शरीर पर भस्म, कानों में कुंडल....नागा साधु करते हैं 17 शृंगार, Mahakumbh में बने आकर्षण का केंद्र
punjabkesari.in Friday, Jan 17, 2025 - 04:01 PM (IST)
Mahakumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में नागा साधु विशेष आकर्षण का केंद्र बन रहें हैं। इन साधुओं का शृंगार, रहन-सहन और परंपराएँ न केवल आध्यात्मिकता की प्रतीक हैं, बल्कि इनकी अद्भुत जीवनशैली भी लोगों के लिए आकर्षण का कारण बनती है। खासतौर पर शाही स्नान के दिन, जब ये साधु पूरी तरह शृंगारित होकर स्नान करने जाते हैं, तो उनका रूप देखने लायक होता है।
नागा साधु 16 नहीं बल्कि 17 शृंगार करते हैं। पत्रकार और लेखक धनंजय चोपड़ा की किताब "भारत में कुंभ" में नागा साधुओं के 17 शृंगारों का विस्तृत विवरण दिया गया है। इन शृंगारों का हर एक पहलू भगवान शिव से जुड़ा हुआ है और इनका आध्यात्मिक महत्व भी बहुत गहरा है। आइए जानते हैं नागा साधुओं के 17 शृंगार....
भभूत या भस्म
नागा साधु स्नान के बाद श्मशान से प्राप्त राख से भभूत तैयार करते हैं और इसे पूरे शरीर पर लगाते हैं। यह भभूत भगवान शिव के श्मशानवासी स्वरूप का प्रतीक माना जाता है। श्रद्धालुओं को भी यह प्रसाद के रूप में दी जाती है।
लंगोट या कौपीन
नागा साधु लंगोट या कौपीन पहनते हैं, जो ब्रह्मचर्य और तपस्या के प्रतीक होते हैं। यह भगवान शिव के रुद्रांश हनुमान जी द्वारा पहना गया वस्त्र है।
रुद्राक्ष
रुद्राक्ष को भगवान शिव की आंखों से गिरा जल माना जाता है। यह भगवान शिव का प्रतीक है, और साधु इसे गले, हाथों या शरीर पर धारण करते हैं।
चंदन, रोली और हल्दी
नागा साधु माथे पर चंदन, रोली और हल्दी का तिलक करते हैं, जिससे त्रिपुंड (तीन रेखाएं) बनती हैं। यह त्याग और तपस्या का प्रतीक है।
लोहे का छल्ला
नागा साधु अपने पैरों में लोहे का छल्ला पहनते हैं, जो उनके तप की दृढ़ता का प्रतीक होता है।
हाथ में कड़ा
कड़ा एक प्रमुख आभूषण है, जिसे साधु अपने हाथों में पहनते हैं। यह लोहे, पीतल या चांदी से बना होता है।
अंगूठी
साधु रत्नजड़ित अंगूठियां पहनते हैं और अपनी जटाओं में मोतियों से सजी सामग्री भी लगाते हैं।
कुंडल
कानों में कुंडल पहनना भी उनके शृंगार का हिस्सा है, जो चांदी या अन्य धातु से बने होते हैं।
फूलों की माला
साधु गेंदे और अन्य फूलों की मालाओं से अपनी जटाओं, गले और कमर को सजाते हैं।
जटा
जटा बांधना नागा साधुओं के शृंगार का सबसे अहम हिस्सा है। यह भगवान शिव का प्रतीक मानी जाती है, और इन्हें कभी नहीं काटा जाता, सिवाय अपने गुरु की मृत्यु के समय।
पंचकेश
यह पांच प्रकार की जटाओं का समूह होता है, जिसे साधु हमेशा अपने साथ रखते हैं।
काजल या सूरमा
आंखों में काजल या सूरमा लगाना उनके शृंगार का एक महत्वपूर्ण अंग है।
अर्धचंद्र
भगवान शिव के प्रतीक के रूप में नागा साधु सिर पर चांदी का अर्धचंद्र धारण करते हैं।
डमरू
डमरू भगवान शिव का प्रतीक है, जिसे साधु अपने पास रखते हैं। इसका नाद व्याकरण की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है।
चिमटा
चिमटा नागा साधुओं के शृंगार में जरूरी अंग होता है, जिसे वे धूनी रमाने और आशीर्वाद देने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
गंडा
गंडा नागा साधु के गुरु की उपस्थिति का प्रतीक होता है, जिसे वे हमेशा धारण करते हैं।
अस्त्र-शस्त्र
नागा साधु अपने साथ अस्त्र-शस्त्र रखते हैं, जैसे फरसा, तलवार, त्रिशूल और लाठी। ये सभी भगवान शिव के अस्त्र हैं और उनके शौर्य का प्रतीक माने जाते हैं।