Year Ender 2025: देश भर में चर्चित रहा मेरठ का मर्डर केस, संभल मस्जिद, राम मंदिर पर ध्वजारोहण, पढ़ें यूपी की खास खबरें जिसने बटोरी सुर्खियां
punjabkesari.in Tuesday, Dec 30, 2025 - 05:02 PM (IST)
लखनऊ: वर्ष 2025 में प्रदेश के कई जिलों में हुए घटनाक्रमों ने सुर्खियां बटोरीं और वे राष्ट्रीय चर्चा का केंद्र बनीं। जिसमें से मेरठ मर्डर केस, संभल की जामा मस्जिद विवाद, राम मंदिर पर ध्वजारोहण, मिल्कीपुर उपचुनाव की सीट, अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों, खासकर वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और मदरसों में शिक्षा व्यवस्था में सुधार की सरकारी कवायदों ने खूब सुर्खियां बंटोरीं। सड़क पर नमाज पढ़ने को लेकर उठा विवाद, अयोध्या के धन्नीपुर में मस्जिद निर्माण में अड़चन और संभल की जामा मस्जिद से जुड़े मुद्दे भी इस साल सुर्खियों में छाए रहे। साल की शुरुआत में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर रायशुमारी की प्रक्रिया खत्म होने के बाद इसे अप्रैल में लागू कर दिया गया।
शिया वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का पंजीकरण
इसके बाद ‘उमीद पोर्टल' पर सुन्नी और शिया वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का पंजीकरण शुरू किया गया। शुरू में पंजीकरण की अंतिम तिथि पांच दिसंबर 2025 थी, जिसे बाद में बढ़ाकर पांच जून 2026 कर दिया गया। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा करीब 1.27 लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जिनमें से लगभग 1.19 लाख संपत्तियां सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास, जबकि करीब आठ हजार संपत्तियां शिया वक्फ बोर्ड के पास हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड की करीब 70 फीसदी संपत्तियों का उमीद पोर्टल पर पंजीकरण हो चुका है।
मदरसा शिक्षा परिषद
वहीं, शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अली जैदी के अनुसार, करीब 6,500 शिया वक्फ संपत्तियों का उम्मीद पोर्टल पर पंजीकरण कराया जा चुका है। उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के मदरसा शिक्षा परिषद से संबद्ध और मान्यता प्राप्त मदरसों के पाठ्यक्रम, नियुक्ति प्रक्रिया तथा कई अन्य व्यवस्थाओं में व्यापक बदलाव एवं सुधार के लिए सुझाव देने के उद्देश्य से 30 मई को अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के निदेशक की अगुवाई में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया।
सड़क पर नमाज पढ़ने वालों के पासपोर्ट जब्त
समिति से एक महीने के भीतर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया था, लेकिन काफी जटिल प्रक्रिया होने की वजह से इसके कार्यकाल को तीन और महीनों के लिए बढ़ा दिया गया। इस कवायद के तहत समिति और मदरसा शिक्षकों तथा प्रबंधकों समेत विभिन्न हितधारकों के साथ कई बैठकें हुईं। उम्मीद की जा रही थी कि समिति की रिपोर्ट अक्टूबर के अंत तक आ जाएगी, लेकिन साल गुजरने के बावजूद इसका इंतजार जारी है। मार्च में मेरठ जिले में पुलिस प्रशासन ने सड़क पर नमाज पढ़ने वालों के पासपोर्ट जब्त करने की चेतावनी दी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस भी मुद्दे पर सख्त बयान दिए। मेरठ पुलिस प्रशासन ने मार्च में कहा कि सड़क पर नमाज न पढ़ी जाए। उसने चेतावनी दी कि नियम का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है और उनके पासपोर्ट व ड्राइविंग लाइसेंस निरस्त किए जा सकते हैं।
फाजिल की डिग्रियां असंवैधानिक
