UP: तेजी से हो रहा शहर का विस्तारीकरण, कम हो रही गांव की डगर

punjabkesari.in Tuesday, Jan 24, 2023 - 08:29 PM (IST)

लखनऊ : देश में जनसंख्या बिस्फोट के साथ-साथ तेजी से शहर का विस्तारीकरण हो रहा है जिसकी वजह से ग्रामीण इलाकों का क्षेत्रफल घट रहा है। इससे शहर से लगी कृषि व अन्य भूमि तेजी से आवासीय व व्यवसायिक गतिविधियों में तब्दील हो रही है । चाहें सरकारी योजनाएं हो या बिल्डर व उद्योगपतियों की जो तेजी से गांव की तरफ बढ़ते जा रहे हैं। इससे ज्यादातर कृषि यौग्य क्षेत्र मिट रहा है। भूमि अधिग्रहण या फिर बेचने पर किसानों को दाम तो मिल रहे हैं। लेकिन खरीदने के लिए आसपास पर्याप्त जगह नहीं है।

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भूमि अधिग्रहण कर सरकारी विभाग बेच रहे फ्लैट
यदि लखनऊ की बात करें तो ऐसे प्रभावित किसान सीतापुर, उन्नाव, हरदोई, रायबरेली व आसपास जिलों में भूमि खरीद रहे हैं। लेकिन, छोटे जिलों में भी यही स्थिति है। यह गंभीर विषय है। जिस पर जिम्मेदार बोलने से बच रहे हैं। गौतमबुद्ध  नगर, गाजियाबाद समेत अन्य में भी कॉलोनियों की बजाय विकास एनसीआर जिलों में भूमि का अभाव प्राधिकरण फ्लैट पर जोर दे रहा है। इससे ज्यादातर कृषि योग्य क्षेत्र है। इस कारण एनसीआर में निजी मिट रहा है। भूमि अधिग्रहण या व सरकारी विभाग फ्लैट बना कर बेच रहे हैं। इससे की कम जगह पर इमारत बनाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को जगह दें सकें।

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रियल एस्टेट सेक्टर में हो रहा काफी उछाल
हाल में आई रेरा की रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में रियल एस्टेट सेक्टर में काफी उछाल आया है। फ्लैटों की मांग में 30 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है। इसी तरह लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर जैसे बड़े शहरों में भी कॉलोनियों की बजाय विकास प्राधिकरण फ्लैट पर जोर दे रहा है। लखनऊ विकास प्राधिकरण (लविप्रा), बिल्डर, उद्योगपति व कारोबारी बाराबंकी और उन्नाव की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में कृषि योग्य भूमि बचाने के लिए लविप्रा फ्लोर एरिया रेसियो (एफएआर) बढ़ाने पर मंथन कर रहा है। इससे की आवासीय व व्यवसायिक इमारतों के फ्लोर और बढ़ाए जा सकें। वर्तमान में एफएआर के अनुसार 15 से 20 मंजिल बनाने की अनुमति है।

40-50 हजार हेक्टेयर प्रति वर्ष कम हो रही भूमि-
प्रदेश में प्रतिवर्ष 40-50 हजार हेक्टेयर कृषि उत्पादक भूमि शहरीकरण, औद्योगीकरण, राष्ट्रीय राजमार्ग, एक्सप्रेस-वे, कारिडोर आदि निर्माण में परिवर्तित हो रही है । यह कृषि विभाग की रिपोर्ट जिसमें आगे खाद्यान्न आपूर्ति की कठिनाई होना बताया गया है। ऐसी स्थिति में ऊसर, बीहड़ व बंजर भूमि सुधार कर उपजाऊ बनाई जा सकी है। जो प्रदेश में 241.70 लाख  हेक्टेयर पड़ी है।


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Content Writer

Ajay kumar

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