कांशीराम के अनुयायियों की उम्मीदभरी नजरे अखिलेश की तरफ, लेकिन सपा पर नहीं कर पा रहे भरोसा
punjabkesari.in Tuesday, Apr 04, 2023 - 01:28 PM (IST)

रायबरेली: उत्तर प्रदेश में सभी पार्टियां तैयारी तो निकाय चुनाव की कर रही है, लेकिन पूरा फोकस 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर है। भाजपा पसमांदा मुसलमानों को लुभाने में लगी है तो सपा भी इस बार बसपा के कोर वोटरों को अपनी तरफ लाने का प्रयास कर रही है।
इसी क्रम में रायबरेली के मान्यवर कांशीराम महाविद्यालय में बसपा संस्थापक कांशीराम की मूर्ति लगने से उनके अनुयायियों में खुशी हैं। वे सपा की ओर उम्मीदभरी निगाह से देख रहे हैं, लेकिन पूरी तरह से भरोसा कर पाएंगे इस पर संशय है। जनसभा में पहुंचे उन्नाव के बैजू दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएस 4) से जुड़े रहे हैं। कांशीराम की मूर्ति लगने की सूचना पर वह जनसभा में पहुंचे। कहते हैं कि अखिलेश यादव भरोसा दे रहे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य सहित अन्य बसपा पृष्ठभूमि वाले नेता उनके साथ हैं, लेकिन सत्ता मिलने पर भी दलित हितों की रक्षा करेंगे, इस पर संशय है।
बता दें कि अखिलेश यादव के द्वारा कांशीराम की मूर्ति का अनावरण करने के बाद बसपा पार्टी में हलचल गई है। दरअसल, मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने अखिलेश यादव पर हमला बोलते हुए कहा है कि 'मान्यवर के नाम पर रखे जिले कांशीराम नगर का नाम बदलकर कासगंज किया, पंचशील नगर का नाम बदलकर हापुड़, ज्योतिबा फूले नगर का नाम अमरोहा, छत्रपति साहू जी महाराज नगर का नाम बदलकर गौरीगंज, माता रमाबाई नगर का नाम बदलकर कानपुर देहात, प्रबुद्ध नगर का नाम बदलकर शामली कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि "ये सपा वाले मान्यवर साहब की प्रतिमा का अनावरण क्यों कर रहे हैं? ये इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इन्हें पता है कि सत्ता की मास्टर चाबी बहन जी के हाथ में जा रही है। चौकन्ना रहना साथियों, मान्यवर साहेब ने पहले ही ऐसी ताकतों से सतर्क रहने को कहा है।
जानिए कैसे बिखर गए बसपा के वोटर?
बसपा के कुछ वोटरों का मानना है कि मान्यवर कांशीराम ने जो पार्टी में समीकरण बनाए थे, उस समीकरण को मायावती बचाने में असमर्थ रही। उनके बनाए रास्ते पर चल कर मायावती ने 4 बार सीएम बन गई। अब केवल दलित समाज ही रह गया है, जो बसपा को वोट देता है। मान्यवर में 85 फिसदी वाले समीकरण को भाजपा ने तोड़ दिया है और एक बड़े वर्ग ओबीसी को अपने पाले में कर लिया है। कुछ बचे हुए वोटर इस असमंजस में है कि किस पर भरोसा करें, क्योंकि उनका मानना है कि चुनाव से पहले सभी उनके हक की बात करते हैं लेकिन सत्ता में आने के बाद सब भूल जाते हैं।