पुलिस के इस बयान को लेकर उठे विवाद के बाद योगी ने कहा, “ठीक तो बोला है मेरठ में। सड़क चलने के लिए होती है। जो लोग ऐसा कर रहे हैं, उन्हें हिंदुओं से अनुशासन सीखना चाहिए।” उच्चतम न्यायालय ने नवंबर 2024 में मदरसा शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश की ओर से कामिल और फाजिल की डिग्रियां प्रदान किए जाने को असंवैधानिक करार दिया था, जिसके बाद दोनों पाठ्यक्रम से जुड़े करीब 32 हजार छात्रों के भविष्य को लेकर स्थिति 2025 में भी साफ नहीं हो सकी। इसे लेकर उच्चतम न्यायालय में दाखिल की गई याचिका भी सुर्खियों में रही। दरअसल, शीर्ष अदालत ने पांच नवंबर 2024 को अपने एक आदेश में कहा था कि मदरसा शिक्षा बोर्ड की ओर से कामिल और फाजिल की डिग्रियां प्रदान किया जाना असंवैधानिक है, क्योंकि यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अधिनियम के खिलाफ है।
आई लव मोहम्मद' विवाद
मदरसा शिक्षकों के संगठन ‘टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया उत्तर प्रदेश' ने कामिल और फाजिल डिग्रियों को लेकर उत्पन्न स्थिति को देखते हुए मई 2025 में उच्चतम न्यायालय में अर्जी दाखिल कर अनुरोध किया कि वह राज्य सरकार को प्रदेश के मदरसों में कामिल और फाजिल की पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं को लखनऊ स्थित उर्दू, अरबी, फारसी भाषा विश्वविद्यालय से संबद्ध करके उनकी परीक्षा कराने और डिग्रियां दिलवाने के निर्देश दे। बहरहाल, कामिल और फाजिल के छात्रों का समस्या सुलझने का इंतजार साल 2025 में भी जारी रहा। वर्ष 2025 के सितंबर महीने में ईद मिलादुन्नबी के मौके पर कानपुर में ‘आई लव मोहम्मद' के बैनर लगाए जाने को लेकर खासा विवाद हुआ, जिसने पूरे उत्तर प्रदेश में असर दिखाया। इस मामले को लेकर बरेली में 26 सितंबर को जुमे की नमाज के बाद प्रशासन को ज्ञापन देने के लिए उमड़ी भीड़ और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसमें कई पुलिसकर्मी जख्मी हो गए।
मौलाना तौकीर रजा खां की गिरफ्तारी
मामले में प्रदर्शन का आह्वान करने वाले इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां और उनके कई साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से धर्म-ध्वजा फहराए जाने के साथ राम मंदिर का निर्माण कार्य औपचारिक रूप से पूरा होने और अयोध्या के धन्नीपुर में सुन्नी वक्फ बोर्ड के इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन की ओर से मस्जिद निर्माण की शुरुआत नहीं हो पाने का मुद्दा भी चर्चा में रहा। उच्चतम न्यायालय ने नौ नवंबर 2019 को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में फैसला सुनाते हुए विवादित स्थल पर मंदिर का निर्माण कराने और मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में किसी प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था। प्रमुख मुस्लिम पक्ष होने के नाते उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अयोध्या के धन्नीपुर गांव में पांच एकड़ जमीन दी गई, लेकिन वित्तीय रुकावटों और नक्शा पारित कराने में आई अड़चनों की वजह से मस्जिद का निर्माण पांच साल बाद भी शुरू नहीं हो पाया।
संभल की मस्जिद विवाद
