Navratri 2022: प्रयागराज में दिखी अनोखी परंपरा, मां काली का रूप धारण कर निकाली गई ‘स्वांग यात्रा’…लोगों की उमड़ी भीड़

punjabkesari.in Friday, Sep 30, 2022 - 01:19 PM (IST)

प्रयागराज: शक्ति के महापर्व नवरात्री में देश में हर जगह माँ के भक्त देवी के दर्शन के लिए पूजा पंडालों में जाते हैं, लेकिन संगम नगरी प्रयागराज में शारदीय नवरात्रि में माँ भगवती खुद पैदल चल कर भक्तों के पास पहुँचती हैं। जिसमे रामायण के एक खास प्रसंग का स्वांग होता है। जिसे 'काली स्वांग' कहते हैं। इस स्वांग में माँ सीता, काली के वेश में रामचंद्र के रथ के आगे भुजाली लेकर चलती है और खर दूषण -वध का स्वांग होता है। इस मौके पर हजारों भक्त माँ का आर्शीवाद लेने के लिए साथ चलते हैं। इन्हें इस बात की परवाह भी नहीं होती की काली पात्र के हाथ में लहराती भुझाली से वो घायल भी हो जाते है, ये स्वांग नवरात्री के दूसरे दिन से सप्तमी तक आयोजित होता है। जिसका हर साल श्रद्धालु बेसब्री से इंतज़ार करते हैं।

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काली स्वांग का ये अनोखा और अदभुत आयोजन
बता दें कि प्रयागराज दारागंज मोहल्ले में काली स्वांग का ये अनोखा और अदभुत आयोजन है। हाथ में भुजाली लेकर हजारों की भीड़ के बीच माँ काली के वेश में काली पात्र मानो स्वयं में माँ काली का ही रूप हो, हाँथ में भुजाली लहराती है। इसके बाद भी लोग माँ का आशीर्वाद लेने को आतुर हैं। ये जानते हैं की भुजाली की चपेट में आकर वो घायल भी हो सकते हैं क्योंकि काली की भूमिका में काली पात्र खुद को काली माँ का ही रूप मान कर व्यवहार करता है। दरअसल ये पूरा दृश्य रामायण के उस प्रसंग से जुड़ा है जिसमे सुपनखा के नाक-कान काटने के बाद खर-दूषण अपनी सेना लेकर राम से युद्ध के लिए आ पहुँचते हैं। तो सीता माता खुद काली का वेश धारण कर राम के रथ के आगे-आगे चलती है और खर-दूषण के वध में अपने पति की सहायता करती हैं।

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काली पात्र बनने के लिए कुछ खास योग्यताएं होना जरुरी
यहाँ पर इस काली स्वांग की परंपरा 200 साल से ज्यादा पुरानी है और हर साल काली के पात्र के चयन के भी कड़े मापदंड होते है की इसमें काली पात्र बनने के लिए कुछ खास योग्यताएं होना जरुरी है। जिन लोगो की इस पात्र में रूचि होती है उनको कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। इसमें सबसे जरुरी होता है पात्र के लिए साल भर पहले से संयमित आचार और फिर कमेटी के लोग उसे चुनते है जो इन कसौटियों पर खरा होता है। शारदीय नवरात्र के द्वितीय से लेकर के सप्तमी तक इसी तरह हर रात मां काली अपने भक्तों की बीच में जाती है। इस अनोखी परंपरा को और बेहतर बताने के लिए कमेटी के महामंत्री जितेंद्र कुमार गौड़ ने हमारे संवाददाता से खास बातचीत की।

 


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Content Writer

Mamta Yadav

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