इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: ''धर्म परिवर्तन सर्टिफिकेट फर्जी तो शादी भी अवैध'' – लड़की को भेजा नारी संरक्षण गृह
punjabkesari.in Wednesday, Sep 24, 2025 - 12:35 PM (IST)

Prayagraj News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि फर्जी धर्म परिवर्तन प्रमाणपत्र के आधार पर की गई शादी वैध नहीं मानी जा सकती। कोर्ट ने साफ कहा कि अगर किसी ने वास्तव में धर्म परिवर्तन नहीं किया है, तो उस आधार पर शादी करना कानून के खिलाफ है। यह फैसला जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की एकल पीठ ने दिया। कोर्ट ने यह आदेश एक ऐसे मामले में सुनाया जिसमें लड़के और लड़की ने अपनी सुरक्षा के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
क्या है पूरा मामला?
मोहम्मद बिन कासिम उर्फ अकबर और जैनब परवीन उर्फ चंद्र कांता ने कोर्ट में दावा किया कि उन्होंने आपसी रजामंदी से शादी की है। उन्होंने बताया कि 22 फरवरी 2025 को चंद्र कांता ने इस्लाम धर्म कबूल किया फिर 26 मई 2025 को अकबर के साथ निकाह किया, धर्म परिवर्तन का प्रमाणपत्र खानकाह आलिया अरीफिया, कौशांबी से जारी बताया गया। दोनों ने कोर्ट से सुरक्षा की मांग की थी, क्योंकि परिवार इस शादी से नाराज था।
जांच में निकला धर्म परिवर्तन प्रमाणपत्र फर्जी
सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि यह प्रमाणपत्र असली नहीं है। धर्म परिवर्तन प्रमाणपत्र देने वाली संस्था 'जामिया आरफा सैयद सरवन' के सचिव ने साफ कहा कि उन्होंने ऐसा कोई प्रमाणपत्र जारी ही नहीं किया। इस आधार पर कोर्ट ने माना कि धर्म परिवर्तन नहीं हुआ था, इसलिए निकाह भी वैध नहीं माना जा सकता।
कोर्ट का आदेश
निकाह अवैध घोषित – क्योंकि वह फर्जी धर्म परिवर्तन प्रमाणपत्र पर आधारित था।
शादी रद्द नहीं, पंजीकरण का निर्देश
कोर्ट ने कहा कि दोनों बालिग हैं, इसलिए अगर वे साथ रहना चाहते हैं, तो विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) के तहत बिना धर्म बदले शादी कर सकते हैं। चूंकि गाजीपुर में इस कानून के तहत शादी रजिस्ट्रेशन की सुविधा नहीं है, इसलिए यह प्रक्रिया प्रयागराज में पूरी करने को कहा गया।
लड़की को नारी संरक्षण गृह भेजने का आदेश
चंद्र कांता ने अपने घर वालों के साथ जाने से इनकार कर दिया, इसलिए कोर्ट ने आदेश दिया कि जब तक शादी की कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक उसे प्रयागराज के नारी संरक्षण गृह में रखा जाए।
वकील पर कार्रवाई
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील को बिना जांच-पड़ताल के फर्जी दस्तावेज पेश करने के लिए जिम्मेदार ठहराया और उन पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया। यह राशि 15 दिन में हाईकोर्ट मध्यस्थता केंद्र में जमा करनी होगी। अगर जुर्माना जमा नहीं हुआ, तो जिला प्रशासन (DM) के जरिए वसूली होगी।
प्रशासन को तत्काल निर्देश
कोर्ट ने आदेश दिया कि दो घंटे के भीतर प्रयागराज के जिला प्रोबेशन अधिकारी, डीएम, और पुलिस कमिश्नर को सूचना दी जाए। लड़की को सुरक्षित रूप से संरक्षण गृह भेजने की जिम्मेदारी प्रशासन की होगी। 16 अक्टूबर 2025 तक पूरी प्रक्रिया की रिपोर्ट कोर्ट में पेश करनी होगी।
कोर्ट की महत्वपूर्ण बात
कोर्ट ने साफ किया कि भारत का संविधान दो बालिगों को अपनी मर्जी से शादी करने की पूरी आजादी देता है। लेकिन अगर शादी फर्जी दस्तावेजों पर आधारित हो, तो उसे वैध नहीं माना जा सकता। अंतर-धार्मिक विवाह के लिए धर्म बदलने की जरूरत नहीं है। विशेष विवाह अधिनियम के तहत ऐसी शादी कानूनी और वैध रूप से की जा सकती है।