UP Madarsa Board: ‘हमें नहीं मिला राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का पत्र, निर्देश बाध्यकारी नहीं’

punjabkesari.in Tuesday, Jan 10, 2023 - 01:46 AM (IST)

लखनऊ, UP Madarsa Board: गैर-मुस्लिम विद्यार्थियों को प्रवेश दे रहे शासकीय वित्तपोषित और मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराकर वहां पढ़ रहे ऐसे बच्चों को 'औपचारिक शिक्षा' देने के लिये अन्य स्कूलों में दाखिल कराने के निर्देश सम्बन्धी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के कथित पत्र को लेकर चर्चाओं के बीच उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड का कहना है कि उसके पास अभी तक ऐसा कोई पत्र नहीं आया है। बोर्ड का कहना है कि न तो शासन में इस पर कोई चर्चा हो रही है और न ही आयोग का पत्र उसके लिये बाध्यकारी है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ही वह संस्था है जिसके निर्देश पर सरकार ने पिछले साल सितंबर-अक्टूबर में राज्य के सभी निजी मदरसों का सर्वे कराया था।

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मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों का भौतिक सत्यापन भी शामिल होना चाहिये
बोर्ड के अध्यक्ष डॉक्टर इफ्तिखार अहमद जावेद ने सोमवार को बताया कि उन्हें मीडिया से जानकारी मिली है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पिछली आठ दिसंबर को देश के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोगों के अध्यक्षों को पत्र लिखा है। पत्र में कहा है कि सभी राज्य गैर मुस्लिम बच्चों को प्रवेश देने वाले सभी सरकारी वित्तपोषित/मान्यता प्राप्त मदरसों की विस्तृत जांच करें। जांच में मदरसों में पढ़ने वाले ऐसे बच्चों का भौतिक सत्यापन भी शामिल होना चाहिये। जांच के बाद ऐसे सभी बच्चों को औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिये स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए। उन्होंने कहा, ''कहा जा रहा है कि यह पत्र सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजा गया है लेकिन मदरसों से सीधे तौर पर जुड़े होने के बावजूद मदरसा बोर्ड को शासन से अभी तक इस सिलसिले में कोई निर्देश नहीं मिले हैं। ना ही सरकार में इस पर कोई चर्चा हो रही है। आज अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री धर्मपाल सिंह के साथ मदरसा बोर्ड के क्रियाकलापों से संबंधित एक बैठक हुई थी। उसमें भी इस विषय पर कोई चर्चा नहीं हुई।''

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बाल संरक्षण आयोग का पत्र मिलने के बाद हमारे इस इरादे को मजबूती मिली थी
जावेद ने यह भी कहा, ''वैसे तो इस पत्र पर शासन को ही निर्णय लेना है, मगर हम बाल संरक्षण आयोग के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य नहीं हैं।'' इस सवाल पर कि सरकार ने इसी आयोग के एक पत्र पर पिछले साल सितंबर-अक्टूबर में राज्य के निजी मदरसों का सर्वेक्षण कराया है, जावेद ने कहा, ''हमारा वह सर्वे कराने का विचार पहले से ही था। बाल संरक्षण आयोग का पत्र मिलने के बाद हमारे इस इरादे को मजबूती मिली थी। यह कहना कि बाल संरक्षण आयोग के निर्देश पर मदरसों का सर्वे कराया गया, पूरी तरह गलत है।''

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राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने देश के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों के भेजे पत्र
गौरतलब है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने आठ दिसंबर, 2022 को देश के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और आयोग की सभी राज्य इकाइयों के अध्यक्षों को लिखे कथित पत्र में कहा है कि सभी राज्य गैर मुस्लिम बच्चों को प्रवेश देने वाले सभी सरकारी वित्तपोषित/मान्यता प्राप्त मदरसों की विस्तृत जांच करें। जांच में ऐसे मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों का भौतिक सत्यापन भी शामिल होना चाहिये। जांच के बाद ऐसे सभी बच्चों को औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिये स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए। पत्र में यह भी कहा गया है कि यह कवायद पूरी होने के 30 दिन बाद इसकी रिपोर्ट आयोग को सौंपी जाए। पत्र में यह भी कहा गया है, ''आयोग ने विभिन्न स्रोतों से मिली विभिन्न शिकायतों पर गौर करते वक्त यह देखा है कि गैर—मुस्लिम समुदाय के बच्चे सरकारी वित्तपोषित/मान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ रहे हैं। इसके अलावा आयोग को यह भी पता चला है कि कुछ राज्य/केन्द्र शासित प्रदेशों की सरकारें उन्हें छात्रवृत्ति भी प्रदान कर रही हैं। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 28 (3) का स्पष्ट उल्लंघन है, जो शैक्षणिक संस्थानों को माता—पिता की सहमति के बिना बच्चों को किसी भी धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिये बाध्य करने से रोकता है।'' हालांकि उत्तर प्रदेश शासन को वह पत्र मिला है या नहीं, इसकी स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सका है।
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अभिभावकों की मर्जी से ही मदरसों में दाखिला लेते हैं गैर-मुस्लिम बच्चे: उल्ला खां
इस बीच, ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया के राष्ट्रीय महामंत्री मौलाना वहीद उल्ला खां सईदी ने आयोग के इस पत्र की मंशा पर सवाल उठाये हैं। उन्होंने कहा कि पत्र पढ़ने से ऐसा लगता है कि आयोग यह कहना चाहता है कि देश के मदरसों में गैर—मुस्लिम बच्चों को जबरन पढ़ाया जा रहा है। सच्चाई यह है कि उन्हें कोई जबरन मदरसों में दाखिल नहीं करता। वे अपने अभिभावकों की मर्जी से ही मदरसों में दाखिला लेते हैं। उन्होंने कहा कि मदरसों में गैर—मुस्लिम बच्चों के लिये दीनी तालीम हासिल करने की कोई बाध्यता नहीं है। ऐसे बच्चे अपनी मर्जी से संस्कृत और कला के विषय ले सकते हैं। लड़कियों के लिये गृह विज्ञान का भी विकल्प उपलब्ध है। इस सवाल पर कि प्रदेश के शासकीय मान्यता प्राप्त मदरसों में कितने गैर—मुस्लिम बच्चे पढ़ते हैं, सईदी ने कहा कि इस बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।


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Content Writer

Mamta Yadav

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