HC से बोली योगी सरकार- हाथरस के DM को लेकर खेला जा रहा राजनीतिक खेला, उन्हें हटाया नहीं जा सकता

punjabkesari.in Thursday, Dec 03, 2020 - 11:29 AM (IST)

लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में प्रदेश के चर्चित हाथरस काण्ड मामले में राज्य सरकार ने वहां के जिलाधिकारी प्रवीण कुमार को न हटाने की बात कही । इसकी जानकारी देते हुए सरकार की ओर से इसकी चार वजहें भी अदालत को बताईं गई है । इसके साथ ही पीड़िता के रात में कराए गए अन्तिम संस्कार को भी सरकार की ओर से तथ्य पेश कर उचित ठहराने की बात भी की गई है । यह भी कहा कि इस सम्बन्ध में हाथरस के जिलाधिकारी ने कुछ भी गलत नहीं किया।

बता दें कि मामले में स्वयं संज्ञान वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायामूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ के समक्ष प्रदेश सरकार की तरफ से पेश अधिवक्ता ने यह जानकारी दी। गत 25 नवंबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उनसे पूछा था कि हाथरस के डीएम को वहाँ बनाए रखने को लेकर उनके पास क्या निर्देश हैं। कोर्ट ने सुनवाई के बाद आदेश दिया, जो बुधवार को हाईकोर्ट की वेबसाईट पर उपलब्ध हुआ।

आदेश के मुताबिक कोर्ट के पूछने पर सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ता एसवी राजू ने कहा कि इस मुद्दे पर गौर करने के बाद सरकार ने हाथरस के डीएम को न हटाने का निर्णय लिया है। इसका पहला कारण बताया कि राजनीतिक खेल खेला जा रहा है और राजनीतिक दबाव बनाने को राजनीतिक दलों ने अन्यथा वजहों के साथ डीएम के तबादले को राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। दूसरा कारण यह बताया कि मामले की तफ्तीश संबंधी साक्ष्य में डीएम के जरिए छेड़छाड़ का सवाल ही पैदा नहीं होता है। तीसरा कारण यह कि पीड़िता के परिवार की सुरक्षा अब सीआरपीएफ के हाथ में है, जिसका राज्य सरकार व इसके प्राधिकारियों से कोई सरोकार नहीं है।

उन्होंने कहा कि चौथे मामले की विवेचना सीबीआई कर रही है। इसमें भी राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है। राज्य सरकार के वकील ने पीड़िता के रात में कराए गए अन्तिम संस्कार को तथ्यों के साथ उचित ठहराने की कोशिश भी की। यह भी कहा कि इस सम्बन्ध में हाथरस के जिलाधिकारी ने कुछ भी गलत नहीं किया। अदालत ने पहले गत 12 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान हाथरस में परिवार की मर्जी के बिना रात में मृतका का अंतिम संस्कार किए जाने पर तीखी टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि बिना धार्मिक संस्कारों के युवती का दाह संस्कार करना पीड़ित उसके स्वजन और रिश्तेदारों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है।

 

 

 


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Moulshree Tripathi

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