ये हैं योगाचार्य शांतनु महाराज, ...अध्यात्म के लिए छोड़ दी थी इंजीनियर की नौकरी

punjabkesari.in Friday, Feb 05, 2021 - 05:24 PM (IST)

सहारनपुर: आर्य समाज और सनातन धर्म के बीच सेतु के अनूठे काज में लगे जाने माने योगाचार्य शांतनु महाराज पांच दशक पहले इंजीनियर की नौकरी छोड़ कर अध्यात्म में रम गये थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद कस्बे में स्थित सिद्ध कुटी पर स्वामी शांतनु महाराज तप, साधना और गौ-सेवा, पर्यावरण संवर्धन और गरीब और असहाय की सेवाश्रुता में दिन रात लगे हुए हैं। आज से करीब 50 वर्ष पूर्व उन्होंने संन्यास ले लिया था और अपना घर परिवार छोड़ दिया था।

ओडिशा के में बलांगीर जिले के लोईिंसग्हा नगर निवासी किसान गणेश्वर दास के यहां जन्में शांतनु के घर साधु-संतों, आध्यात्मिक शख्सियतों का आना-जाना था जिनकी सेवा करते-करते बाल मन में उनके जैसा ही बनने की ही प्रबल इच्छा जागृत हो गई। शांतनु महाराज का कहना है ‘‘ सत्संग बिना विवेक ना होए, रामकृपा बिनु सुलभ ना सोए, सतसुद रही सत्संगति पाई, पारस परम कुधातू सुहाई।'' उनका मानना है कि संत संगति किं न करोती पुशाम यानि जीवन में परिवर्तन के लिए सत्संगत आवश्यक है जो प्रभु कृपा से ही मिलती है। एमटेक करने के बाद उन्हे राउरकेला स्टील प्लांट में आकिर्टेक्ट इंजीनियरिंग के तौर पर काम करने का मौका मिला था।

किसान पिता गणेश्वर दास और माता जहान्वी दास की इच्छा थी कि उनका इकलौता पुत्र शानदार कैरियर बनाने के साथ उच्च घराने में विवाह करे मगर भारतीय दर्शन और संन्यास से वशीभूत शांतनु दास हमेशा के लिए घर छोड़कर तप और साधना की सोच रहे थे। उन्होंने राउरकेला स्टील प्लांट में इंजीनियरिंग की सर्विस ज्वाइन करने के बाद माता.पिता से अनुमति मांगी की कि वह संन्यास लेना चाहते हैं और साधना, तपस्या के लिए जाना चाहते हैं। परिवार के लिए ये मुश्किल लम्हें थे लेकिन पुत्र के द्दढ़संकल्प के सामने माता-पिता का स्नेह हल्का पड़ गया। कई वर्षों तक विद्वानों, धर्माचार्यों के संगत में रहने के बाद शांतनु हरिद्वार स्थित गुरूकुल कांगड़ी में पहुंचे जहां उन्होंने नौ विषयों में आचार्य, दो विषयों में एमए, वेद विषय में पीएचडी की शिक्षा पूरी की।

उन्होंने ज्योतिशाचार्य, आयुर्वेद चिकित्सा और संस्कृत विषयों में भी निपुणता हासिल की। कट्टर सनातनधर्मी होने के बावजूद उन्होंने आर्य समाज के धर्मग्रंथों का भी गहन अध्ययन किया। उनके ऊपर आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती की शिक्षाओं का गहरा असर पड़ा। वह सनातन धर्म के साथ.साथ आर्य समाज धर्म में भी पारंगत हो गए। पिछले साल 73 वर्ष के हो चुके स्वामी शांतनु जी महाराज वर्ष 2002 से सिद्ध कुटी पर अपना आश्रम बनाकर निरंतर अध्यात्म की साधना में लीन हैं। वह आसपास के क्षेत्रों और गांवों में लोगों के यहां यज्ञ कराते हैं। सनातन धर्म की शिक्षाओं के साथ.साथ हवन और यज्ञ करने पर भी बल देते हैं। योग कला में निपुण होने के साथ.साथ आर्य समाज और सनातन धर्म के लिए सेतु का भी काम करते हैं। आर्य समाज में निष्णात होने के कारण बहुत से सनातनधर्मी उनसे चिढ़ते हैं और खार भी खाते हैं। प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद ऐसे अनेक ग्रामीण जो दूध ना देने वाली गायों को शांतनु जी के आश्रम में सौंप गए। 

स्वामी जी के आश्रम में अनेक दूध देने वाली गाएं भी हैं जिनके दूध की आय से वह गौ पालन के अपने दायित्व का निर्वहन करते हैं। जिस कुटी में स्वामी जी का प्रवास है, वह पर्यावरणीय द्दष्टि से अत्यंत अनुकूल है। विद्वतजनों, साधु संतों का स्वामी जी की कुटिया पर आने, रहने का अनवरत क्रम बना रहता हैं। स्वामी शांतनु जी महाराज प्रत्येक शनिवार को मौन व्रत धारण करते हैं। उनके जीवन की एक अहम् बात यह भी है कि घर छोड़ने और संन्यासी बनने के करीब 50 साल बाद उनके माता.पिता का उनसे देवबंद में इसी कुटिया पर उनका मिलन हुआ। अपने माता-पिता के स्वास्थ्य की जानकारी लेने के लिए अब कभी-कभार शांतनु जी महाराज उड़ीसा अपने माता-पिता के पास चले जाते हैं।

स्वामी शांतनु जी महाराज को भौतिक सुखों को त्यागने, घर-गृहस्ती ना बसाने और परिवार का त्याग करने का कोई भी मलाल नहीं है। वह यहां आश्रम में नीचे जमीन पर ही सोते हैं। गऊ माताओं को स्वयं अपने हाथों चारा-पानी कराते हैं। आस-पास के परोपकारी दानी, परोपकारी किसान स्वामी जी को गऊ माताओं के लिए एवं उनके यहां आने-जाने वालें साधु संतों के लिए और खुद स्वामी जी के लिए दयालुता के साथ अन्न और धन का दान करते हैं।


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Content Writer

Umakant yadav

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