गाज़ियाबाद में उपभोक्ता की जीत! 5 रुपये के लिए 23 महीने की कानूनी लड़ाई, अब ‘RedBus’ को देना होगा 1000 गुना हर्जाना
punjabkesari.in Friday, Sep 19, 2025 - 04:33 PM (IST)

Ghaziabad News: कहते हैं न्याय के लिए अगर इरादा मजबूत हो, तो कोई रकम छोटी नहीं होती। गाजियाबाद के एक अधिवक्ता ने सिर्फ 5 रुपये की वापसी के लिए करीब 2 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी, और आखिरकार जीत हासिल की। जिला उपभोक्ता फोरम ने फैसला सुनाते हुए ऑनलाइन टिकट बुकिंग प्लेटफॉर्म RedBus को सेवा में लापरवाही का दोषी माना और 5 रुपये की रकम के साथ-साथ 5000 रुपये का हर्जाना चुकाने का आदेश दिया।
क्या है पूरा मामला?
गोविंदपुरम, गाजियाबाद निवासी अधिवक्ता नरेश कुमार ने 17 अगस्त 2023 को रेडबस ऐप से राजस्थान रोडवेज की एक बस बुक की थी, जो आनंद विहार (दिल्ली) से भिवाड़ी (राजस्थान) जानी थी। टिकट की कीमत लगभग 97 रुपये थी, और उन्हें टिकट व्हाट्सएप और ईमेल के माध्यम से मिल गया। टिकट में बोर्डिंग पॉइंट सिर्फ "दिल्ली" लिखा था, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हुई। जब नरेश ने रेडबस कस्टमर केयर से संपर्क किया, तो उन्हें आश्वासन दिया गया कि बस आनंद विहार से ही चलेगी। लेकिन जब वे अगले दिन सुबह 8 बजे आनंद विहार पहुंचे, तो उन्हें बताया गया कि वहां से भिवाड़ी के लिए कोई बस नहीं जाती। इससे उन्हें मानसिक कष्ट हुआ।
RedBus ने लौटाई थी टिकट की रकम, लेकिन...
घटना के बाद रेडबस ने लगभग 92 रुपये टिकट के वापस कर दिए, लेकिन बाकी 5 रुपये की कटौती को लेकर नरेश कुमार ने अक्टूबर 2023 में उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया। रेडबस ने न तो कोई जवाब दिया और न ही फोरम की कार्यवाही में भाग लिया, जिससे मामला एकतरफा मान लिया गया। वहीं, राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम ने स्पष्ट किया कि बोर्डिंग पॉइंट की जानकारी देना उनकी जिम्मेदारी नहीं है क्योंकि रेडबस एक थर्ड पार्टी एप्लिकेशन है।
फोरम का फैसला – उपभोक्ता की जीत
जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष प्रवीण कुमार जैन ने निर्णय में रेडबस को सेवा में कमी और अनुचित व्यापार का दोषी माना। उन्होंने 45 दिनों के भीतर, 5 रुपये की कटौती की वापसी, 5000 रुपये मुकदमे में हुए खर्च के तौर पर चुकाने का आदेश दिया।
प्रतिक्रिया और संदेश
यह मामला भले ही मामूली रकम का हो, लेकिन यह उपभोक्ताओं के अधिकारों को लेकर बड़ा संदेश देता है। अगर आप सही हैं, तो लड़ाई का हर कदम जायज़ है, चाहे वह 5 रुपये के लिए ही क्यों न हो।