हाईकोर्ट महाधिवक्ता इमारत में अनियमितता की विजिलेंस से जांच का निर्देश

punjabkesari.in Wednesday, Jan 31, 2018 - 02:23 PM (IST)

इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने महाधिवक्ता कार्यालय भवन निर्माण में अनियमितता, फंड के उपयोग व सुविधाओं के अनुपयोगी होने के घपले की विजिलेंस जांच का निर्देश दिया है। न्यायालय ने महानिदेशक विजिलेंस को अपनी निगरानी में वरिष्ठ अधिकारी या टीम के जरिए जांच कर 2 माह में प्रगति रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने कहा है कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती महानिदेशक को बगैर न्यायालय की अनुमति लिए हटाया न जाए।

न्यायालय ने मुख्य सचिव एवं प्रमुख सचिव गृह को इस मामले में सरकार हस्तक्षेप न करे, इस पर ध्यान देने को कहा है। न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति शशिकान्त की खंडपीठ ने शामली के मंशाद और अन्य की याचिका पर यह आदेश दिया। याचिका में अवैध खनन पर एडीएम राजस्व द्वारा जारी 1,04,202 रूपए की रायल्टी व पांच गुना अर्थदंड वसूली नोटिस की वैधता को चुनौती दी गई थी। न्यायालय ने हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए याचिका खारिज कर दी है लेकिन याचिका जांच रिपोर्ट पर विचार के लिए 2 माह बाद पेश होगी।

न्यायालय ने शुरूआती दौर में याचिका पर सरकार से जवाब मांगा था। कई बार समय दिए जाने के बावजूद जवाब न आने और सही जानकारी न देने पर अदालत ने प्रमुख सचिव विधि को तलब कर हलफनामा मांगा। प्रमुख सचिव न्यायालय में हाजिर हुए और स्वीकार किया कि इलाहाबाद स्थित महाधिवक्ता कार्यालय की स्थिति ठीक नहीं है। लिफ्ट खराब है, भवन निर्माण भी दोषपूर्ण है, करोड़ों रूपए का जनरेटर कार्य नहीं कर रहा है। अन्य सुविधाओं की कमी है।

भवन निर्माण एजेंसी ने अभी तक भवन पर औपचारिक कब्जा नहीं सौंपा है इसलिए सरकार रखरखाव का फंड नहीं दे पा रही है। न्यायालय ने कहा कि भवन निर्माण और सुविधाएं देने में भारी धनराशि खर्च की गई है। 9 मंजिले महाधिवक्ता भवन की 2 लिफ्ट में से एक खराब है। जनरेटर कभी चला ही नहीं। सुविधाओं के ठीक से काम न करने के चलते न्यायालय में सरकारी फाइलें समय से नहीं आ पा रही है। उच्च न्यायालय ने कहा कि गंभीर अनियमितता हुई है। संभव है फंड का सही उपयोग नहीं हुआ। फंड का भवन निर्माण में सही खर्च न होना गंभीर मसला है, जिसकी विजिलेंस जांच जरूरी है।