मजबूरी में किसान छोड़ रहे पारंपरिक फसलें, लगा रहे आलूबुखारा और सेब के पेड़

punjabkesari.in Saturday, Jan 02, 2021 - 12:37 PM (IST)

रामपुर: किसान अपने खेतों में पसीना बहाकर गेहूं, धान, दलहन और गन्ना जैसी पारंपरिक फसलों को लहलहाने में कामयाब तो हो जाता है, लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति नहीं सुधरती क्योंकि फसलों का भाव किसान नहीं बल्कि बनिए की दुकान पर खोला जाता है। शायद यही वजह है कि एमएसपी को लेकर किसान इस कड़कड़ाती ठंड में सड़कों पर जमे हुए हैं। वह सरकार से गुहार जरूर लगा रहे हैं, लेकिन संभवत उनको सरकार से कम ही उम्मीदें वाबस्ता है। इसीलिए अब किसान गेहूं धान और गन्ना जैसी पारंपरिक फसलों को छोड़कर अपने खेतों में आलूबुखारा और सेब जैसी फसलें उगाने में जुटे हुए हैं। इस उम्मीद के साथ के शायद इनके द्वारा उनकी आर्थिक स्थिति ठीक हो सके।

वहीं किसान हनीफ वारसी से हमने बात की तो उन्होंने बताया किसान बहुत परेशान है। किसान को समय से गन्ने का भुगतान नहीं मिलता है। आज हम अगर गन्ना फैक्ट्री को देंगे तो उसका पेमेंट सालों के बाद मिलेगा। जरूरत हमें आज है दूसरा गेंहू का रेट होगा 1800 रुपए ओर किसान को मिलता है। 11 सो रुपए धान का रेट होगा 1800 सो रुपये और किसान को मिलता है। 1000 रुपए जो फसल के दाम है उसका रेट किसान को नहीं मिल पाता है। इसलिए किसान ने सोचा है कि हम सेब की बगिया लगा ले आलूबुखारे की बगिया लगा ले। किसान अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए नई नई खेती कर आजमा रहा है। अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए लेकिन किसान वही का वही है और कर्जदार है। मौजूदा स्थिति में सरकार जो तीन अध्यादेश लाई है उसमें किसान और परेशान हो गया है। जिस कंपनी से कांटेक्ट होगा वह कंपनी अपनी मर्जी से जो चाहेगी वह कृषि करवाएगी।

वहीं दूसरे किसान संतोष ने बताया कि जो सरकार ने एमएसपी का नियम निकाला है, ये किसानों को तो समझ में आ नहीं रहा है और ना ही यह समझा पा रहे हैं। जो दिल्ली बॉर्डर पर भारी भीड़ है हमें वहां जाने भी नहीं दिया जा रहा है। यहां एक एक लोगों को टारगेट बनाया जा रहा है। अगर जाने देंगे तो दिल्ली के 20 किलोमीटर तक किसान किसान नजर आएगा। क्योंकि किसान इतना परेशान है। सरकार को ये कानून वापस लेना चाहिए। 


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Tamanna Bhardwaj

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