UP Election 2022: आजमगढ़ के मुबारकपुर में कांटे की टक्कर, AIMIM ने बनाया चतुष्कोणीय मुकाबला

punjabkesari.in Monday, Feb 28, 2022 - 03:45 PM (IST)

मुबारकपुर: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) को कमजोर या ‘‘नुकसान'' पहुंचाने वाला माना जाता है लेकिन आजमगढ़ की मुबारकपुर सीट पर स्थिति अलग है और यहां उसे ‘‘गंभीर प्रतिद्वंद्वी''माना जा रहा है जो सालों से यहां पर मजबूत पैठ रखने वाली बसपा और सपा के लिए चुनौती पेश कर रही है। 

इस सीट को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का ‘गढ़' माना जाता है जिसे वर्ष 1996 से यहां पर हराया नहीं जा सका है जबकि 2002 के चुनाव को छोड़कर समाजवादी पार्टी (सपा) यहां दूसरे स्थान पर रहती आयी है। 2002 के चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी यहां दूसरे स्थान पर थी। एआईएमआईएम ने इस सीट से शाह आलम उर्फ ‘गुड्डू जमाली' को अपना प्रत्याशी बनाया है जो लगातार दो बार बसपा के टिकट पर यहां से चुनाव जीतते रहे हैं। वहीं सपा ने अखिलेश यादव को प्रत्याशी बनाया है जो पिछले दो चुनावों में दूसरे स्थान पर रहे थे। इस निर्वाचन क्षेत्र के लोगों का कहना है कि एआईएमआईएम नहीं बल्कि आलम मजबूत उम्मीदवार हैं जिनकी वजह से सपा के यादव और बसपा के अब्दुस सलाम के मुकाबले में एआईएमआईएम ‘‘गंभीर दावेदार'' के तौर पर उभरी है। भाजपा ने इस मुस्लिम बहुल सीट से अरविंद जयसवाल को अपना प्रत्याशी बनाया है जिन्हें उम्मीद है कि मुस्लिम मतों के तीन प्रत्याशियों में बंटने की वजह से उनकी जीत संभव है। 

सपा प्रत्याशी अखिलेश यादव लोगों को बिहार और पश्चिम बंगाल चुनाव की याद दिलाते हुए कहते हैं कि बिहार में एआईएमआईएम के पक्ष में मतों का विभाजन होने का नतीजा रहा कि भाजपा की जीत हुई जबकि पश्चिम बंगाल जहां पर ओवैसी की पार्टी को अधिक समर्थन नहीं मिला, वहां भाजपा की हार हुई। उन्होंने जोर देकर कहा कि उत्तर प्रदेश में जनता अखिलेश यादव की सरकार चाहती है और इसलिए राज्य और मुबारकपुर में एआईएमआईएम का कोई स्थान नहीं है। यादव ने कहा, ‘‘यह चुनाव विचारधारा और विकास का है। मैं धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास करता हूं, मैं समाजवादी हूं, अखिलेश यादव की सरकार में चारों तरफ विकास हुआ था जबकि भाजपा के शासन में वित्तीय, सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं में वृद्धि हुई है।'' उनका और सपा अध्यक्ष का नाम एक (अखिलेश यादव) ही होने के सवाल पर यादव ने कहा कि सपा प्रत्याशियों को अखिलेश यादव के नाम का लाभ मिलेगा और उन्हें समान नाम होने और लंबे समय से राजनीति में होने का अधिक लाभ होगा। 

