Gorakhpur : 80-90 दशक में अपराध का इतिहास, जानिए क्यों Harishankar Tiwari की जान का दुश्मन बन गया था डॉन

punjabkesari.in Wednesday, May 17, 2023 - 03:57 PM (IST)

Harishankar Tiwari : उत्तर प्रदेश में 80-90 दशक के वक्त बात की जाए अपराध की और गोरखपुर का जिक्र न हो तो बात अधूरी होगी। उस वक्त गोरखपुर से यूपी और बिहार के कुछ इलाकों में अपराध को संचालित किया जाता था। बात उस वक्त कि है जब  ललित नारायण मिश्र से लेकर अन्य नेता के केंद्र में रेल मंत्री बनने लगे। इसके बाद बिहार और यूपी में रेलवे का काम तेज हुआ। ऐसे में कई गैंग पनपने लगे। वे रेलवे ठेकों पर अपना कब्जा चाहते थे। 

ऐसे में ही गोरखपुर के चिल्लूपार से निकलकर गोरखपुर की छात्र राजनीति में कदम रखने वाला युवा चेहरा हरिशंकर तिवारी रेलवे ठेकों को हथियाने के खेल में उतरा और अपना नाम बड़ा करता चला गया। जब गोरखपुर मठ ने उसके बढ़ते कदम को रोकने का प्रयास किया तो पूरी लड़ाई को ब्राह्मण बनाम ठाकुर बनाकर तिवारी हाता बना लिया। यहां पर वे गोरखपुर मठ की तर्ज पर लोगों की समस्याओं को सुनने और उसका समाधान करने लगे। तिवारी हाता से कई बाहुबली निकले जो बाद के समय में यूपी के आपराधिक आसमान में चमके। लेकिन समय के साथ इस अपराध के  आसमान में एक सितारा चमकने लगा। जिसका अंदाज अलग था औऱ नाम था शिव प्रकाश शुक्ला। 


अपराध की शुरुआत छात्र राजनीति से 

गोरखपुर में अपराध और बर्चस्व की लड़ाई की शुरुआत तो 70 के दशक में ही शुरु हो गई थी। लगभग 3 दशक में गोरखपुर यूनिवर्सिटी छात्र पढ़ने की बजाए अपने - अपने चेहरे चमकाने और बर्चस्व की रेस में भागने लगे। छात्रसंघ पर कब्जे के लिए बलवंत सिंह और हरिशंकर तिवारी आमने-सामने थे। इसी दौरान गोरखपुर यूनिवर्सिटी में एक नाम तेजी से उभरा। वह था वीरेंद्र प्रताप शाही का। जाति से ठाकुर वीरेंद्र शाही तेजी से आगे बढ़ रहे थे। बलवंत ने उन्हें अपना समर्थन दे दिया। इसके बाद शुरू हुई वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी की अदावत। छात्र राजनीति की लड़ाई गोरखपुर की सड़कों पर ठाकुर बनाम ब्राह्मण तक हो गई। 


वर्चस्व के लिए छात्रों के हाथ में कट्टा होता था
छात्र नेता बनने की इतनी ज्यादा होड़ मच गई थी की युवा हाथों में कट्‌टा आ चुका था। पेट्रोल भराकर पैसा न देना तब बाहुबल की निशानी थी। पैसा मांगने पर गोली मार दिया जाता था। इसके बाद वर्चस्व की लड़ाई पैसों को लेकर होने लगी। तब रेलवे के ठेकों को मैनेज करना ताकतवर होने की गारंटी थी। रेलवे स्क्रैप के ठेकों को हासिल करने के लिए जंग शुरू हुई। ठेके के माध्यम से बड़ी आसानी से पैसा बन सकता था। इसके लिए बाहुबल की जरूरत थी। हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही ने अपने-अपने गुटों को मजबूत करना शुरू कर दिया। इटली की तर्ज पर गोरखपुर में गैंग बन चुके थे।

Murder के साथ की थी एंट्री
गोरखपुर में अपराध की बादशाहत चल ही रही थी कि एक और लड़के का उदय होता और जुर्म की दुनिया में उसका एक अलग अंदाज देखा जाता है। उस लड़के नाम होता है प्रकाश शुक्ला  जो चिल्लूपार विधानसभा सीट के गांव मामखोर का रहने वाला था। पहलवानी के अखाड़े से निकला था। उसे पता था कि अगर क्राइम की दुनिया में जमना है तो अपने से मजबूत खिलाड़ियों को चित करना होगा। दरअसल, श्रीप्रकाश शुक्ला के क्राइम की दुनिया में कदम रखने की कहानी भी अलग है। गांव में उसकी बहन के साथ छेड़खानी की गई थी। श्रीप्रकाश शुक्ला को यह नागवार गुजरा। उसने छेड़खानी करने वाले लड़के का मर्डर कर दिया। पुलिस खोजने निकली तो श्रीप्रकाश बैंकाक भाग गया। वहां उसने कुछ पैसे बनाए। इसके बाद हथियारों से लैस होकर गोरखपुर लौटा। उसका इरादा डॉन बनने का था। हालांकि, उस समय गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी, वीरेंद्र प्रताप शाही और इन सबके बीच गोरखपुर मठ का प्रभाव साफ था। श्रीप्रकाश शुक्ला की दाल नहीं गल रही थी।

बिहार में उस समय अपराध लगातार बढ़ रहा था। सूरजभान तेजी से उभरे थे। प्रदेश के अपराध और राजनीति पर काबू को लेकर एक ऐसे लड़के की तलाश थी, जो कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो। श्रीप्रकाश शुक्ला से उनकी मुलाकात हुई और फिर साथ आगे बढ़ा। उसने सूरजभान के अंडर में काम करना शुरू कर दिया। रेलवे ठेकों का खेल को समझा। साथ ही, अपना गैंग भी तैयार करता रहा। इसके बाद उसने गोरखपुर में कदम रखा।  समय के साथ हालात बदले और उसका भी पतन होने का समय आ गया। प्रदेश में भाजपा की सरकार थी औऱ सूबे की गद्दी पर कल्याण सिंह विराजमान था। बताया जाता है कि किसी मामले को लेकर श्रीप्रकाश शुक्ला ने सीएम को मारने की सुपारी ले ली। इस बात की खबर जब प्रशासन को लगी तो वह एक STF की टीम का गठन किया जिसने श्रीप्रकाश शुक्ला नामक बत्ती को बुझा दिया। 


 


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Content Writer

Imran

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