिर के कपाट प्रातः 7:00 बजे खुलने के बाद जब मामले ने तूल पकड़ा तो फिर कपाट को पुरानी परंपरा के अनुसार प्रातः 4:30 पर खोला जाने लगा। देवस्थानम बोर्ड के यह अधिकारी कभी अभिषेक के लिए दूध, तो कभी टेहरी नरेश के 1970 से लेकर 1975 तक की व्यवस्था की मनगढ़ंत कहानी अपने बचाव के लिए गढ़ते नजर आ रहे हैं। धार्मिक परंपरा एवं मान्यता को लेकर इतनी फजीहत होने के बाद भी अंबानी जैसे उद्योग घरानों से गहरे तार जुड़े होने के कारण सरकार भी इस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने से अभी तक बच रही है लेकिन डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत इस मामले को लेकर लॉकडाउन खुलने के बाद बड़ा आंदोलन करने की तैयारी में जुट गई है। साथ ही इस मामले को लेकर न्यायालय की शरण में भी जाने की तैयारी कर रही है।


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Nitika

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