बागपत: नदियों से हो रहे प्रदूषण को लेकर की गई पंचायत

punjabkesari.in Wednesday, Oct 09, 2019 - 01:43 PM (IST)

बागपत: उत्तर-प्रदेश के बागपत जिले में स्थित राजकीय कन्या इन्टर कालेज, दाहा में प्रदूषित जल को लेकर 6 जिलों के लोगों की पंचायत हुई। पंचायत में पूर्व साइंटिस्ट डा. चंद्रवीर सिंह ने कहा कि मेरठ, सहारनपुर, गाजियाबाद, बागपत, मुजफ्फर नगर और शामली जनपदों के 148 गांवों के पास से होकर बह रही हिंडन, कृष्णा और काली नदियों के प्रदूषित जल से लाखों लोग प्रभावित हो रहे है। जबकि सैंकड़ों लोगों की कैंसर जैसी घातक बीमारी से मौत हो चुकी है। नदियों में बह रहे प्रदूषित जल को लेकर एनजीटी तो सख्त है। लेकिन प्रशासन का ढुल-मुल रवैया बना हुआ है। अभी तक इन नदियों के पानी को स्वच्छ नहीं बनाया जा रहा है। जबकि एनजीटी ने स्पष्ट कहा है कि सरकार नदियों के पानी को शुद्ध कर उसे नहाने योग्य बनाएगी।
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जिसके बाद एनजीटी ने उतर प्रदेश सरकार को पांच करोड़ की परफॉर्मेंस गारंटी देने का आदेश दिया था। एनजीटी ने यह भी आदेश दिया था कि प्रदूषित पानी देने वाले सभी हैंडपंपो को उखाड़कर सरकार जनता को शुद्ध पानी मुहैया कराए। पानी से होने वाली बीमारी से पीड़ित लोगों का इलाज कराए साथ ही पीड़ित लोगों को सरकारी नौकरियां दें। 124 फैक्ट्रियों में से 118 बंद करा दिया गया था जब दोआबा पर्यावरण समिति ने यह उजागर किया कि ऐ प्रदूषण फैला रही हैं। लेकिन पता चला की विभागों ने उन्हें फिर से चालू करा दिया। नदियों के पानी को स्वच्छ दर्शा दिया गया। इस पर मुख्य सचिव ने आदेश दिया था कि जो अधिकारी ठीक काम नहीं कर रहे उन्हें हटा दिया जाए। इस पूरे मामले में कार्रवाई न होने के कारण पंचायत में निर्णय लिया गया कि गांव-गांव लोगों को जागरूक किया जायेगा।
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धरातल पर कार्य नंगनाय है लोग बीमारियों से पीड़ित है साथ ही गंदा पानी-पीने को मजबूर हैं: डा.चंद्रवीर सिंह (सीनियर साइंटिस्ट)
यह पंचयात पर्यावरण के मुद्दे को लेकर आयोजित की गई है। हिंडन, कृष्णा और काली नदी में पानी प्रदूषित हो गया है। पानी के प्रदूषण से हैंडपम्प और ट्यूवेल खराब हो गए। जिसके बाद नदियों के पानी-पीने से बीमारियां हो रही हैं। उनसे फीड बैक लेने के लिए पंचयात की गई। डा. चंद्रवीर सिंह (सीनियर साइंटिस्ट) ने बताया कि एनजीटी ने कई फैसले बड़े ऐतिहासिक किए। जिसके बारे में इसकी कम्पयन्स हुई या नहीं उसकी पालना गांव के लेवल पर हो रही है या नहीं। "हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। हजारों लोग ऐसी अवस्था में हैं ना वो चल पाते हैं ना ही वो बैठ पाते हैं और दूसरे लोग पीड़ित हैं। जिनके संज्ञान के लिए एनजीटी ने यहां के डीएम, सीएमओ तथा जल निगम को सभी कोनेक आदेश पारित किया था। कि गांव गांव जाकर के कैम्प लगाए पानी के पीने की व्यवस्था करें, या टैंककर द्वारा भेजे जिसमें जीपीएस लगा हो पाइप वाटर सप्लाई से भेजे, टंकियां लगाएं लेकिन अभी तक कोई भी ऐसा संतोष जनक कार्य धरातल पर नहीं दिखाई देता। जैसा कि आज गांव के लोगों ने बताया अभी तक धरातल पर कार्य नंगनाय है, लोग बीमारियों से पीड़ित है साथ ही गंदा पानी-पीने को मजबूर हैं।
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अभी तक लोग संतुष्ट नहीं है 148 गाँव की जलनिगम ने एफिडेविट एनजीटी को दिया था। उसमें सिर्फ उन्होंने ये माना है कि कुल 41 जगहों पर उन्होंने पीने के पानी की व्यवस्था की है। जबकि 107 गांव ऐसे है जहां पर डीपीआर और प्रोजेक्ट रिपोर्ट अभी तक नहीं बनाई गई। जिसको लेकर एनजीटी ने बड़ा गंभीर संज्ञान लिया पूछा कि- कौन अधिकारी इसके लिए दोषी है क्यों अब तक वो फ़ाइल पर हाथ रख कर के बैठे रहे सरकार को क्यों नहीं भेजा।

भारतवर्ष एक आर्यन परम्परा का धनी है। जैसा कि वेदों में कहा गया है कि लाश को नदी में ना फेको  जो संस्कार है। डा. चंद्रवीर सिंह (सीनियर साइंटिस्ट) ने अपना प्रयोग बताया कि शुद्ध लाश तब होती है जब लाश को जला दी जाए। 1200 डिग्री टेम्परेचर से ज्यादा टेम्परेचर होगा तो उसमें ऐश प्लस ऑर्गेनिक जो कंटेंट होते हैं उसमें इम्प्योरिटी कम रह जाती है। पर्सनल सुझाव ऐ है कि उसका अन्तिम संस्कार करें वैदिक रीति से वो सबसे नंबर 1 समाधान है।

 

 

 


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Ajay kumar

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