पूर्वांचल यूपी के टॉप 3 दलबदलू नेता, इन नेताओं ने माहौल देखकर बदला पाला

punjabkesari.in Saturday, May 18, 2024 - 05:12 PM (IST)

UP Politics: पूर्वांचल य़ूपी का राजनीतिक अंदाज हमेशा अलग होता है, कहा जाता है कि पुर्वांचल में जनता अपना नेता काम, विकास, शिक्षा, नौकरी, धर्म के आधार पर नहीं बल्कि बिरादरी के आधार पर चुनती है। पूर्वांचल ने कई जाति आधारित मुद्दों पर राजनीति करने वाले को नेताओं को अर्श से फर्श तक पहुंचाया है। 

इसके साथ ही यहां के नेताओं की राजनीति, सत्ता के इर्द-गिर्द घूमती है उन्हें भली भांति पता होता है कि कब किसकी सत्ता में शामिल होना है कब किसका साथ छोड़ देना है, यूं कहे तो पुर्वांचल की राजनीति में दलबदलूओं का अहम रोल होता है। फिलहाल आज हम बात करेंगे पुर्वांचल उत्तर प्रदेश के कुछ नामी दलबदलू नेताओं के बारे में और यह भी जानेंगे 2014 से लेकर 2024 के बीच पार्टी बदलने के बाद से दूसरें पार्टियों में उनकी क्या स्थिति है ? 
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टॉप लिस्ट में स्वामी प्रसाद मौर्य
पूर्वांचल में दलबलुओं की टॉप लिस्ट में सबसे पहले स्वामी प्रसाद मौर्य आते हैं। यूं कह सकते हैं कि सियासी चोला बदलकर जनता में अपनी पहचान बनाने वाले स्वमी प्रसाद मौर्य कुशीनगर की पडरौना सीट पर 5 बार विधायक रह चुके हैं। जिसमें बसपा से 4 बार जीते थे और भाजपा की टिकट पर एक बार। साल 2017 में वह कैबिनेट मंत्री भी बनाए गए थे। 

इनका दल बदलने का सिलसिला 2016 में होता है। बहुजन समाज पार्टी पर पैसे लेकर टिकट देने का आरोप लगाते हैं और पार्टी से इस्तीफा दे देते हैं। इनके इस्तीफे पर बहन जी भी कहती हैं कि हमारी पार्टी में वशंवाद के लिए कोई जगह नहीं है अच्छा हुआ जो स्वामी प्रसाद मौर्य खुद ही बाहर हो गए। इसके बाद वह जुलाई 2016 में खुद की पार्टी लोकतांत्रिक बहुजन का मंच का बनाते हैं, लेकिन बात उससे भी नहीं बनती है तो वह भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लेते हैं जिसके बदले में भाजपा उन्हें और टिकट देती है औऱ स्वामी प्रसाद मौर्य पडरौना सीट से 5वीं बार विधायक बन जाते हैं, इसके साथ ही वह योगी सरकार में मंत्री भी बने। इतना ही नहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उनकी बेटी भाजपा के टिकट पर सांसद बन गई। 
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लेकिन फिर उन्हें कमल के फूल से भी दूर्गंध आने लगती है और मंत्री पद से इस्तीफा दे देते हैं, फिर साल 2022 में ठीक चुनाव के पहले मौर्या जी को साइकिल की सवारी अच्छी लगती है और सपा में शामिल हो जाते हैं। अखिलेश यादव फिर इन्हें फाजिलनगर विधानसभा से टिकट देते हैं लेकिन मौर्या जी को वहां हार का सामना करना पड़ता है। बाद में सपा ने उन्हें विधान परिषद भेज देती है। इसके बाद स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार रामचरित मानस, हिंदू देवी देवताओं को लेकर विवादित बयान देते हैं, जिसके बाद सपा भी उनसे किनारा कर लेती है।

2024 के चुनाव में टिकट की चाह लेकर कांग्रेस से संपर्क करने की कोशिश करते हैं, लेकिन सपा-कांग्रेस का गठबंधन होने की वजह से वहा भी दाल नहीं गलती जिसके बाद अब वह कुशीनगर सीट से निर्दलीय नामांकन भरा है।

