लिंग परिवर्तन कराकर महिला से पुरुष बना व्यक्ति, हाई कोर्ट का आदेश- नया अंक पत्र जारी करे माध्यमिक शिक्षा परिषद
punjabkesari.in Sunday, Nov 09, 2025 - 01:57 PM (IST)
प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश के शिक्षा विभाग के अधिकारियों को लिंग परिवर्तन कराकर महिला से पुरुष बने एक व्यक्ति के शैक्षणिक दस्तावेजों में आवश्यक बदलाव करके उसे नया अंक पत्र एवं प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया है। शरद रोशन सिंह नाम के व्यक्ति की रिट याचिका स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने माध्यमिक शिक्षा परिषद, बरेली के क्षेत्रीय सचिव के आठ अप्रैल, 2025 को जारी आदेश रद्द कर दिया।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति की मान्यता रद्द
क्षेत्रीय सचिव ने लिंग परिवर्तन के बाद याचिकाकर्ता का नाम बदलने का आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया था कि संबंधित प्रावधान और सरकारी आदेश में शैक्षणिक दस्तावेजों में बहुत देरी से नाम में सुधार करने की कोई प्रक्रिया उपलब्ध नहीं है और ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) कानून, 2019 के प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होते। उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता को उक्त कानून के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्ति की मान्यता दी गई थी। संबंधित जिला मजिस्ट्रेट ने 2019 के कानून की धारा छह के तहत याचिकाकर्ता को एक पहचान पत्र भी जारी किया था।
माध्यमिक शिक्षा परिषद
याचिकाकर्ता ने महिला से पुरुष बनने के लिए सर्जरी कराई थी और उक्त अधिनियम की धारा सात के तहत जिला मजिस्ट्रेट ने उसे एक प्रमाण पत्र जारी किया था। इसके बाद उसने शैक्षणिक दस्तावेजों में नाम परिवर्तन के लिए आवेदन किया जिसे आठ अप्रैल, 2025 के आदेश के तहत क्षेत्रीय सचिव, माध्यमिक शिक्षा परिषद ने खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एचआर मिश्रा और अधिवक्ता चित्रांगदा नारायण ने उच्चतम न्यायालय और अन्य राज्यों के उच्च न्यायालयों के विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया जिसमें लिंग परिवर्तन के बाद नाम बदलवाने के याचिकाकर्ता के अधिकारों पर जोर दिया गया।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम, 2019
अदालत ने बृहस्पतिवार को दिए अपने निर्णय में कहा, “ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 एक विशेष अधिनियम है जिसकी धारा 20 में यह व्यवस्था दी गई है कि इस अधिनियम के प्रावधान वर्तमान में लागू किसी अन्य कानून के अतिरिक्त होंगे ना कि उसके प्रतिकूल।” अदालत ने कहा, “इसलिए संबंधित प्रतिवादियों (राज्य के शिक्षा अधिकारी) ने 2019 के कानून के प्रावधानों को याचिकाकर्ता के पक्ष में लागू ना कर एक कानूनी गलती की है।

