इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम आदेशः विवाह के बाद नाबालिग पीड़िता के साथ संबंध दुष्कर्म नहीं
punjabkesari.in Friday, May 05, 2023 - 05:06 PM (IST)

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में नाबालिग के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने के मामलों में महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए कहा कि जब तक कोई नाबालिग पीड़िता स्पष्ट रूप से शारीरिक संबंध के अस्तित्व से इनकार नहीं करती है, तब तक पीड़िता और आरोपी के बीच शारीरिक संबंध माना जाएगा। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकल पीठ ने पोक्सो अधिनियम के तहत दर्ज दुष्कर्म के मामलों का निस्तारण करते हुए दिया है।
अधिकांश मामलों में पीड़िताओं ने संबंध से किया इनकार
दरअसल अधिकांश मामलों में पीड़िताओं ने सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज अपने बयानों में शारीरिक संबंध होने से इनकार किया। हालांकि मजीद बयान में कुछ पीड़िताओं ने जबरन शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया है। नाबालिग पीड़िताओं के सीआरपीसी के तहत दर्ज बयानों और मजीद बयानों में मतभेद होने के कारण
जांच अधिकारी को एक से अधिक बार भी गवाहों के बयान दर्ज करने की स्वतंत्रता
न्यायालय ने एमिकस क्यूरी के तर्कों पर विचार करते हुए कहा कि जांच अधिकारी एक निष्पक्ष जांच करने के लिए बाध्य है, जो आरोपी और पीड़िता का समान अधिकार है। जांच अधिकारी को एक से अधिक बार भी गवाहों के बयान दर्ज करने की स्वतंत्रता है।
सत्य माना जाता है मजीद बयान
जांच अधिकारी केवल स्पष्टीकरण के उद्देश्य से या पीड़िता के बयान को कमजोर करने के उद्देश्य से और अभियुक्त को अपराध के लिए दोषी बनाने के उद्देश्य से मजीद बयान को रिकॉर्ड नहीं कर सकता है। इसके साथ ही पुलिस या मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया बयान एकबारगी गलत या दबाव में दिया गया बयान माना जा सकता है, लेकिन मनोवैज्ञानिक परामर्श देने के बाद बाल कल्याण समिति के समक्ष दिया गया मजीद बयान सत्य माना जाता है। हालांकि बाल कल्याण समिति के समक्ष दिया गया कोई भी बयान पीड़िता द्वारा मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयान को कमजोर करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। अंत में कोर्ट ने शारीरिक संबंध के आरोपों के संदर्भ में सीआरपीसी और मजीद बयान के तहत दर्ज नाबालिग पीड़िताओं के बयानों में निरंतरता न पाकर सभी जमानत याचिकाओं को स्वीकार करते हुए आरोपियों को सशर्त जमानत दे दी।