जब अपनों ने छोड़ा, तब इंसानियत बनी मां-बाप — ठेले पर शव, मासूमों की पुकार और दो मुस्लिम फरिश्ते
punjabkesari.in Thursday, Aug 28, 2025 - 11:42 AM (IST)

Maharajganj News: उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले में इंसानियत को झकझोर देने वाली एक बेहद दर्दनाक घटना सामने आई है। जहां नौतनवा कस्बे में 3 मासूम बच्चे अपने पिता के शव को ठेले पर रखकर 2 दिन तक अंतिम संस्कार के लिए भटकते रहे, लेकिन ना रिश्तेदारों ने मदद की और ना ही पड़ोसियों ने। श्मशान और कब्रिस्तान दोनों जगह से उन्हें लौटा दिया गया। आखिर में दो मुस्लिम युवकों ने सामने आकर इंसानियत की मिसाल पेश की और पूरे हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार कराया।
पिता की मौत, पहले ही गुजर चुकी थी मां
नौतनवा के राजेंद्र नगर मोहल्ले के रहने वाले लव कुमार पटवा की शनिवार को लंबी बीमारी के बाद मौत हो गई। उनकी पत्नी का 6 महीने पहले ही निधन हो चुका था। अब परिवार में सिर्फ उनके 3 बच्चे – 14 साल का राजवीर, 10 साल का देवराज और एक छोटी बहन ही रह गए हैं।
मदद की उम्मीद में दो दिन तक रखा शव
बच्चों को उम्मीद थी कि कोई रिश्तेदार या पड़ोसी मदद करेगा, लेकिन किसी ने हाथ नहीं बढ़ाया। मजबूर होकर बच्चों ने पिता के शव को उसी ठेले पर रखा, जिस पर उनके पिता कभी काम करते थे और अंतिम संस्कार के लिए निकल पड़े।
श्मशान और कब्रिस्तान – दोनों जगह से भगाया गया
बच्चे जब श्मशान घाट पहुंचे तो वहां के लोगों ने कहा कि लकड़ी नहीं है, इसलिए अंतिम संस्कार नहीं हो सकता। बच्चों ने कहा कि शव को दफनाने की अनुमति दे दीजिए, लेकिन श्मशान पर मौजूद लोग बोले कि यहां दफन नहीं होता जलाया जाता है। इसके बाद बच्चे कब्रिस्तान पहुंचे, लेकिन वहां भी उन्हें कह दिया गया कि यह हिंदू का शव है, यहां नहीं हो सकता और बच्चों को लौटा दिया गया।
सड़क पर मदद के लिए भीख मांगी, लेकिन किसी ने नहीं सुनी
बच्चे पिता का शव ठेले पर लेकर सड़कों पर घूमते रहे। भीख मांगकर अंतिम संस्कार का इंतजाम करना चाहा, लेकिन राहगीरों ने उन्हें देखकर नजरअंदाज कर दिया। कुछ लोगों ने तो यह तक कहा कि ये बच्चे भीख मांगने का नया तरीका निकाल लाए हैं।
मुस्लिम भाइयों ने दिखाई इंसानियत
इसी दौरान यह खबर नगर पालिका बिस्मिल नगर वार्ड के सभासद प्रतिनिधि राशिद कुरैशी और राहुल नगर वार्ड के सभासद वारिस कुरैशी तक पहुंची। दोनों तुरंत मौके पर पहुंचे। उन्होंने बच्चों को संभाला, लकड़ी और अंतिम संस्कार की सामग्री का इंतजाम किया और रात में हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार करवाया। राशिद कुरैशी ने बताया कि उन्हें फोन के जरिए जानकारी मिली कि छपवा तिराहे पर 3 बच्चे एक शव के साथ मदद मांग रहे हैं। जब वे पहुंचे तो देखा कि शव पूरी तरह फूल चुका था और उससे दुर्गंध आ रही थी, इसलिए कोई पास भी नहीं जा रहा था। उन्होंने अपने साथी वारिस कुरैशी के साथ मिलकर श्मशान में विधि-विधान से अंतिम संस्कार कराया।
बेटा राजवीर ने सुनाया अपना दर्द
राजवीर ने बताया कि पापा की तबीयत खराब थी। अस्पताल ले गए, इलाज कराया फिर कुछ दिन बाद उनकी मौत हो गई। हम लोगों ने सोचा कोई रिश्तेदार आएगा, लेकिन कोई नहीं आया। एक दिन बाद हम लोग खुद ही शव को लेकर श्मशान पहुंचे, लेकिन लकड़ी नहीं थी, तो बोले जलाया नहीं जा सकता। कब्रिस्तान ले गए तो वहां से भी भगा दिया। फिर हम लोग ठेले पर शव रखकर भीख मांगने लगे। किसी ने बताया तो राशिद भैया आए और हमारे पापा का ठीक से अंतिम संस्कार करवाया।
समाज को झकझोर देने वाली तस्वीर
इस घटना ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। जहां लोग मुस्लिम भाइयों की इंसानियत को सलाम कर रहे हैं, वहीं रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों की बेरुखी और नगर पालिका की लापरवाही पर गुस्सा भी जता रहे हैं। बच्चों की आंखों में आंसू थे, लेकिन पिता को सम्मानजनक विदाई देने की तसल्ली भी। राशिद और वारिस कुरैशी बच्चों को सुरक्षित घर छोड़कर लौट गए। इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया कि धर्म नहीं, इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है।