अयोध्या पर 'सुप्रीम' फैसले को लेकर जानिए किसने क्या दी दलील

punjabkesari.in Saturday, Nov 09, 2019 - 10:03 AM (IST)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में शनिवार को अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाएगा। न्यायालय की वेबसाइट पर एक नोटिस के माध्यम से शुक्रवार की शाम दी गई जानकारी के अनुसार प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ शनिवार को सवेरे साढ़े दस बजे फैसला सुनाएगी। संविधान पीठ ने 16 अक्तूबर को इस मामले की सुनवाई पूरी की थी। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों मेंन्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं। जानिए इस फैसले को लेकर किसने क्या दी दलील है।


 

निर्मोही अखाड़ा  

  • निर्मोही अखाड़े ने सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि जो लोग अयोध्या की विवादित जमीन पर राम मंदिर बनाना चाहते हैं, उनका दावा है कि बाबर के सूबेदार मीर बाकी ने वहां पर राम मंदिर के बनाए किले को तोड़कर मस्जिद बनवाई थी। 
     
  • निर्मोही अखाड़े ने कहा था कि जो लोग राम मंदिर के पक्ष में हैं उनका दावा है कि राम ने जो किला बनवाया था उस पर बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने 1528 में बाबरी मस्जिद बनवाई।
     
  • निर्मोही अखाड़े की तरफ से जिरह करते हुए वरिष्ठ वकील सुशील कुमार जैन ने सर्वोच्च न्यायलय से निचली अदालत में पेश कुछ दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा था कि राम जन्मभूमि पर निर्मोही अखाड़े का हक है और जमीन उन्हें दी जानी चाहिए।
     
  •  जैन ने कहा था कि मस्जिद का भीतर वाला गुंबद भी निर्मोही अखाड़ा का ही है। उन्होंने यह भी कहा था कि सैकड़ों वर्षों से विवादित जमीन के भीतर के आंगन और राम जन्मस्थान पर हमारा (निर्मोही अखाड़े का) कब्जा था। 
     


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रामलला विराजमान 

  • वरिष्ठ वकील के. परासरन ने राम लला (जिन्हें राम लला विराजमान भी कहते हैं) की तरफ से बहस की। उन्होंने तर्क रखा कि वाल्मीकि रामायण में कम से कम तीन जगह इस बात का जिक्र है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। 
     
  •  के. परासरन ने कहा था कि जन्मस्थान ठीक वही जगह नहीं जहां पर भगवान राम का जन्म हुआ, बल्कि उसके आसपास की जमीन भी उसी दायरे में आती है। इसलिए पूरा इलाका ही जन्मस्थान है।  
     
  • राम लला की तरफ से वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथ ने कहा कि 16 दिसम्बर 1949 को मुसलमानों ने वहां पर आखिरी बार नमाज पढ़ी थी। इसके 6 दिन बाद 22 दिसम्बर 1949 को वहां मूर्तियां रखी गईं।


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मुस्लिम पक्षकार 

  • एएसआई की रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्ष ने ऐतराज जताया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के वकील डॉक्टर राजीव धवन और मीनाक्षी अरोड़ा से पूछा था कि अगर पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट में खामियां थीं, तो मुस्लिम पक्षकारों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान इस पर सवाल क्यों नहीं उठाया था। 
     
  • डॉ. राजीव धवन ने इसके जवाब में कहा था कि हम ने निश्चित ही एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल उठाए थे, लेकिन तब माननीय उच्च न्यायालय ने कहा था कि हम इसे जिरह के आखिर में सुनेंगे, लेकिन फिर वह कभी नहीं हुआ।
     
  •  धवन ने तर्क दिया था कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि के मालिकाना हक (जमीन विवाद) में मुस्लिम पक्ष को 1934 से हिंदू पक्ष ने नमाज अदा नहीं करने दी थी।  

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Edited By

Anil dev

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