संभल में शाही जामा मस्जिद के हरिहर मंदिर होने के दावे को लेकर जारी अदालती लड़ाई के बीच इस साल मस्जिद के रंग-रोगन को लेकर उठा विवाद भी सुर्खियों में रहा। मस्जिद को मंदिर बताने वाले हिंदू पक्ष ने पोताई के पीछे साजिश होने का आरोप लगाकर इसका विरोध किया। इसके बाद जामा मस्जिद प्रबंधन समिति ने इसे लेकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसके आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की निगरानी में मार्च में मस्जिद की पोताई की गई। संभल की मस्जिद ने कुछ अन्य कारणों को लेकर भी सुर्खियां बंटोरीं। मस्जिद की प्रबंध समिति के अध्यक्ष जफर अली को 24 नवंबर 2024 को मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हुई हिंसा के सिलसिले में इस साल 23 मार्च को गिरफ्तार कर लिया गया। अली की गिरफ्तारी जितनी चर्चा में रही, उनकी रिहाई पर निषेधाज्ञा का उल्लंघन कर जुलूस निकालने के आरोप में उन पर दर्ज मुकदमे का मामला भी उतना ही छाया रहा।
बदायूं की शम्सी जामा मस्जिद
अली मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हुई हिंसा के मामले में एक अगस्त को मुरादाबाद जेल से रिहा हुए थे। उनकी रिहाई के बाद मुरादाबाद से संभल के बीच रोड शो निकाला गया था। जुलूस का वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आने के बाद पुलिस ने स्वतः संज्ञान लेते हुए अली और उनके 50-60 समर्थकों के खिलाफ निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया। संभल ही नहीं, बल्कि बदायूं की शम्सी जामा मस्जिद से जुड़ा विवाद भी सुर्खियों में रहा। शम्सी जामा मस्जिद-नीलकंठ महादेव मंदिर मामले की सुनवाई के लिए निचली अदालत के अधिकार क्षेत्र को लेकर विवाद का मामला भी समय-समय पर सुर्खियों में रहा। इस मामले में आखिरी सुनवाई 25 नवंबर को हुई थी, जबकि अगली सुनवाई के लिए 15 जनवरी 2026 की तारीख तय की गई है।
पुलिस क्षेत्राधिकारी अनुज चौधरी का बयान
संभल में तत्कालीन पुलिस क्षेत्राधिकारी अनुज चौधरी के जुमे की नमाज और होली को लेकर दिए गए बयान ने भी खूब सुर्खियां बटोरीं। चौधरी ने कहा था, “होली एक ऐसा त्योहार है, जो साल में एक बार आता है, जबकि शुक्रवार की नमाज साल में 52 बार होती है। अगर किसी को होली के रंगों से असहजता महसूस होती है, तो उन्हें उस दिन घर के अंदर रहना चाहिए।” दिसंबर में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक मुस्लिम महिला डॉक्टर का हिजाब हटाने से जुड़ा घटनाक्रम भी उत्तर प्रदेश में चर्चा में रहा।
मंत्री संजय निषाद का बयान
समाजवादी पार्टी (सपा) की नेता सुमैया राणा ने 17 दिसंबर को लखनऊ के कैसरबाग थाने में तहरीर देकर नीतीश और उनके समर्थन में बयान देने वाले उत्तर प्रदेश के मत्स्य विकास मंत्री संजय निषाद के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। साल के अंत में 28 दिसंबर को ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के वार्षिक अधिवेशन का आयोजन किया गया। अधिवेशन में वक्फ सुधारों पर चर्चा के साथ-साथ देश में समान नागरिक संहिता लागू न करने की मांग की गई। इसके अलावा, शिया मुसलमानों के हालात जानने के लिए सच्चर समिति की तर्ज पर एक अलग आयोग बनाने की भी मांग की गई।
बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार
अधिवेशन में संसद और देशभर की विधानसभाओं में शिया मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के उपायों पर भी चर्चा की गई। बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सायम मेंहदी की अध्यक्षता में लखनऊ के बड़े इमामबाड़े में आयोजित अधिवेशन में बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार की भी निंदा की गई। साथ ही भारत सरकार से मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने में बाधा नहीं डालने, समान नागरिक संहिता लागू करने पर पुनर्विचार करने और भीड़ हत्या के खिलाफ सख्त कानून बनाने समेत कई मांगें की गईं। अधिवेशन में भारत के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ बांग्लादेश और नेपाल के उलमा और मुस्लिम विद्वानों ने शिरकत की।

