लापरवाह डॉक्टरों को संरक्षण नहीं, मरीजों को ‘ATM’ समझना बंद करें निजी नर्सिंग होम- इलाहाबाद हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

punjabkesari.in Saturday, Jul 26, 2025 - 02:09 PM (IST)

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इलाज में लापरवाही और सर्जरी में देरी से भ्रूण की मौत के एक पुराने मामले में डॉक्टर की याचिका खारिज कर दी है। डॉक्टर ने 2008 में दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग की थी। लेकिन कोर्ट ने कहा कि "लापरवाह डॉक्टरों को संरक्षण नहीं दिया जा सकता।"

मरीजों को ‘ATM’ समझना बंद करें: हाईकोर्ट
न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ ने कहा,"निजी नर्सिंग होम और अस्पताल अब मरीजों को केवल कमाई का जरिया मानने लगे हैं। उन्हें ‘गिनी पिग’ या ‘एटीएम मशीन’ समझने की प्रवृत्ति गंभीर चिंता का विषय है।"पीठ ने डॉक्टर अशोक कुमार राय की ओर से दायर उस याचिका को खारिज किया, जिसमें उन्होंने देवरिया कोर्ट से जारी समन आदेश समेत आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।

क्या है मामला?
मामला 29 जुलाई 2007 का है, जब गर्भवती महिला को सिजेरियन सर्जरी के लिए डॉक्टर के नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया। सुबह 11 बजे परिवार ने सर्जरी की सहमति दी थी। लेकिन सर्जरी शाम 5:30 बजे की गई, और तब तक भ्रूण की मौत हो चुकी थी। परिजनों ने आरोप लगाया कि देरी का कारण डॉक्टर के पास एनेस्थेटिस्ट का न होना था। इसके अलावा अस्पताल स्टाफ पर परिजनों के साथ मारपीट और पैसे मांगने का भी आरोप लगाया गया।

डॉक्टर की दलीलें नहीं चलीं
डॉक्टर ने दावा किया कि उनके पास पूरी योग्यता थी और मेडिकल बोर्ड ने उन्हें क्लीन चिट दी थी। लेकिन कोर्ट ने कहा कि बोर्ड की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि "महत्वपूर्ण दस्तावेज जैसे पोस्टमार्टम रिपोर्ट और ओटी नोट उसमें शामिल नहीं थे। यह भी सामने आया कि एनेस्थेटिस्ट को दोपहर 3:30 बजे बुलाया गया, यानी सर्जरी की तैयारी पहले से नहीं थी। यह दर्शाता है कि मरीज को भर्ती करने से पहले जरूरी संसाधन मौजूद नहीं थे।

कोर्ट का निष्कर्ष
हाईकोर्ट ने साफ कहा कि "सर्जरी की अनुमति मिलने के बाद भी ऑपरेशन न करना लापरवाही है। यदि डॉक्टर समय पर उचित देखभाल नहीं करता, तो आपराधिक जिम्मेदारी बनती है। यह कहते हुए कोर्ट ने आरोपी डॉक्टर की याचिका को खारिज कर दिया।
 


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Content Writer

Ramkesh

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