यमुनोत्री में श्रद्धालुओं को मिलेगा अादि भोग प्रसाद, महिलाएं कर रही तैयार

punjabkesari.in Monday, Apr 16, 2018 - 06:22 PM (IST)

उत्तरकाशी(आशीष मिश्रा): उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की ओर से चारधाम सहित अन्य मंदिरों में स्थानीय उत्पाद से तैयार प्रसाद बिक्री की घोषणा से इस कार्य में लगे समूहों और इनसे जुड़ी महिलाओं के स्वरोजगार की उम्मीद मजबूत होती दिखाई दे रही हैं। 

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने ‘देवभोग’ नाम से इस प्रसाद की घोषणा की है लेकिन उत्तरकाशी की एक संस्था वर्ष 2010 से ‘आदिभोग’ नाम से यमुनोत्री धाम में स्थानीय उत्पादों से तैयार प्रसाद को बढ़ावा देने की मुहिम में जुटी हैं। यमुनोत्री धाम में इस बार मंदिक समिति के तीर्थ पुरोहितों का सहयोग मिला तो देश विदेश से आने वाले तीर्थयात्रियों को रिंगाल की टोकरी में कुट्टू और चौलाई के आटे से तैयार अदिभोज प्रसाद मिलेगा। प्रसाद की टोकरी में एक स्टोन पर पेंटिंग किया यमुनोत्री मंदिर की फोटो भी मिलेगी। संस्था हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान जाड़ी ने वर्ष 2010 में यमुनोत्री धाम से लगे बीफ, खरसाली, कुथनौर और हलना तथा गंगा घाटी के  महिलाओं के 10 स्वयं सहायता समूह तैयार किए। 

महिलाओं ने कुट्टू और चौलाई के लड्डू के साथ ही बायोमास कायले और केदारपाती आदि स्थानीय उत्पादों से धूपबती और रिंगाल की कंडी बनाई गई है। प्रसाद में शामिल लड्डू करीब 6 महीनों तक खराब नहीं होता। संस्था के प्रमुख द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने बताया कि सरकार के सहयोग से वर्ष 2014 में खरसाली में 5 लाख रूपए लागत से कलक्शन सेंचर बनाया गया। आदिभोग पर करीब 70 रूपए लागत आती है और यह 101 रूपए की दर से तीर्थयात्रियों कोे बेचा जाता है। यात्रा सीजन के दौरान यमुनोत्री धाम में हर साल करीब डेढ़ लाख रूपए का प्रसाद बिका, जिससे प्राप्त मुनाफा समूह से जुड़ी 75 महिलाओं में बांटा। 

महिलाओं का कहना है कि वह लोग बीते 7 साल में स्थानूीय उत्पादों से प्रसाद तैयार कर रही हैं लेकिन अभी तक सरकार का अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने से प्रसाद को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा था। उन्होंने कहा कि अब जब मुख्यमंत्री ने घोषणा की दी है तो निश्चित रूप से इस प्रसाद की खपत बढ़ेगी। यमुनोत्री धाम में तीर्थपुरोहितों के सहयोग से आदिभोग प्रसाद तीर्थयात्रियों तक प्रसाद के रूप में पहुंचता है तो देश-विदेश यहां के आदिभोग प्रसाद की अलग पहचान बनने के साथ ही रिंगाल से लेकर कुट्टू और चौलाई का उत्पादन करने वाले किसानों तथा आदिभोग प्रसाद बनाने के लिए जुटे समूह के रोजगार के साधन ओर बढ़ सकते हैं। 

 

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