1991 में हुई थी नियुक्ति, 2025 में मिलेगा वेतन… कोर्ट ने DIOS ऑफिस को नीलाम कर शिक्षक को सैलरी देने का दिया आदेश
punjabkesari.in Thursday, Sep 04, 2025 - 10:47 PM (IST)

Basti News: उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में एक ऐतिहासिक फैसला सामने आया है, जिसमें कोर्ट ने जिला विद्यालय निरीक्षक (DIOS) कार्यालय को नीलाम करने का आदेश दिया है। नीलामी से प्राप्त राशि से 27 वर्षों से वेतन से वंचित सरकारी शिक्षक चंद्रशेखर सिंह को उनका बकाया भुगतान किया जाएगा। इस फैसले को न्याय व्यवस्था की बड़ी जीत और ब्यूरोक्रेसी की लापरवाही के खिलाफ एक मिसाल माना जा रहा है।
क्या है पूरा मामला?
1991 में हुई थी नियुक्ति, बाकी को मिला वेतन, एक को नहीं
8 जुलाई 1991 को बस्ती के नेशनल इंटर कॉलेज हरैया में प्रबंधन समिति द्वारा 5 प्रवक्ताओं की नियुक्ति की गई थी। इन्हीं में से एक थे चंद्रशेखर सिंह, जो अयोध्या जनपद के सोहावल तहसील के अरथर गांव के निवासी हैं। नियुक्ति प्रक्रिया पूरी तरह विधिसम्मत थी और DIOS से स्वीकृति भी प्राप्त थी। हालांकि, नियुक्त शिक्षकों में से चार को नियमित वेतन मिलता रहा, लेकिन चंद्रशेखर सिंह को वेतन से वंचित कर दिया गया।
1998 में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
लगातार प्रयासों के बावजूद जब कोई समाधान नहीं मिला, तो वर्ष 1998 में चंद्रशेखर सिंह ने सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल की। 2005 में कोर्ट ने DIOS को आदेश दिया कि शिक्षक को 14,38,104 रुपए की बकाया सैलरी तथा भविष्य में सभी देय वेतन व सुविधाएं नियमित रूप से दी जाएं।
आदेश के बावजूद नहीं मिला वेतन, खाता सीज
कोर्ट के आदेश को दरकिनार करते हुए वेतन का भुगतान नहीं किया गया। इसके बाद 2006 में कोर्ट ने अवमानना का संज्ञान लेते हुए DIOS का खाता सीज कर दिया। इसके बावजूद जब वेतन नहीं मिला, तो शिक्षक ने उच्च न्यायालय सहित सभी मंचों पर अपनी लड़ाई जारी रखी, लेकिन अधिकारी टस से मस नहीं हुए।
अब ऑफिस की नीलामी से होगी सैलरी का भुगतान
सिविल जज (जूनियर डिवीजन) सोनल मिश्रा की अदालत ने अब कठोर रुख अपनाते हुए DIOS कार्यालय की भूमि कुर्क करने का आदेश दिया।
- 1 अगस्त 2025 को कोर्ट ने नीलामी का आदेश पारित किया
- 24 सितंबर को नीलामी नोटिस जारी हुआ
- 4 अक्टूबर को होगी नीलामी
- ऑफिस की न्यूनतम बोली ₹14,38,104 रखी गई है
बेटे की आपबीती: घर टूटा, मां का इलाज नहीं हुआ, पढ़ाई छूटी
पीड़ित शिक्षक के बेटे अनुराग सिंह ने कहा कि इस संघर्ष के कारण पूरा परिवार प्रभावित हुआ। “हम दोनों भाई सिर्फ हाईस्कूल तक पढ़ पाए। मां की इलाज के अभाव में मौत हो गई। घर भी टूट चुका है। खेती से ही खर्च चला।” उन्होंने कोर्ट के फैसले को "न्याय की ऐतिहासिक जीत" बताया और उम्मीद जताई कि अब उन्हें उनका हक मिलेगा।