सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला- ‘लेनदेन के ठोस सबूत के बिना नहीं चलेगा करप्शन केस’
punjabkesari.in Tuesday, Mar 04, 2025 - 02:50 PM (IST)

UP Desk: सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि केवल अधिकारों के दुरुपयोग या फैसलों की त्रुटि को भ्रष्टाचार नहीं माना जा सकता। अगर रिश्वतखोरी का आरोप है तो उसके लिए स्पष्ट लेन-देन के ठोस सबूत होने चाहिए।
बता दें कि फिशिंग कॉन्ट्रैक्ट बगैर टेंडर के जारी करने पर एक अधिकारी पर करोड़ों का नुकसान करने का आरोप था। इस मामले में उनके खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ करप्शन ऐक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने केस को खारिज कर दिया। हालांकि अधिकारी अपने केस को रद्द कराने के लिए पहले हाई कोर्ट पहुंचा था। हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद इस केस को रद्द करने की मांग खारिज कर दी थी।
SC के फैसले की मुख्य बातें:-
- रिश्वत के ठोस प्रमाण के बिना नहीं चलेगा भ्रष्टाचार का मामला
- सिर्फ प्रशासनिक फैसलों की गलती को करप्शन नहीं कहा जा सकता
- लेन-देन की पुष्टि जरूरी, वरना केस होगा खारिज
- सभी सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों पर असर डाल सकता है यह फैसला
- गुजरात के एक अधिकारी के केस में आया फैसला
इस फैसले का संदर्भ गुजरात से जुड़े एक मामले से है, जिसमें एक सरकारी अधिकारी पर मछली पालन की टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी के आरोप लगे थे। हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत केस दर्ज किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिश्वत या निजी लाभ का कोई स्पष्ट सबूत नहीं होने पर इसे करप्शन नहीं माना जा सकता।
क्या है करप्शन ऐक्ट?
करप्शन ऐक्ट की धारा 20 यह मानती है कि अगर कोई पब्लिक सर्वेंट अनुचित लाभ स्वीकार करता है, तो वह किसी कार्य को अनुचित तरीके से प्रभावित करने के लिए ऐसा कर रहा है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक यह साबित नहीं होता कि रिश्वत की मांग और उस रिश्वत को स्वीकार किया गया था, तब तक इस धारा के तहत कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि करप्शन का अपराध किया गया है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई अधिकारी सरकारी नीति से भटककर कार्य करता है, तो केवल इस आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि उसने रिश्वत ली है।