आलम ने उत्तर प्रदेश में नयी पार्टी से चुनाव लड़ने की वजह से जीत की संभावना क्षीण होने की धारणा को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने दो बार जीत दर्ज की है और उनका चुनाव चिह्न अलग हो सकता है लेकिन वह जीत रहे हैं और लोग भी उन्हें जानते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा, ‘‘ मेरी राजनीति का आधार विकास है और मैं धर्म और जाति की राजनीति से अलग रहता हूं।'' आलम ने ‘पीटीआई-भाषा' से बातचीत में कहा, ‘‘ इससे फर्क नहीं पड़ता कि एआईएमआईएम जीत रही है या नहीं लेकिन मैं खुद को जीतने के लिए सक्षम मानता हूं। मैंने पूरी ईमानदारी से काम किया है और लोगों की सेवा की है जो मेरा और एआईएमआईएम का समर्थन कर रहे हैं।'' जब पूछा गया कि क्या ऐसी कोई आशंका है कि मुस्लिमों के अलावा अन्य समुदाय एआईएमआईएम को मतदान करने के प्रति अनिच्छुक हो सकते हैं, इसपर आलम ने कहा,‘‘ मुस्लिमों से अधिक हिंदू भाई मेरे पक्ष में मतदान करेंगे। शत प्रतिशत मैं यह चुनाव जीत रहा हूं।'' बसपा के सलाम ने जीत का दावा करते हुए कहा कि ओवैसी की पार्टी को पांच हजार से अधिक मत नहीं मिलेंगे और वह सपा प्रत्याशी को करीब 25 हजार के अंतर से हरा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि मुबारकपुर निर्वाचन क्षेत्र में कुल करीब 3,17,000 मतदाता है जिनमें से करीब 1,10,000 मुस्लिम, 78 हजार दलित, 65 हजार यादव मतदाता हैं।

इस सीट पर मुस्लिम विभाजित प्रतीत हो रहे हैं क्योंकि कई मुस्लिम आलम का उनके संसाधन युक्त होने और कोविड-19 महामारी की दौरान मदद के लिए समर्थन करते दिख रहे हैं जबकि अन्य सपा प्रत्याशी का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि सपा ही भाजपा को सत्ता में दोबारा आने से रोक सकती है। मुस्लिमों में एक धड़ा ऐसा भी है जिसकी निष्ठा बसपा के प्रति बनी हुई है लेकिन ऐसे लोगों की संख्या में कमी आई है। वहीं, दलित समुदाय मजबूती से बसपा के समर्थन में खड़ा दिखाई देता है। बसपा समर्थक अमीरचंद कहते हैं, इस निर्वाचन क्षेत्र के दलित किसी और ओर नहीं देखते और इस बार भी वही स्थिति है। उन्होंने जोर देकर कहा कि वे केवल ईवीएम मशीन में एक ही चुनाव चिह्न देखते हैं और वह है हाथी (बसपा का चुनाव चिह्न) है। कई मुस्लिमों का भी मानना है कि आलम का समर्थन हर बीतते दिन के साथ बढ़ रहा है और वह हिंदू मतों को भी अपने पक्ष में कर सकते हैं क्योंकि उन्होंने महामारी के दौरान लोगों की मदद की थी जिससे वे उनके आभारी हैं। आलम को उम्मीद है कि वह मुस्लिम मतों के बड़े हिस्से को अपने पक्ष में कर लेंगे और इसके अलावा कुछ हिंदू मत भी उनके पक्ष में आएंगे लेकिन यह आसान नहीं होगा क्योंकि यादव सपा का समर्थन कर रहे हैं और अगर मुस्लिम मतदाताओं का उल्लेखनीय हिस्सा भाजपा का राज्य स्तर पर मुकाबला करने के लिए ‘‘ साइकिल चुनाव चिह्न'' के साथ जाता है तो एआईएमआईएम को मात मिल सकती है। 

हालांकि, यहां की राजनीति पर नजर रखने वाले कई का मानना है कि इस सीट पर करीबी मुकाबला है। चिकन विक्रेता मोहम्मद सलेम कहते हैं कि अधिकतर मुस्लिम मतदाता आलम का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने अपने खर्चे पर कोविड-19 के दौरान लोगों की बहुत मदद की। उन्होंने कहा, ‘‘यह एआईएमआईएम का सवाल नहीं है बल्कि यहां के प्रत्याशी का समर्थन है। आलम को समुदायों और जातियों से परे समर्थन प्राप्त है।'' गौरतलब है कि इस सीट पर सातवें व अंतिम चरण में सात मार्च को मतदान होगा और नतीजे 10 मार्च को आएंगे।


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Imran

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