किसान आंदोलन के विरोध पर कंगना की टिप्पणी पर अखिलेश का पलटवार, कहा- ''यह बयान नहीं बल्कि किसी को बचाने के लिए ''शब्द ढाल''
punjabkesari.in Wednesday, Aug 28, 2024 - 07:34 AM (IST)
UP Politics News: समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने किसानों के आंदोलन को लेकर विवादास्पद टिप्पणी करने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद कंगना रनौत की आलोचना करते हुए कहा कि यह बयान नहीं बल्कि किसी को बचाने के लिए 'शब्द ढाल' है। यादव ने 'एक्स' पर एक पोस्ट में कहा कि ये भाजपा की स्क्रिप्ट है, जिसे एक अभिनेत्री जी, शीर्ष निर्देशक जी के कहने पर संवाद के रूप में पढ़ रही हैं। जब एक सामान्य राजनीतिज्ञ भी ये समझता है कि किसानों के प्रदेश में ‘किसान-आंदोलन' के बारे में अपशब्द कहने से उनको हानि होगी, तो क्या भाजपाई चाणक्य ये नहीं समझते हैं?" उन्होंने इसी संदेश में आगे कहा कि इस प्रकरण की असली सच्चाई ये है कि ऐसी बात जानबूझकर कहलवायी गयी होगी, जिससे हरियाणा में पहले से तय हो चुकी हार का कारण ‘अभिनेत्री' के बयान को बनाया जा सके और उस हार का दोषारोपण शीर्ष नेतृत्व पर न हो। ये बयान नहीं किसी को बचाने के ‘शब्द-ढाल' है।
ये भाजपा की स्क्रिप्ट है, जिसे एक अभिनेत्री जी, शीर्ष निर्देशक जी के कहने पर संवाद के रूप में पढ़ रही हैं। जब एक सामान्य राजनीतिज्ञ भी ये समझता है कि किसानों के प्रदेश में ‘किसान-आंदोलन’ के बारे में अपशब्द कहने से उनको हानि होगी, तो क्या भाजपाई चाणक्य ये नहीं समझते हैं। इस प्रकरण…
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) August 27, 2024
किसान आंदोलन को लेकर कंगना रनौत ने की विवादास्पद टिप्पणी
दरअसल कंगना ने हाल ही में कहा था कि अगर देश का नेतृत्व मजबूत नहीं होता तो भारत में "बांग्लादेश जैसी स्थिति" पैदा हो सकती थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान वह शव लटक रहे थे और बलात्कार हो रहे थे। जाट किसान बहुल हरियाणा में विधानसभा चुनाव के तहत आगामी एक अक्टूबर को मतदान होने जा रहा है, ऐसे में विपक्ष ने इस मुद्दे को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा पर निशाना साधा है। इसबीच भाजपा ने अपनी सांसद के विचारों से असहमति व्यक्त की है और यह स्पष्ट किया कि उन्हें पार्टी के नीतिगत मामलों पर टिप्पणी करने की न तो अनुमति है और न ही वह इसके लिए अधिकृत हैं। हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और अन्य स्थानों के हजारों किसानों ने कृषि कानूनों (अब निरस्त) को लेकर कई महीनों तक दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन किया था।