दूसरे नंबर पर ओम प्रकाश राजभर
पूर्वांचल की राजनीति में दलबदलू की लिस्ट में दूसरे नंबर पर आते हैं ओम प्रकाश राजभर अपने अटपटे बयान और राजभर जाति पर राजनीति कर अपनी सियासी पहचान बनाने वाले ओपी राजभर भी पलटी मारने में माहिर हैं।  गरीब कोयला खदान मजदूर के घर पैदा हुए ओपी राजभर 1996 में कांशीराम से प्रभावित होते हैं और बसपा से वाराणसी के जिला अध्यक्ष बन जाते हैं और 2002 में हीं बसपा को छोड़कर अपनी सुहेदव भारतीय समाज पार्टी बनाते हैं शुरूआती दौर में इस पार्टी से चुनाव भी लड़ते हैं लेकिन सफलता हाथ नहीं लगती है। इसके बाद भी राजभर अपनी पार्टी के पीले गमछे को लहराना नहीं छोड़ते हैं। 
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साल 2017 में ओपी राजभर अपनी पार्टी को लेकर भजपा के साथ गठबंधन करते हैं और जहूराबाद विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर सदन पहुंचते हैं, जिसके बाद योगी सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बना दिया जाता है। भाजपा का साथ राजभर को रास नहीं आता है फिर वह 2019 में भाजपा से गठबंधन तोड़कर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं। फिर साल 2022 में विधानसभा का चुनाव आता है और राजभर को लगता है कि उन्हें अपनी नैया पार कराने के लिए बड़ी नाव का सहारा लेना पड़ेगा तो फिर वह सपा के साथ जुड़ जाते हैं, जिसके बाद शोषितों ओर वंचितों का दम दिखाते हुए राजभर ने आजमगढ़ और गाजीपुर में सपा का खाता भी नहीं खुलने दिया। इस गठबंधन से सपा को मजबूती तो मिली थी लेकिन राजभर यहीं नहीं रुके सपा का भी साथ छोड़ दिया और अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में लग गए। 

साल 2023 में मोदी-योगी को बुरा भला कहने वाले राजभर फिर से भाजपा के साथ गठबंधन करते हैं और लंबे समय तक इंतजार के बाद ही सही योगी मंत्री मंडल में शामिल हो जाते हैं। फिलहाल 2024 के चुनाव में  एनडीए गठबंधन की तरफ से उनको एक घोसी सीट दिया गया है, जहां से उनके बेटे अरविंद राजभर चुनाव लड़ लहे हैं। 

तीसरे नंबर पर दारा सिंह चौहान
अपने फायदे के लिए दल बदलने वालो में दारा सिंह चौहान का भी नाम आता है। छात्र राजनीति के बाद कांग्रेस से शुरुआत करने वाले दारा सिंह चौहान 1995 से राजनीति में सक्रिय हुए। उन्होंने साल 1996 में कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। वे लगातार दो बार 1996-2000 और 2000-2006 राज्यसभा सदस्य रहे। 
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साल 2007 में सपा की सरकार गिरते ही दारा सिंह हाथी की सवारी करने के लिए बसपा में शामिल हो गए। बसपा ज्वाइन करने के बाद मायावती ने उन्हें घोसी संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाती है। जहां से जीतकर वह मुख्य सदन पहुंच जाते हैं। सत्ता का लोभ दारा सिंह का यहीं नहीं खत्म हुआ। 

साल 2014 में मोदी लहर के साथ भाजपा आती है तो दारा सिंह 2015 में भाजपा का दामन थाम लेते हैं भाजपा ज्वाइन करते ही उनको मधुबन विधानसभा सीट से टिकट मिल जाता जहां से वह जीतकर सदन पहुंचते हैं और साथ में ही उन्हें योगी सरकार में मंत्री पद भी मिल जाता है फिलहाल वह भाजपा के एमएलसी बनकर कैबिनेट मिनिस्टर की कुर्सी पर काबिज हैं। दो बार राज्यसभा सांसद और एक बार घोसी सीट से सांसद रहे दारा सिंह ने भाजपा, सपा और बसपा में भी सत्ता का सुख लिया है।


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Content Editor

Imran

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