चैत्र नवरात्रि के पहले दिन भोर से ही मंदिरों में लगा श्रद्धालुओं का तांता; चुनरी, सिंदूर और पुष्प चढाकर की पूजा

punjabkesari.in Sunday, Mar 30, 2025 - 03:40 PM (IST)

Chaitra Navratri 2025: शक्ति की अधिष्ठात्री मां दुर्गा की उपासना का त्योहार चैत्र नवरात्र का शुभारंभ रविवार से शुरू होने के साथ ही पहले दिन मंदिरों में माता शैलपुत्री की पूजा के लिए सुबह से ही शहर के देवी मंदिरों पर देवी भक्तों की भीड़ उमड़ी। श्रद्धालु माता की प्रतिमा पर चुनरी, सिंदूर और पुष्प चढाकर परिवार के लिए सुख, शांति और संपन्नता बनाए रखने के लिए प्रार्थना किया। शहर के प्रमुख देवी मंदिरों के बाहर दर्शन पूजन के लिए सुबह चार बजे से श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही। मंदिरों में माता के जयकारों की गूंज होती रही। अलोपीबाग स्थित माता अलोपशंकरी, मीरापुर स्थित मां ललिता देवी, कल्याणी देवी स्थित मां कल्याणी, चौक स्थित खेमा माई, मुटठीगंज स्थित काली बाड़ी मंदिर मां के जयकारे के साथ घंटी और घड़ियाल तथा शंख ध्वनि गूंजती रही। देवी मंदिरों में आने वाला प्रत्येक श्रद्धालु देवी मां की झलक पाने को आतुर दिखे। 

मां के दर्शनों के लिए घंटों तक लाइन में लगे रहे श्रद्धालु 
श्रद्धालु घंटों तक लाइन में खड़े रहे और फिर मां के दरबार में पहुंचे और उनके चरणों में मत्था टेका। मंदिरों में भीड़ इतनी ज्यादा हो गई कि शारीरिक दूरी का पालन भी नहीं सका, पुलिस भी इसका पालन करने के लिए जूझती दिखी। रविवार को प्रतिपदा तिथि में कलश, गणेश-अम्बिका, नवग्रह, पंचदेव, षोडशमातृका सहित भगवती का आवाहन एवं विधिविधान से पूजन किया गया। पूजन में गंगाजल, पंचामृत, मौली, अक्षत, चंदन, फूलमाला, इत्र, धुप-दीप, नैवेद्य, पान-सुपारी अर्पित कर कर्पूर से आरती हुयी। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में प्रत्येक दिन माता के नौ स्वरूपों में पहले दिन शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाएगी।               

भोर से ही श्रद्धालुओं का लगा तांता 
अलोप शंकरी देवी मंदिर के मंहत यमुनापुरी ने बताया कि यहां पूरे भारत से विशेष कर दक्षिण भारत से बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए आते हैं। यह इकलौता मंदिर है जहां देवी नहीं बल्कि एक पालना की पूजा होती है। इस पालना को स्पर्श और दर्शन कर श्रद्धालु पूरे भाव से पूजा अर्चना करते हैं। पूरे नवरात्रि भर यहां भोर से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। उन्होंने स्कन्द पुराण हवाला देते हुए बताया कि यहां शिवप्रिया सती के दाहिने हाथ की उंगली जलकुंड में गिरकर अलोप हो गई थी, इसी वजह से इस शक्तिपीठ को अलोप शंकरी नाम देकर यहाँ देवी के प्रतीक के रूप में पालना रख दिया गया। यहां आने वाले श्रद्धालु किसी मूर्ति के बजाय इसी पालने की पूजा करते हैं। नवरात्र पर यहां विशेष आयोजन होते हैं, जिसमे भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। मंदिर के अंदर बने पालने का दर्शन करने के लिए लंबी कतार लगती है।        


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Content Editor

Pooja Gill

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