2022 के चुनाव में शामली जिले की 3 विधानसभा सीटों पर पलट सकती है बाजी

punjabkesari.in Tuesday, Jan 11, 2022 - 05:46 PM (IST)

 

लखनऊः 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा में 10 फरवरी को पहले चरण की 58 सीटों पर मतदान होगा। पहले चरण के मतदान के तहत शामली, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत और हापुड़ जिले के वोटर अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। वहीं इसके अलावा गाजियाबाद, बुलंदशहर, मथुरा आगरा और अलीगढ़ जिले में भी पहले चरण में ही वोट डाला जाएगा।
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ऐतिहासिक तौर पर देखें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले वोट डाले जाते रहे हैं और इसका असर आखिरी परिणामों पर भी दिखता रहा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी की आंधी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस उड़ गई थी। गन्ना बेल्ट के तौर पर मशहूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 76 विधानसभा सीटों में से 66 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी। इस बार भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी अपने इसी प्रदर्शन को दोहराना चाहती है। यही वजह है कि जाट लैंड के विरोध को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेकर डैमेज कंट्रोल करने की भरपूर कोशिश की है, हालांकि जयंत चौधरी के साथ हाथ मिलाकर अखिलेश यादव ने बीजेपी की रणनीति की काट तलाशी है। अगर जयंत चौधरी और अखिलेश का समीकरण हिट हो गया तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी का पूरा सियासी समीकरण ध्वस्त भी हो सकता है।

पंजाब केसरी की टीम उत्तर प्रदेश के हर विधानसभा सीट के समीकरण और सियासी गुणा गणित का सटीक और निष्पक्ष विश्लेषण पेश कर रही है तो आइए पहले चरण में शामली जिले की 3 सीटों पर होने वाले विधानसभा चुनाव के समीकरण पर सार्थक चर्चा की जाए। पहले चरण के तहत शामली जिले के दायरे में आने वाले विधानसभा क्षेत्र में वोट डाले जाएंगे। आइए सबसे पहले शामली जिले की विधानसभा सीटों के सियासी गुणा गणित पर डालते हैं एक नजर। शामली जिले की तीन विधानसभा सीटों पर मुस्लिम,जाट,ओबीसी और दलित वोटरों का प्रभाव है, हालांकि मुस्लिम और जाट वोटर अगर किसी पार्टी के पक्ष में गोलबंद हो जाएं तो उस पार्टी के कैंडिडेट को आसानी से बढ़त मिल सकती है। शामली में इस बार सपा और बीजेपी में सीधी टक्कर होगी हालांकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम और बीएसपी भी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। अगर यहां मुस्लिम और जाट गोलबंद होकर बीजेपी के खिलाफ वोट देगा तो सपा-रालोद की पौ बारह हो जाएगी। अगर बात करें इस इलाके की समस्या की तो गन्ने की कीमत, बेरोजगारी,खराब सड़कें शामली जिले की मुख्य समस्या है।
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शामली शहर में रेलवे फाटक पर फ्लाईओवर का नहीं बनना भी इस बार एक बड़ा मुद्दा बन गया है। यहां रेलवे फाटक नहीं होने से करीब 30 से 45 मिनट तक का जाम लग जाता है। हर चुनाव से पहले नेता इस समस्या का समाधान करने का वादा करते हैं लेकिन सच बात ये है कि अभी तक इस समस्या का समाधान नहीं हो सका है। इसके अलावा बाईपास नहीं होने के चलते भी शहर में लंबा जाम लगता है। क्षेत्र के लोग इस समस्या के समाधान के लिए भी काफी समय से राजनीतिक दलों पर दबाव बनाते रहे हैं लेकिन हर बार उनके किस्मत में धोखा ही मिलता है। शामली सहित पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश में केंद्र सरकार की ओर से पारित किए गए तीनों कृषि कानून का जमकर विरोध हो रहा था लेकिन मोदी सरकार ने पश्चिमी यूपी में बाजी पलटने के लिए ये कानून वापस ले लिए हैं। वहीं किसानों को खुश करने के लिए योगी सरकार ने 26 सितंबर को गन्ने के मूल्य में 25 रुपए प्रति क्विंटल का इजाफा किया था। खास बात ये है कि योगी सरकार में शामली की थानाभवन विधानसभा सीट से सुरेश राणा गन्ना मंत्री हैं। इसलिए सुरेश राणा की भी सियासी साख इस बार के चुनाव में दांव पर लगी है।

शामली में 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने दो सीटों पर जीत का परचम लहराया था लेकिन 2022 के चुनाव में भगवा पार्टी को अपने पुराने प्रदर्शन को कायम रखने में एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। अगर यहां जयंत और अखिलेश की जोड़ी चल निकली तो बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी होनी तय है।


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Nitika

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