उत्तर प्रदेश विधान परिषद में कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं
punjabkesari.in Wednesday, Jul 06, 2022 - 01:46 PM (IST)
लखनऊ, छह जुलाई (भाषा) उत्तर प्रदेश विधान परिषद में कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह का कार्यकाल बुधवार को समाप्त हो गया। इसके साथ ही विधानमंडल के इस उच्च सदन के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब यहां देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस का वजूद पूरी तरह खत्म हो गया है।
वर्ष 1887 में वजूद में आयी प्रदेश विधान परिषद में कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उच्च सदन में इस पार्टी का अब कोई भी सदस्य नहीं रह गया है। परिषद के 135 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब देश की सबसे पुरानी पार्टी का इस सदन में कोई सदस्य नहीं रह गया है।
कांग्रेस इस वक्त विधान परिषद में अपना कोई नुमाइंदा भेजने की स्थिति में भी नहीं है, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 403 में से सिर्फ दो सीटों पर ही जीत मिली थी और उसे ढाई प्रतिशत से भी कम वोट मिले थे।
कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता आराधना मिश्रा ने इसे दुखद करार देते हुए कहा है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी का उच्च सदन में प्रतिनिधित्व शून्य हो जाना निश्चित रूप से अफसोस की बात है लेकिन यह लोकतंत्र है और इसमें जनादेश ही सर्वोपरि है।
उन्होंने ''पीटीआई-भाषा'' से बातचीत में विश्वास व्यक्त किया कि कांग्रेस स्थानीय निकाय और शिक्षक कोटे से होने वाले विधान परिषद चुनावों में मेहनत करके सदन में अपने सदस्य भेजने की कोशिश करेगी।
विधान परिषद की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गयी जानकारी के मुताबिक राज्य विधान परिषद का गठन पांच जनवरी 1887 को हुआ था और उसकी पहली बैठक आठ जनवरी 1887 को तत्कालीन इलाहाबाद के ‘थार्नहिल मेमोरियल हॉल’ में हुई थी। वर्ष 1935 में पहली बार ‘गवर्नमेंट आफ इण्डिया एक्ट’ के जरिये विधान परिषद को राज्य विधानमण्डल के दूसरे सदन के तौर पर मान्यता मिली थी।
शुरुआत में इस सदन में सिर्फ नौ सदस्य हुआ करते थे। मगर वर्ष 1909 में इण्डियन काउंसिल अधिनियम के प्रावधानों के तहत विधान परिषद के सदस्यों की संख्या बढ़कर 46 हो गयी, उसके बाद यह और बढ़कर 100 हो गयी। फरवरी 1909 में कांग्रेस नेता मोतीलाल नेहरू इस सदन के सदस्य बने थे। उन्हें विधान परिषद में कांग्रेस का पहला सदस्य माना जाता है। यानी 113 साल बाद बुधवार से ऐसा पहली बार होगा जब उच्च सदन में कांग्रेस का कोई भी नुमाइंदा नहीं होगा।
बुधवार को विधान परिषद के कुल 12 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया। इनमें उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और मंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह भी शामिल हैं लेकिन इन दोनों की हाल में हुए विधान परिषद के चुनाव में जीत के बाद सदन में वापसी हुई है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी (सपा) के छह, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के तीन तथा कांग्रेस के एकमात्र सदस्य का कार्यकाल बुधवार को खत्म हो गया।
सदन में अगर मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधित्व की बात करें तो अब उसके सिर्फ तीन सदस्य ही रह गये हैं। इनमें प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री दानिश आजाद अंसारी और सपा के शाहनवाज खान तथा जासमीर अंसारी शामिल हैं।
प्रदेश की 100 सदस्यीय विधान परिषद में अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 72 सीटों के साथ और भी मजबूत हो गयी है। इसके अलावा मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) के नौ सदस्य हैं। सदन में बहुमत का आंकड़ा 51 सीटों का है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
वर्ष 1887 में वजूद में आयी प्रदेश विधान परिषद में कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उच्च सदन में इस पार्टी का अब कोई भी सदस्य नहीं रह गया है। परिषद के 135 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब देश की सबसे पुरानी पार्टी का इस सदन में कोई सदस्य नहीं रह गया है।
कांग्रेस इस वक्त विधान परिषद में अपना कोई नुमाइंदा भेजने की स्थिति में भी नहीं है, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 403 में से सिर्फ दो सीटों पर ही जीत मिली थी और उसे ढाई प्रतिशत से भी कम वोट मिले थे।
कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता आराधना मिश्रा ने इसे दुखद करार देते हुए कहा है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी का उच्च सदन में प्रतिनिधित्व शून्य हो जाना निश्चित रूप से अफसोस की बात है लेकिन यह लोकतंत्र है और इसमें जनादेश ही सर्वोपरि है।
उन्होंने ''पीटीआई-भाषा'' से बातचीत में विश्वास व्यक्त किया कि कांग्रेस स्थानीय निकाय और शिक्षक कोटे से होने वाले विधान परिषद चुनावों में मेहनत करके सदन में अपने सदस्य भेजने की कोशिश करेगी।
विधान परिषद की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गयी जानकारी के मुताबिक राज्य विधान परिषद का गठन पांच जनवरी 1887 को हुआ था और उसकी पहली बैठक आठ जनवरी 1887 को तत्कालीन इलाहाबाद के ‘थार्नहिल मेमोरियल हॉल’ में हुई थी। वर्ष 1935 में पहली बार ‘गवर्नमेंट आफ इण्डिया एक्ट’ के जरिये विधान परिषद को राज्य विधानमण्डल के दूसरे सदन के तौर पर मान्यता मिली थी।
शुरुआत में इस सदन में सिर्फ नौ सदस्य हुआ करते थे। मगर वर्ष 1909 में इण्डियन काउंसिल अधिनियम के प्रावधानों के तहत विधान परिषद के सदस्यों की संख्या बढ़कर 46 हो गयी, उसके बाद यह और बढ़कर 100 हो गयी। फरवरी 1909 में कांग्रेस नेता मोतीलाल नेहरू इस सदन के सदस्य बने थे। उन्हें विधान परिषद में कांग्रेस का पहला सदस्य माना जाता है। यानी 113 साल बाद बुधवार से ऐसा पहली बार होगा जब उच्च सदन में कांग्रेस का कोई भी नुमाइंदा नहीं होगा।
बुधवार को विधान परिषद के कुल 12 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया। इनमें उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और मंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह भी शामिल हैं लेकिन इन दोनों की हाल में हुए विधान परिषद के चुनाव में जीत के बाद सदन में वापसी हुई है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी (सपा) के छह, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के तीन तथा कांग्रेस के एकमात्र सदस्य का कार्यकाल बुधवार को खत्म हो गया।
सदन में अगर मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधित्व की बात करें तो अब उसके सिर्फ तीन सदस्य ही रह गये हैं। इनमें प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री दानिश आजाद अंसारी और सपा के शाहनवाज खान तथा जासमीर अंसारी शामिल हैं।
प्रदेश की 100 सदस्यीय विधान परिषद में अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 72 सीटों के साथ और भी मजबूत हो गयी है। इसके अलावा मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) के नौ सदस्य हैं। सदन में बहुमत का आंकड़ा 51 सीटों का है।
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