लोकसभा चुनाव 2024  : भाजपा यूपी में आरक्षित सीटों से करेगी मिशन-80 को सुरक्षित

punjabkesari.in Wednesday, Apr 10, 2024 - 01:38 PM (IST)

लखनऊ :  कांग्रेस का कभी परंपरागत वोट कहा जाने वाला दलित (अनुसूचित जाति) सामाजिक परिवर्तन का प्रभाव और सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ते- लड़ते इतना समझदार हो गया है कि वह अब किसी दल का वोट बैंक नहीं रहा। लेकिन उत्तर प्रदेश में दलित वोटों का भाजपा की तरफ झुकना बसपा, सपा और कांग्रेस जैसे दलों के लिए चिंता का सबब नहीं, खतरे की घंटी है कि जल्दी ही राजनीति नहीं बदली तो एक बड़े सामाजिक आधार का समर्थन खो देना तय है। पिछले दो लोकसभा चुनावों में इसकी बानगी नजर भी आ चुकी है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि इस बार दलितों का बोट किधर जाएगा। भाजपा ने मिशन 80 का लक्ष्य पूरा करने के लिए एक बार फिर सभी 17 आरक्षित सीटों पर कमल खिलाने की रणनीति बनाई है।

वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की सभी 17 आरक्षित सीटों पर जीत का परचम लहरा दिया था। लेकिन पिछले चुनाव में उसे दो सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। सपा के साथ गठ्ठबंधन के चलते  बसपा ने नगीना और लालगंज हैं  उससे छीन ली थी। भाजपा के हाथ 15 सीटें लगी थीं। इस चुनाव में फिर से भाजपा ने सभी 17 सीटों पर जीत के लिए अपनी पूरी ताकत लगाई है। भाजपा के वरिष्ठ नेता दावा कर रहे हैं कि दलित वोटों का रुझान पार्टी की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। 2014 की तरह इस बार भी सुरक्षित सीटों पर भाजपा का स्ट्राइक रेट शत-प्रतिशत रहेगा।
सुरक्षित सीटों का महत्व अनुसूचित जाति के वोटरों की पर्याप्त उपस्थिति के कारम माना जाता है। यही राज्य की कुल आबादी का 21 फीसदी हिस्सा बनाते हैं। सबसे ज्यादा करीब 11 फीसदी जाटव, 3.3 फीसदी पासी, 3.15 वाल्मीकि, 1.2 गोंड, धानुक, खटिक और 1.6 फीसदी अन्य में अनुसूचित जातियां बटी  हैं।

इन्हें लुभाने के लिए भाजपा ने जयंत चौधरी की आरएलडी, ओपी राजभर की सुभासपा, संजय निषाद की निषाद पार्टी, अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) समेत छोटे जाति आधारित समूहों को शामिल करके एनडीए का विस्तार किया है। बीते दो चुनाव देखें तो पता चलता है कि भाजपा ने गैर जाटव अनुसूचित जातियों व गैर यादव ओबीसी और ऊंची जातियों पर जमकर फोकस किया है। आमतौर पर जाटव बसपा तो यादव सपा के पक्ष में रहते हैं। विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लाक सत्ताधारी गठबंधन एनडीए के खिलाफ मजबूती से खड़ा होने का दम भर रहा है, लेकिन भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग के आगे दलित वोटरों को लुभाना उसके लिए आसान नहीं दिखता। बसपा पहले ही इंडिया ब्लाक से दूरी बनाकर चुनाव लड़ रही है। विश्लेषक मानते हैं कि पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) फार्मूला पर सवारी गांठने के बावजूद सपा को उन दलितों को समझाना मुश्किल होगा जो सपा के पिछले शासनकाल को अपने शत्रुतापूर्ण व्यवस्था मानते है।

केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की वेब साइट के अनुसार यूपी में 66 जातियां हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने आरक्षित 17 सीटों में 6 जाटव, पांच पासी, दो दुसाध, दो खटिक व दो धोबी प्रत्याशी उत्तारे थे। सपा- बसपा व आरएलडी गठबंधन में 10 बसपा व 7 सीटें सपा-आरएलडी को मिली थीं जिसमें बसपा ने अपने हिस्से वाली सीटों में 9 पर जाटव व एक पर पासी प्रत्याशी खड़ा किया था। सपा ने 3 पासी, एक जाटव, एक वाल्मीकि, एक कोल व एक धानुक को टिकट दिया था। दूसरी तरफ भाजपा ने 17 आरक्षित सीटों में से 16 पर अपने प्रत्याशी लड़ाए थे। एक सीट अपना दल (एस) को दे दी थी। भाजपा ने 16 में 6 पासी, 3 खटिक, 2 जाटव, एक धानुक, एक वाल्मीकि, एक गोंड, एक कोरी व एक गडेरिया जाति का प्रत्याशी  उतारा था।

एक पर पासी प्रत्याशी खड़ा किया था। सपा ने 3 पासी, एक जाटव, एक वाल्मीकि, एक कोल व एक धानुक को टिकट दिया था। दूसरी तरफ भाजपा ने 17 आरक्षित सीटों में से 16 पर अपने प्रत्याशी लड़ाए थे। एक सीट अपना दल (एस) को दे दी थी। भाजपा ने 16 में 6 पासी, 3 खटिक, 2 जाटव, एक धानुक, एक वाल्मीकि, एक गोंड, एक कोरी व एक गडेरिया जाति का प्रत्याशी इनमें भाजपा के 14 प्रत्याशी जीते थे। एक सीट सहयोगी दल अपनादल (एस) ने जीती थी। इस प्रकार 17 जीते उम्मीदवारों में ये 06 पासी, 03 जाटव, 02 खटिक, 01 धानुक, 01 वाल्मीकि, 01 गोंड, 01. कोरी, 01 कोल और 01 गडेरिया जाति से शामिल था।

 

 

 


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Content Writer

Ajay kumar

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