कोवैक्सीन साइड इफेक्ट्स: नोटिस जारी होते ही बैकफुट पर आए BHU के वैज्ञानिक, पढ़ें पूरा मामला

punjabkesari.in Wednesday, May 22, 2024 - 07:12 PM (IST)

वाराणसी: कोरोना (Corona) महामारी के दौरान लोगों की जान बचाने के लिए देश में प्रयोग की कोवैक्सीन पर शोध करने वाले BHU के वैज्ञानिक बैकफुट पर आए, आखिर कहां हो गई गलती? कोवैक्सीन पर शोध करने वाले BHU के वैज्ञानिक नोटिस जारी होते ही बैकफुट पर आ गए हैं।  को-वैक्सीन पर शोध के विवाद में बीएचयू के वैज्ञानिकों ने सोमवार को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को जवाब भेजा है। इसमें डॉक्टरों ने खेद जताया है। वहीं आईएमएस की कमेटी ने भी अपनी जांच पूरी कर ली है और शोध पर कई सवाल खड़े किए हैं।

दरअसल, आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने जीरियाट्रिक विभागाध्यक्ष प्रो. शुभ शंख चक्रवर्ती और फार्माकॉलोजी विभाग की डॉ. उपिंदर कौर को नोटिस जारी किया था।  वहीं आईसीएमआर के महानिदेशक ने स्प्रिंगर नेचर जर्नल को पत्र लिखकर आईसीएमआर का नाम हटाने को कहा है। बीएचयू के फार्माकोलॉजी और जीरियाट्रिक विभाग में संयुक्त रूप से को-वैक्सीन पर शोध हुआ था। इसमें 30 फीसदी से ज्यादा किशोरों और वयस्कों पर दुष्प्रभाव का दावा किया गया है। इस रिपोर्ट में आईसीएमआर के प्रति आभार भी जताया गया। उन्होंने इस बात पर आपत्ति जताई कि रिपोर्ट में आईसीएमआर को गलत और भ्रामक तरीके से वर्णित किया गया है। इसके बाद शोध से जुड़े विभागों के डॉक्टरों ने अपना जवाब चिकित्सा विज्ञान संस्थान के निदेशक को भेज दिया। निदेशक प्रो. एसएन संखवार ने इसे आईसीएमआर को भेज दिया है। प्रो. संखवार ने कहा कि इस अध्ययन के संबंध में विविध प्रतिक्रियाएं तथा आईसीएमआर की ओर से अध्ययन में शामिल सदस्यों को प्रेषित संदेश भी विश्वविद्यालय की जानकारी में हैं। संस्थान इस विषय को देख रहा है।

 बीएचयू के विज्ञानियों पर लटकी कार्रवाई की तलवार
कोवैक्सीन पर शोध करने वाले बीएचयू के विज्ञानियों पर तलवार लटकी हुई नजर आ रही है। को-वैक्सीन शोध को लेकर आईएमएस कमेटी की जांच पूरी हो गई है। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट आईएमएस निदेशक प्रो. एसएन संखवार को सौंप दी है। आईसीएमआर ने इस शोध में चार सवाल उठाए थे। आईएमएस निदेशक की ओर से गठित समिति का नेतृत्व आईएमएस डीन रिसर्च प्रो. गोपालनाथ कर रहे थे।उनके अलावा तीन और सदस्य कमेटी में रहे। सोमवार को कमेटी ने 13 पेज के इस रिसर्च का बारीकी से अध्ययन किया। कमेटी ने पाया कि शोध जल्दीबाजी में किया गई है। इसमें मानकों का ध्यान नहीं दिया गया है। इसके साथ ही आईसीएमआर ने जो सवाल उठाए हैं उसी को कमेटी ने भी माना है। निदेशक प्रो. एसएन संखवार ने बताया कि जांच पूरी हो गई है। शोध अधूरा है। इन चार तथ्य को कमेटी ने सही माना

आईसीएमआर के सवालों पर लगी मुहर
-  रिपोर्ट में कहीं इस बात की कोई स्पष्टता नहीं है कि जिन लोगों ने वैक्सीन लगाई और जिन्होंने नहीं लगाई, उनके बीच तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। इस लिहाज से इस रिपोर्ट को कोविड वैक्सिनेशन से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।

-  अध्ययन से यह नहीं पता चलता कि जिन लोगों में भी वैक्सीन के बाद कुछ हुआ, उन्हें पहले से कोई ऐसी परेशानी रही हो। इसका जिक्र नहीं है। ऐसे में यह कह पाना लगभग असंभव है कि उन्हें जो भी परेशानी हुई उसकी वजह वैक्सिनेशन था। जिन लोगों को अध्ययन में शामिल किया गया, उनके बारे में आधारभूत जानकारियों का रिपोर्ट में अभाव है।

-  जिस एडवर्स इवेंट्स ऑफ स्पेशल इंटेरेस्ट (एईएसआई) का रिपोर्ट में हवाला दिया गया है, उससे अध्ययन के तरीके मेल नहीं खाते।

-  अध्ययन में शामिल लोगों से वैक्सिनेशन के एक साल बाद टेलीफोन के जरिये आंकड़े इकट्ठा किये गए। उन्होंने जो बताया उसका बिना क्लीनिकल या फिजीशियन से सत्यापन किये रिपोर्ट तैयार कर दी गई। इससे लगता है कि यह सब कुछ पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर किया गया है। आईएमएस की स्क्रीनिंग के बाद शोध पत्र होंगे प्रकाशित

वैक्सीन पर शोध को लेकर हुए विवाद के बाद अब आईएमएस ने रिसर्च गाइडलाइन में बदलाव किया है। आईएमएस में होने वाले शोध की पहले स्क्रीनिंग की जाएगी। कमेटी सभी मानकों का अध्ययन करेगी। अगर कमेटी संतुष्ट होगी तभी जर्नल में प्रकाशित करने के लिए भेजा जाएगा। इसके लिए डीन रिसर्च की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी गठित की गई है।


 


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Content Writer

Ramkesh

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