दिशा से कुछ भटके भटके से हैं इस बार के चुनावी नारे

punjabkesari.in Monday, Apr 15, 2019 - 03:59 PM (IST)

लखनऊः इस बार के चुनावी मौसम में नये राजनीतिक समीकरणों और प्रचार की आक्रामकता ने नारों का स्वरूप ही बदल दिया है और गली कूचों में छोटी छोटी टोलियों में अकसर विरोधी उम्मीदवार को चुटीले अंदाज में ताने देकर चुनावी माहौल को गर्माने वाले नारे इस बार कहीं ना कहीं अपनी दिशा से भटके भटके से दिख रहे हैं। कभी एक दूसरे के खिलाफ नारा लगाने वाले सपा और बसपा एक साथ हैं तो नयी दोस्ती के मायने और जनसभाओं में लगने वाले नारे भी बदल गये हैं। बात भाजपा और कांग्रेस की करें तो आरोपों-प्रत्यारोपों ने नारों का रूप ले लिया है।
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सोशल मीडिया की आंधी के सामने गिरा नारों का स्तर
युवा कवि शिवम ने कहा,‘‘वो जमाने लद गये जब कवियों और शायरों को नारे लिखने की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी और वे नारे जनमानस में ना सिर्फ लोकप्रिय होते थे बल्कि चुनावी दशा और दिशा भी तय करते थे।‘‘ उन्होंने कहा कि अब कवियों शायरों की लेखनी सोशल मीडिया की आंधी में खो गयी है। हर कोई नया पुराना, लिखने या ना लिखने वाला कुछ गढ़ देता है, इसके अलावा नारों का स्तर भी गिरा है। सत्ताधारी दल की ओर से आया,‘‘मैं भी चौकीदार‘’तो कांग्रेस की ओर से आया‘‘चौकीदार चोर है‘’। इन दो‘वन लाइनर’से सोशल मीडिया पटा पड़ा है।
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फिर एक बार, मोदी सरकार Vs गरीबी पर वार 72 हजार
उन्होंने‘फिर एक बार, मोदी सरकार’को भाजपा का मंत्र बताया तो‘गरीबी पर वार 72 हजार’को कांग्रेस का मजबूत वार कहा। सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को लेकर नारे तो गढ़े गये लेकिन वह ज्यादा मुखर नहीं बन पाये।‘तोड़ दो सारे बंधन को, वोट करो गठबंधन को’और‘जन जन की उम्मीदों के साथी, हैंडपंप, साईकिल और हाथी’चुनावी बयार में चल जरूर रहे हैं।
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गठबंधन के बाद नारों का रंग रूप बदलना स्वाभाविक
दिलचस्प है कि एक समय सपा के खिलाफ ‘चढ़ गुंडन की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर’ का नारा देने वाली बसपा अब सपा के साथ है और 2019 का चुनाव मिल कर लड़ रही है। इस गठबंधन के बाद नारों का रंग रूप बदलना स्वाभाविक था। वहीं‘यूपी को ये साथ पसंद है’का नारा देने वाली सपा को अब कांग्रेस‘नापसंद’है।
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2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में खूब चला बसपा का ये नारा
राजनीतिक विश्लेषक देवव्रत ने कहा,‘‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जयश्रीराम ... 1993 में जब यूपी में सपा और बसपा ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था तो भाजपा को टार्गेट करता हुआ ये नारा काफी र्चिचत रहा।‘‘ देवव्रत ने कुछ पुराने चुनावी नारे याद दिलाए। 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा का नारा ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु महेश है’ ऐसा चला कि गली कूचों में यही गूंजता रहा। उसी चुनाव में उस समय की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी का नारा,‘यूपी में है दम क्योंकि जुर्म यहां है कम’। भारी प्रचार के बावजूद चल नहीं पाया।

2014 में खूब कहा सुना गया ‘अबकी बार मोदी सरकार’
2014 में भाजपा ने नारा दिया,‘अबकी बार मोदी सरकार’जो खूब कहा सुना गया जबकि कांग्रेस का नारा‘कट्टर सोच नहीं, युवा जोश’असर नहीं दिखा पाया। 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का नारा‘ जात पर न पात पर मुहर लगेगी हाथ पर‘, खूब चला था। चुनावी मौसम में नारों को संगीत में पिरोकर लाउडस्पीकर के सहारे आम लोगों तक पहुंचाने वाले लोक कलाकार आशीष कुमार तिवारी और ज्योति ने कहा,‘’इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं ... यह एक समय जनसंघ के ‘जली झोपड़ी भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल’ नारे के जवाब में कांग्रेस का पलटवार था।‘‘

जोरदार नारा रहा-‘अटल, आडवाणी, कमल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान’
उन्होंने बताया कि भाजपा ने शुरूआती दिनों में जोरदार नारा दिया था,‘अटल, आडवाणी, कमल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान’। सोनिया गांधी पर निशाना साधते हुए भाजपा ने 1999 में नारा दिया,‘राम और रोम की लडाई’। इसी तरह राम मंदिर आंदोलन के समय भाजपा और आरएसएस के नारे‘सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे‘,‘ये तो पहली झांकी है, काशी मथुरा बाकी है‘,‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’जनभावनाओं के प्रचंड प्रेरक बने। इस नारे के जवाब में आज तक यह कहकर तंज किया जाता है ...‘‘पर तारीख नहीं बताएंगे ।‘‘

1996 में खूब चला ‘सबको देखा बारी बारी, अबकी बारी अटल बिहारी’
उन्होंने बताया कि भाजपा ने 1996 में नारा दिया था,‘सबको देखा बारी बारी, अबकी बारी अटल बिहारी’खूब चला। पिछले चार दशकों से राजनीति पर पैनी नजर रखने विश्लेषक पी पी सिन्हा ने कहा कि 1989 के चुनाव में वी पी सिंह को लेकर‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है‘, दिया गया नारा उन्हें जनता की नजरों में चढ़ा गया। उन्होंने कहा,‘’1971 में इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया जो जमकर चला। वह अपनी हर चुनावी सभा में भाषण के अंत में एक ही वाक्य बोलती थीं- ‘वे कहते हैं, इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ, फैसला आपको करना है।‘‘

कभी चुनाव का रूख मोड़ दिया करते थे दिलचस्प नारे
मुख्य राजनीतिक दलों के यह दिलचस्प नारे कभी चुनाव का रूख मोड़ दिया करते थे, लेकिन अब न वो टोलियां हैं, न ताने उलाहने और न ही चुटीले नारे। आधुनिकता की आंधी इस परंपरागत चुनावी रस्म को भी उड़ा ले गई।


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Tamanna Bhardwaj

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