प्राइवेट पार्ट को छूना और पजामे के नाड़े को तोड़ना रेप नहीं ..., Allahabad High Court के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

punjabkesari.in Wednesday, Mar 26, 2025 - 01:19 PM (IST)

लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस विवादास्पद फैसले पर आज सुनवाई कि जिसमें कहा गया था कि केवल स्तन पकड़ना और 'पजामा' का नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास का मामला नहीं माना जा सकता। न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि उसे यह कहते हुए तकलीफ हो रही है कि उच्च न्यायालय के आदेश में की गईं कुछ टिप्पणियां पूरी तरह से असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण वाली हैं।

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसली का सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: लिया संज्ञान
पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 17 मार्च के आदेश से संबंधित मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए शुरू की गई कार्यवाही में केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया। उच्च न्यायालय ने 17 मार्च को अपने एक आदेश में कहा था कि महज स्तन पकड़ना और ‘पायजामे' का नाड़ा खींचना बलात्कार के अपराध के दायरे में नहीं आता लेकिन इस तरह के अपराध किसी भी महिला के खिलाफ हमले या आपराधिक बल के इस्तेमाल के दायरे में आते हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने दो व्यक्तियों द्वारा दायर एक याचिका पर दिया था। इन आरोपियों ने कासगंज के विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देते हुए यह याचिका दायर की थी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर कानूनी विशेषज्ञों ने व्यक्त की थी नाराजगी
गौरतलब है कि कानूनी विशेषज्ञों ने बलात्कार के आरोप की परिभाषा पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणी की निंदा की थी और न्यायाधीशों से संयम बरतने को कहा था। विशेषज्ञों ने कहा था कि ऐसे बयानों के कारण न्यायपालिका में लोगों के विश्वास में कमी आती है। उच्च न्यायालय ने 17 मार्च को फैसला सुनाया था कि केवल स्तन पकड़ना और 'पजामा' का नाड़ा तोड़ना बलात्कार का अपराध नहीं है, ऐसा अपराध किसी महिला के खिलाफ हमला या आपराधिक बल के इस्तेमाल के दायरे में आता है, जिसका उद्देश्य उसे निर्वस्त्र करना या नग्न होने के लिए मजबूर करना है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को दी थी चुनौती 
यह आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने उन दो व्यक्तियों की एक समीक्षा याचिका पर पारित किया था, जिन्होंने कासगंज के एक विशेष न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए अदालत का रुख किया। विशेष न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं को अन्य धाराओं के अलावा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत तलब किया था। फिलहाल इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार एंव अन्या को नोटिस जारी कर दिया है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का ये फैसला
दरअसल, दुष्कर्म के एक मामले में उच्च न्यायालय ने सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा था कि लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे की डोरी तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार के प्रयास के आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि ये केवल ‘‘तैयारी'' का मामला है। ये अपराध करने के वास्तविक प्रयास से अलग है।

दो आरोपियों द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका पर दिया था फैसला
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने दो आरोपियों द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए ये टिप्पणी की। आरोपियों ने अपनी याचिका में निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार का प्रयास) के साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम की धारा 18 के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए कहा था।

 पोक्सो अधिनियम के तहत पर्यात्त सबूत नहीं माना
उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा, 'अभियोजन पक्ष के अनुसार, केवल यह तथ्य कि दो आरोपियों, पवन और आकाश ने पीड़तिा के स्तनों को पकड़ा। उनमें से एक ने उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया, लेकिन राहगीरों या गवाहों के हस्तक्षेप पर वे भाग गए, धारा 376, 511 आईपीसी या धारा 376 आईपीसी के साथ पोक्सो अधिनियम की धारा 18 के तहत लाने के लिए पर्याप्त नहीं है।'

 आदेश में आगे कहा गया कि बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए, अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना होगा कि कृत्य तैयारी के चरण से आगे बढ़ चुका था। तैयारी और अपराध करने के वास्तविक प्रयास के बीच का अंतर मुख्य रूप से द्दढ़ संकल्प की अधिक मात्रा में निहित है। अभियोजन पक्ष ने तकर् दिया कि आरोपी ने पीड़तिा के स्तनों को पकड़ा, उसके निचले वस्त्र का नाड़ा तोड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया, लेकिन गवाहों के हस्तक्षेप करने पर भाग गया।


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Content Writer

Ramkesh

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