निर्भया कांडः फांसी के बाद दोषियों के गांव की सूनी पड़ी गलियां, लोग बोले- मौत का गम तो होगा ही...

punjabkesari.in Friday, Mar 20, 2020 - 04:20 PM (IST)

लखनऊः 16 दिसंबर 2012 पूरे देश को हिला कर रख देने वाली वो तारीख थी, जिस काली रात को निर्भया कांड को अंजाम दिया गया। 17 तारीख के समाचार पत्रों की सुर्खियों में रहने वाले निर्भया कांड से पूरा देश ही नहीं विदेश के भी लोग दहल गए। इस कांड को अंजाम देने वाले 6 आरोपियों के प्रति लोगों में बेहद उबाल था, और आज भी उबाल कायम हैं। जिसके चलते आखिरकार निर्भय को इंसाफ मिला है। मुख्य आरोपी राम सिंह ने जेल में ही आत्महत्या कर ली थी, एक को नाबालिग होने के चलते बाल गृह में रखने के बाद रिहा कर दिया गया। बाकी बचे 4 गुनाहगार अक्षय ठाकुर, मुकेश सिंह, विनय शर्मा और पवन गुप्ता को 7 साल, 3 महीने और 3 दिन बाद 20 मार्च 2020 को सुबह 5 बजकर 30 मिनट पर फांसी पर चढ़ा दिया गया। जिसके बाद निर्भया के गांव में खुशी की लहर हैं, तो वहीं दोषियों के गांवों में मातम पसरा हुआ है। कुछ लोग इससे दुखी हैं, तो कुछ लोग इसे विधि का विधान बता रहे हैं। 
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इन आरोपियों को हुई फांसी, गांवों में पसरा मातम

पवन गुप्ता
- इन दोषियों में पवन गुप्ता उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के जगन्नाथपुर गांव का रहने वाला था। फांसी के दो दिन पहले से ही इस गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है। पवन के रिश्तेदार चुप्पी साधे हैं तो ग्रामीण इसे विधि का विधान मान रहे हैं। शुक्रवार को फांसी के बाद गांव में मातम छाया हुआ है। गांव का कोई भी शख्स अपने घर से बाहर तक नहीं निकला है। पवन का घर का दरवाजा सुबह 6 बजे तक बन्द ही रहा। हालांकि, अंदर से टीवी की आवाज आती रही जबकि बगल के घर मे आसपास की महिलाएं और पुरुष टीवी पर अपडेट देखते नजर आए। पवन का पूरा परिवार दिल्ली में रहता है, मगर उसके कुछ एक रिश्तेदार व पट्टीदार गांव में रहते हैं।
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विनय शर्मा- वहीं बस्ती से 35 किमी दूर रुधौली थाना क्षेत्र में विनय का गांव है। यहां को लोग गांव का नाम तक नहीं बताना चाहते,  क्योंकि यहां के लोग यह नहीं चाहते कि विनय के कारण इस गांव का नाम खराब हो। गांव वालों का कहना था कि आप खबर में गांव का नाम न लिखें, इससे यहां के नौजवानों का भविष्य खराब हो जाएगा। वहीं विनय के घर में विनय का नाम लेते ही चाची फफक कर रो पड़ीं। उनकी आंखों से लगातार आंसू गिरते रहे। वह कह रहीं थीं कि पूरी दुनिया हमारे बेटे के पीछे पड़ गई तो भला वह कैसे बच पाता? उन्होंने कहा सबको लग रहा है कि इस फांसी से कुछ बदल जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि क्या अब जो रेप होंगे उनमें भी कोर्ट फांसी की ही सजा देगी? अगर ऐसा होता है तो फैसला ठीक है। नहीं तो ये गलत है।
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अक्षय ठाकुर- अक्षय नाम का दोषी बिहार के औरंगाबाद जिले का रहने वाला था। अक्षय को फांसी मिलने के बाद गांव में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। वहीं बेटे को फांसी मिलने के बाद दोषी अक्षय के माता-पिता ने अपने घर का दरवाजा तक नहीं खोला। औरंगाबाद जिले के गांव लहंग करमा में अक्षय को फांसी दिए जाने के बाद जहां एक तरफ लोगों ने खुशी जाहिर की, वहीं दूसरी तरफ कई लोगों में नाराजगी दिखी। अक्षय ठाकुर के गांव में अधिकतर लोग अपने घरों में ही बंद हैं। साथ ही गांव की गलियां भी सूनी पड़ी हैं। गांव में जो लोग नजर भी आ रहे हैं वो अक्षय ठाकुर को फांसी दिए जाने पर कुछ भी बोलने से इंकार कर रहे हैं। वहीं कई ग्रामीणों के द्वारा यह भी चर्चा हो रही थी की पत्नी के द्वारा औरंगाबाद कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल की गई थी। बता दें कि अक्षय ठाकुर दिल्ली में बस कंडक्टर का काम करता था। 16 दिसंबर 2012 घटना को अंजाम देने के बाद वह भाग गया था, लेकिन पुलिस के द्वारा उसे 5 दिन के बाद अपने गांव से ही गिरफ्तार कर लिया गया था।
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मुकेश सिंह- बस की सफाई का काम करने वाला मुकेश (29) इस बर्बरता का मुख्य दोषी था। उसने गैंगरेप के बाद निर्भया पर लोहे की रॉड से हमला किया था। ये राम सिंह का छोटा भाई था। मुकेश ड्राइविंग और क्लीनर का काम करता था। मुकेश दक्षिणी दिल्ली के रविदास झुग्गी कैंप में राम सिंह के साथ ही रहता था। राम सिंह निर्भय कांड का मुख्य दोषी था। मार्च 2013 में उसने जेल के अंदर ही खुदखुशी कर ली।


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