जानिए, पितरों के पिण्डदान में काला तिल और कुश का क्या है महत्व ?

punjabkesari.in Friday, Sep 11, 2020 - 04:21 PM (IST)

प्रयागराज: पितरों को तृप्त करने तथा देवताओं और ऋषियों को काले तिल, अक्षत मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहा जाता है। तर्पण में काला तिल और कुश का बहुत महत्व होता है।

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तिल भगवान के पसीने से और कुशा रोम से उत्पन्न है
बता दें कि पितरों के तर्पण में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध करने वालों को पितृकर्म में काले तिल के साथ कुशा का उपयोग महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि तर्पण के दौरान काले तिल से पिंडदान करने से मृतक को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि तिल भगवान के पसीने से और कुशा रोम से उत्पन्न है इसलिए श्राद्ध कार्य में इसका होना बहुत जरूरी होता है।

पितृ पक्ष में क्यों है काले तिल और जौ का इतना महत्व?
जानिए, क्यों प्रिय है पितरों को काला तिल
शास्त्रों में कहा गया है कि काला तिल भगवान विष्णु का प्रिय है और यह देव अन्न है। इसलिए पितरों को भी तिल प्रिय है। इसलिए काले तिल से ही श्राद्धकर्म करने का विधान है। अथर्ववेद के अनुसार तिल तीन प्रकार के श्वेत, भूरा और काला जो क्रमश: देवता, ऋषि एवं पितरों को तृप्त करने वाला माना गया है। मान्यता है कि बिना तिल श्राद्ध किया जाए, तो दुष्ट आत्माएं हवि को ग्रहण कर लेती हैं। 

 

 


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Umakant yadav

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