''संविधान हत्या दिवस'' मनाने के फैसले में नहीं कर सकते हस्तक्षेप: इलाहाबाद हाईकोर्ट
punjabkesari.in Saturday, Jul 27, 2024 - 12:45 PM (IST)
लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने 25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मनाने के केंद्र सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि यह सरकार का अपना नजरिया है कि 25 जून 1975 को आपातकाल के दौरान हुई 'ज्यादतियों' को वह कैसे देखती है। उच्च न्यायालय ने कहा कि वह राजनीतिक पचड़े में नहीं पड़ सकती है और वह सरकार के राजनीतिक ज्ञान पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकती है।
संविधान हत्या दिवस नामकरण बहुत ही अनुचित हैः याचिकाकर्ता
न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा और न्यायमूर्ति श्रीप्रकाश सिंह की पीठ ने यह कहते हुए भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी अमिताभ ठाकुर की याचिका को निस्तारित कर दिया। याचिकाकर्ता ने 11 और 13 जुलाई 2024 को जारी दो शासनादेशों को चुनौती देकर उन्हें खारिज करने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि संविधान हत्या दिवस नामकरण बहुत ही अनुचित है और यह लोगों को गलत संदेश देता है।
अदालत ने किया दखल देने से इनकार
याचिका में कहा गया कि भारत के संविधान की हत्या नहीं हो सकती है और यदि ऐसा हुआ होता तो आज देश में प्रजातंत्र नहीं होता। याचिकाकर्ता का कहना था कि आपातकाल के दौरान लोगों पर 'अत्याचार' हुए किन्तु साथ ही सुझाया कि 25 जून को संविधान रक्षा दिवस के नाम से मनाना ज्यादा उचित होता। अदालत ने याचिका को कुछ देर सुनने के बाद इस मामले में कोई दखल देने से इनकार कर दिया।
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि गर्भ गिराना या उसे बनाए रखना, यह पूरी तरह से महिला का फैसला होना चाहिए। अदालत ने यह टिप्पणी 15 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता के मामले में की। हालांकि, अदालत ने पीड़िता को 32 सप्ताह का गर्भ बनाए रखने की अनुमति प्रदान कर दी।