Success Story: मजदूरी करने वाली मां का सपना हुआ साकार, बेटे IAS मुकेश कुमार मेश्राम ने बिना कोचिंग के UPSC किया क्रैक
punjabkesari.in Sunday, Feb 09, 2025 - 03:55 PM (IST)
Lucknow News: UPSC की परीक्षा को देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक माना जाता है, लेकिन अगर हिम्मत और मेहनत हो तो कोई भी सपना असंभव नहीं होता। यह साबित किया है आईएएस मुकेश कुमार मेश्राम ने। आज वह उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव हैं, और उनकी कहानी हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है।
गांव के स्कूल से शुरू हुई पढ़ाई
मुकेश कुमार मेश्राम का जन्म 26 जून 1967 को मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के बोरी गांव में हुआ था। उनका बचपन पहाड़ों और प्रकृति के बीच बीता, और यही कारण है कि उन्हें प्रकृति से गहरा लगाव रहा। मुकेश का बचपन साधारण था, लेकिन उनकी पढ़ाई में हमेशा रुचि रही। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई गांव के स्कूल से की, फिर इंटरमीडिएट की पढ़ाई बालाघाट के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से की। इसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा IIT रुड़की से की, जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
IAS बनने की प्रेरणा
मुकेश कुमार मेश्राम के गांव में बहुत से लोग सरकारी नौकरी जैसे पुलिस, लेखपाल आदि में काम कर रहे थे। जब उन्होंने उन लोगों को गांव में प्रतिष्ठित होते देखा, तो उनका भी मन किया कि वह भी कुछ बड़ा करें और समाज की सेवा के लिए अधिकारी बनें। इसी प्रेरणा से मुकेश ने अपनी पढ़ाई को और भी गंभीरता से लिया और बिना कोचिंग के UPSC की परीक्षा में सफलता प्राप्त की। 1995 में उन्होंने UPSC की परीक्षा को पास किया और आईएएस बने।
मां की मेहनत और संघर्ष
मुकेश कुमार मेश्राम की माता लक्ष्मी बाई एक निरक्षर महिला थीं, लेकिन उन्हें शिक्षा का महत्व बखूबी समझ था। आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर होने के बावजूद, उन्होंने मुकेश की पढ़ाई में कोई कमी नहीं छोड़ी। इसके लिए उन्हें खेतों में काम करना पड़ा, लेकिन वह हर हाल में चाहती थीं कि उनका बेटा अच्छे से पढ़ाई करे और सफलता प्राप्त करे। मुकेश अपनी मां की मेहनत और संघर्ष को हमेशा याद करते हैं और बताते हैं कि उनकी मां ने बहुत कठिनाईयों के बावजूद उन्हें पढ़ाया और आज वही मेहनत रंग लाई।
मां के अंतिम संस्कार में नहीं गए आईएएस मुकेश
मुकेश कुमार मेश्राम ने 2005 में मऊ जिले के जिलाधिकारी के रूप में कार्य किया था। उसी दौरान उनकी मां के निधन की सूचना मिली। हालांकि, उस समय मऊ में दंगा हो गया था और मुकेश ने अपनी कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हुए मां के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने का निर्णय लिया। उनका मानना था कि एक अधिकारी के रूप में उनकी जिम्मेदारी सबसे पहले आती है। अपनी मां की याद में उन्होंने गांव में लक्ष्मीबाई इंग्लिश एकेडमी नामक स्कूल खोला, ताकि उनकी मां की शिक्षा के प्रति भावना हमेशा जीवित रहे।
प्रतियोगी छात्रों के लिए संदेश
आईएएस मुकेश कुमार मेश्राम ने प्रतियोगी छात्रों को संदेश दिया कि सफलता के लिए कोई शॉर्टकट नहीं होता। मेहनत और लगन से काम करने पर कोई भी परीक्षा आसान हो जाती है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि छात्र अपनी एकाग्रता और मानसिक क्षमता को बढ़ाने के लिए मेडिटेशन का अभ्यास करें, क्योंकि यह सफलता की दिशा में अहम कदम हो सकता है। मुकेश कुमार मेश्राम की कहानी यह साबित करती है कि कठिन परिस्थितियों में भी अगर मेहनत और दृढ़ निश्चय हो, तो कोई भी मंजिल हासिल की जा सकती है। उनकी संघर्षपूर्ण यात्रा और सफलता हर किसी को प्रेरित करती है।