बिटिया ब्याहने के पहले जरूर पढ़ लें ये ख़बर, KDA के विभागीय अधिकारियों की लापरवाही से कहीं हो न जाएं ठगी का शिकार
punjabkesari.in Monday, Nov 24, 2025 - 06:17 PM (IST)
कानपुर [प्रांजुल मिश्रा] : कानपुर विकास प्राधिकरण (KDA) एक गंभीर विवाद के केंद्र में है विभागीय लापरवाही, संरक्षण और कमीशनखोरी की आशंकाओं के बीच यह खुलासा हुआ है कि कई आउटसोर्सिंग कर्मचारी स्वयं को सरकारी अधिकारी समझ कर केबिन में बकायदा नेम प्लेट लगाकर बैठ रहे हैं। यह न केवल कानूनन गलत है बल्कि आम नागरिकों, विशेषकर रिश्ता तय करने वाले परिवारों के लिए जोखिम भरा साबित हो सकता है। प्राधिकरण में विभागीय अधिकारियों की लापरवाही और अंदरूनी संरक्षण ने एक बड़े सवाल को जन्म दे दिया है। विभाग में तैनात आउटसोर्सिंग कर्मी खुद को सरकारी अधिकारी समझ न केवल लोगों को भ्रमित कर रहे हैं, बल्कि आयोग और प्राधिकरण की छवि को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। चिंता की बात यह है कि ऐसी स्थिति में आम नागरिक ठगी या भ्रम का शिकार हो सकते हैं, खासकर तब जब कोई पिता अपनी बेटी का रिश्ता तय करने से पहले सामने वाले व्यक्ति के सरकारी पद को सत्यापित भी न कर पाए क्योंकि खासतौर पर बेटियों के रिश्ता तय करने वाले परिवारों—के लिए भी बड़ी चेतावनी बनकर उभर रहा है।

आउटसोर्सिंग कर्मी बनें ‘अवर अभियंता’?
सूत्रों के अनुसार KDA के केयरटेकर विभाग में तैनात आउटसोर्सिंग कर्मी अभिजीत पटेल ने खुद को ‘अवर अभियंता (JE) के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है। जबकि विभाग के नियमों के अनुसार उसका काम केवल फाइल तैयार करना है और उसे किसी भी प्रकार के दस्तावेज़ पर सिग्नेचर अथवा तकनीकी निर्णय लेने की कोई अधिकृत पावर नहीं है। इतना ही नहीं—बिना अनुमति के उसने सहायक अभियंता और अवर अभियंताओं के केबिनों के बीच अपना ‘नेम प्लेट’ लगा लिया और एक अलग केबिन भी कब्जे में ले लिया। इसी तरह से जानकारी में आया कि एक और आउटसोर्सिंग कर्मचारी नीरज यादव भी केबिन में बाकायदा नेम प्लेट लगाकर ‘अवर अभियंता’ की भूमिका निभा रहा है। वह भी उसी तरह बैठता है, जैसे नियमित सरकारी JE बैठते हैं। इसी तरह प्राधिकरण में तैनात एक बाबू का बेटा भी आउट सोर्सिंग कर्मचारी है वह भी सरकारी जेई की तरह केबिन में नेम प्लेट लगाकर बैठ रहा है।
1- यह सब कैसे हुआ?
2 - किस अधिकारी की अनुमति से..?
3- किसके संरक्षण में?
इन सवालों ने पूरे विभाग को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इससे विभाग के अंदर बड़ी असहज स्थिति पैदा हो गई है।

अवर अभियंता बोला “यह भ्रम फैलाएगा, लोग ठगी का शिकार होंगे”
एक सरकारी अवर अभियंता ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताया “हम लोग शासन से नियुक्त अधिकारी हैं, लेकिन आउटसोर्सिंग कर्मी किसी तीसरी पार्टी कंपनी के माध्यम से सिर्फ मदद लेने के लिए तैनात होते हैं। यदि ऐसे लोग हमारे बराबर केबिन में बैठेंगे और हमारी तरह नेम प्लेट लगाएंगे, तो लोग भ्रमित होंगे। सरकारी कर्मचारियों पर नौकरी जाने का डर होता है, लेकिन आउटसोर्सिंग कर्मियों पर ऐसा कोई दबाव नहीं है। ऐसे में भ्रष्टाचार या ठगी की संभावना बढ़ जाती है।”

कमीशन खोरी का खेल — 2% और 5% में हिस्सेदारी?
विभागीय सूत्रों के अनुसार यह पूरा खेल कमीशन खोरी से जुड़ा हो सकता है। विभाग में चल रहे कार्यों पर ठेकेदारों से होने वाले 2%–5% के कमीशन में आउटसोर्सिंग कर्मियों को हिस्सेदार बनाने के लिए उन्हें अधिकारी जैसा दर्जा, केबिन, नेम प्लेट और फाइलों तक अप्रत्यक्ष पहुंच जैसी सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं। यदि ऐसा है, तो यह KDA की बड़ी अंदरूनी गड़बड़ी में से एक मानी जा सकती है।

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यह मामला सामाजिक रूप से भी संवेदनशील है। शादी-ब्याह में परिवार अक्सर युवक की सरकारी नौकरी और पद देखकर निर्णय लेते हैं। ऐसे में यदि कोई आउटसोर्सिंग कर्मचारी ही स्वयं को सरकारी अधिकारी बनकर बैठा हो तो परिवार ठगी का शिकार हो सकता है।

क्या बोले KDA के जिम्मेदार अधिकारी
KDA के सचिव अभय पाण्डेय से जब इस पूरे प्रकरण पर बातचीत की गई, तो उन्होंने कहा “मामला प्रकाश में आया है। यदि ऐसा कुछ है तो कार्मिक से पता कराकर दिखवाता हूं। किसी के साथ ठगी होती है तो तत्काल कार्रवाई की जाएगी।”
क्या बोले कार्मिक के OSD
कार्मिक विभाग के OSD अजय कुमार ने पूरे मामले पर कहा “यदि ऐसा कुछ पाया जाता है तो शासन के नियमों के अनुसार विधिक कार्रवाई की जाएगी। किसी भी तरह की चूक बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”
इस पूरे प्रकरण ने विभागीय सिस्टम, अधिकारियों की भूमिका, आउटसोर्सिंग व्यवस्था और संभावित भ्रष्टाचार पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह है कि KDA प्रबंधन इस मामले में क्या कार्रवाई करता है और क्या दोषी कर्मचारियों व संरक्षण देने वाले अधिकारियों पर भी कार्रवाई होगी।

