UP by-election 2024: क्या 2027 में यूपी में भाजपा की राह होगी आसान? उपचुनाव के नतीजों पर विश्लेषण
punjabkesari.in Monday, Nov 25, 2024 - 12:32 PM (IST)
UP by-election 2024: उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए उपचुनाव ने 2027 के लिए एक नया राजनीतिक समीकरण पैदा किया है। लोकसभा चुनाव में सपा ने 9 विधानसभा सीटों में से 7 पर बढ़त बनाई थी, लेकिन 5 महीने बाद हुए उपचुनाव में पूरी तस्वीर बदल गई। भाजपा ने 9 में से 7 सीटें जीत ली, जबकि सपा सिर्फ 2 सीटों पर सफल रही। सवाल उठ रहे हैं कि क्या योगी की रणनीति, सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल, और अन्य राजनीतिक बदलावों ने इन नतीजों को प्रभावित किया है।
जानिए, 5 महीने में क्या बदला?
लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश से भारी नुकसान हुआ था। यूपी में भाजपा के 29 सांसद घट गए थे, जिससे योगी सरकार पर सवाल उठने लगे थे। इसके बाद योगी ने अपनी रणनीति में बड़े बदलाव किए, कार्यकर्ताओं से संपर्क बढ़ाया और अफसरशाही पर कड़ी नजर रखी। उन्होंने उपमुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को व्यक्तिगत जिम्मेदारी दी और लगातार सीटों पर रिव्यू किया। इस बदलाव का असर उपचुनाव में साफ देखा गया, और भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया।
क्या उपचुनाव को 2027 के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा सकता है?
राजनीति में समीकरण तेजी से बदलते हैं, और इन उपचुनाव के नतीजे भाजपा के पक्ष में गए हैं, जिससे भविष्य के चुनावों में भाजपा को फायदा हो सकता है। सपा ने लोकसभा चुनाव के बाद जो ऊर्जा महसूस की थी, वही अब भाजपा में दिखाई दे रही है। योगी सरकार ने शिक्षा, पर्चा लीक, और अफसरशाही जैसे मुद्दों पर सख्त फैसले लेकर अपनी छवि सुधारने की कोशिश की है, जो 2027 में भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकते हैं।
क्या इन नतीजों से योगी का राष्ट्रीय कद बढ़ेगा?
यह तय है कि इन नतीजों के बाद योगी का कद और मजबूत होगा। भाजपा में कई ध्रुव हैं, लेकिन योगी ने "बंटेंगे तो कटेंगे" जैसे बयान से यह संदेश दिया है कि पार्टी एकजुट होकर ही सफल हो सकती है। महाराष्ट्र और यूपी के चुनावों में इस लाइन को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, और भविष्य में यह पार्टी की दिशा तय कर सकता है।
क्या सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग हुआ?
उपचुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सिर्फ एक कारण नहीं हो सकता। सरकारी मशीनरी का उपयोग हर चुनाव में होता है, फिर चाहे वह किसी भी पार्टी की सरकार हो। लोकसभा चुनाव में भी भाजपा सरकार थी, लेकिन उस समय नतीजे अलग थे। इसलिए केवल सरकारी मशीनरी को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं होगा।
जानिए, कुंदरकी और करहल सीट पर क्या हुआ?
कुंदरकी सीट पर भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की, जबकि सपा की जमानत जब्त हो गई, और यह एक चौंकाने वाली घटना थी, क्योंकि यहां 60% मुस्लिम वोटर हैं। यही नहीं, सपा की करहल सीट पर भी जीत का मार्जिन बहुत घट गया। सपा के प्रत्याशी तेज प्रताप यादव की जीत का अंतर 67,000 से घटकर सिर्फ 14,000 वोटों पर आ गया। भाजपा की रणनीति ने यादव वोट को बांटने में मदद की, जिससे सपा को झटका लगा।
जानिए, बसपा का क्या हाल?
बसपा की स्थिति इस उपचुनाव में भी खराब रही। पार्टी सिर्फ दो सीटों कटहरी और मझवां पर अपनी जमानत बचा पाई। लोकसभा चुनाव में भी बसपा को कोई सीट नहीं मिली थी, और अगर यही स्थिति रही, तो भविष्य में पार्टी की स्थिति और खराब हो सकती है।
यूपी उपचुनाव में कांग्रेस की भूमिका?
कांग्रेस ने उपचुनाव में कोई प्रत्याशी नहीं उतारा, और सीटों पर पार्टी के कार्यकर्ता निष्क्रिय रहे। कांग्रेस ने अगर थोड़ा भी सक्रियता दिखाई होती, तो सपा को कुछ सीटों पर फायदा हो सकता था। फूलपुर सीट पर कांग्रेस के जिलाध्यक्ष ने बगावत करके चुनाव लड़ा, लेकिन वह महज 1,365 वोटों के साथ अपनी जमानत तक नहीं बचा सके।
आखिरकार क्या सपा की हार का कारण था?
सपा की हार का मुख्य कारण वोटों का बंटवारा और भाजपा की रणनीति थी। मीरापुर सीट पर ओवैसी और चंद्रशेखर की पार्टियों के प्रत्याशियों ने सपा के वोटों को विभाजित कर दिया, जिससे सपा की हार हुई।