24 का चक्रव्यूहः अमेठी में इस बार स्मृति ईरानी की राह नहीं आसान,प्रियंका ने बनाई नाक की लड़ाई

punjabkesari.in Saturday, May 18, 2024 - 06:43 PM (IST)

लखनऊः पिछले लोकसभा चुनाव में अमेठी से कांग्रेस नेता राहुल गांधी को हराने के बाद भाजपा नेत्री स्मृति इरानी ने  ट्वीट किया था 'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता' अब 2024 में स्मृति के सामने राहुल तो नहीं हैं, लेकिन एक पत्थर तबियत से... उछालने की चुनौती कम नहीं हुई है। कांग्रेस ने इस बार स्मृति की चुनौती का मुकाबला करने के लिए अमेठी और रायबरेली में कोई चार दशक तक गांधी परिवार के प्रतिनिधि की भूमिका निभाने वाले किशोरी लाल शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा उन्हें 'चपरासी' बता रही हैं। लेकिन जिस तरह उनकी लोगों से जान-पहचान है और कांग्रेस नेता उनकी जीत के लिए प्रचार कर रहे हैं उसे देखकर कुछ लोग किशोरी लाल को छुपा रुस्तम भी बता रहे हैं। हालांकि राहुल गांधी के अमेठी से पलायन और कांग्रेस द्वारा किशोरी लाल पर दांव लगाए जाने के बाद हर किसी की धारणा थी कि अमेठी का चुनाव इस बार एकतरफा जीत वाला हो गया है। लंबे समय तक राहुल गांधी की प्रत्याशिता को लेकर अनिर्णय की स्थिति में झूलने वाली कांग्रेस ने एक तरह से भाजपा को यहां वॉकओवर दे दिया है, लेकिन जैसे-जैसे मतदान की तिथि करीब आ रही है, ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने राहुल गांधी की हार का बदला लेने के लिए स्मृति ईरानी के सामने सोची-समझी रणनीति के तहत जाल बुना है।

प्रियंका गांधी का आज से मिशन अमेठी, किशोरी का एहसान उतारना या स्मृति से  हिसाब बराबर करना मकसद | priyanka gandhi Amethi congress candidate kishori  lal sharma bjp smirti irani ...

स्मृति ईरानी के खिलाफ खुद प्रियंका गांधी ने संभाली कमान
 किशोरी लाल केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के सामने कमजोर प्रत्याशी साबित न हो, इसलिए उनके प्रचार की कमान खुद प्रियंका गांधी ने संभाल रखी है। स्मृति भी इस बात को बखूबी समझते हुए उतनी ही गंभीरता और ताकत से मुकाबला कर रही है, जैसे सामने राहुल गांधी ही चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि जनता की अदालत में अमेठी में इ इस बार चुनावी लड़ाई राहुल गांधी के 15 साल और स्मृति ईरानी के पांच सालों के काम के बीच हो रही है, जिसमें स्मृति का पलड़ा थोड़ा भारी नजर आता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि 2014 में मोदी लहर के बाद भी एक लाख वोटों से हार मिलने के बावजूद वह अमेठी छोड़कर नहीं गईं। लगातार सक्रिय रहीं और लोगों के बीच काम करती रहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें अपने मंत्रिमंडल में मानव संसाधन विकास मंत्री बनाया। इससे लोगों में भरोसा बना कि वह अब अमेठी छोड़कर जाने वाली नहीं हैं और सिर्फ अपना सियासी मकसद साधने के लिए यहां नहीं आयी हैं, जैसा कि कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी उन्हें लेकर आरोप लगाती हैं। इसी का लाभ उन्हें 2019 में अप्रत्याशित जीत के रूप में मिला। उन्होंने राहुल गांधी को 55 हजार मतों से पराजित कर दिया।

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 विकास के सवाल पर बंटी लोगों की राय
अमेठी में मतदाताओं का एक वर्ग पिछली बार की तरह राहुल गांधी बनाम स्मृति ईरानी का मुकाबला नहीं होने से थोड़ा मायूस जरूर नजर आता है। लेकिन वोट के सवाल पर अधिकतर लोग मोदी और योगी का समर्थन करते हुए भाजपा सरकार के गिनाते हैं या फिर सांसद स्मृति ईरानी के खिलाफ बोलते हैं। विकास के सवाल पर राय बंटी हुई है। यह कहने के बावजूद कि यहां की सड़कें अब पहले से अच्छी हो गयी हैं, तमाम लोग राजीव गांधी और राहुल गांधी के समय में हुए कामों की दुहाई देते हैं, तो यह बताने वाले भी कम नहीं हैं कि स्मृति ईरानी ने सांसद रहते केंद्र सरकार की योजनाओं पर काम किया है। लोगों को पीएम आवास, मुफ्त राशन, फ्री इलाज और शौचालय जैसी सुविधाएं मिली हैं। इसके जवाब में प्रियंका गांधी नुक्कड़ सभाओं और जनसंपर्क में लोगों को समझाती हैं कि जागरुक बनें, समझें कि कौन से पार्टी आपके लिए क्या कर रही है और पहले क्या किया। वह अपने पिता को याद करती हैं और अमेठी से जज्बाती रिश्ता जोड़ती हुए बताती हैं कि जब छोटे थे तब भी आते थे। आप कितना प्यार देते थे। फिलहाल कांग्रेस के चुनाव प्रचार से ऐसा लगता है कि गांधी परिवार ने इस सीट को नाक की लड़ाई मान लिया है। जिस तरह प्रियंका, खड़गे, राहुल यहां प्रचार कर रहे हैं, उससे लग रह है कि स्मृति ईरानी के लिए लड़ाई उतनी आसान नहीं है, जितनी समझी जा रही थी। वैसे इस बार चुनावी मैदान में बसपा की ओर से नन्हें सिंह भी मैदान में हैं, लेकिन बसपा के कॉडर वोट का बड़ा हिस्सा भी कांग्रेस-भाजपा के बीच ही बंटता दिख रहा है। 


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Content Writer

Ajay kumar

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