अब तो उनकी याद भी आती नहीं, कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयां-फिराक गोरखपुरी

punjabkesari.in Tuesday, Aug 28, 2018 - 02:18 PM (IST)

जौनपुरः उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के सरावां गांव स्थित शहीद लाल बहादुर गुप्त स्मारक पर आज हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी एवं लक्ष्मीबाई बिगेड के कार्यकर्ताओं ने उर्दू के महान शायर एवं स्वतन्त्रता सेनानी रद्युपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी का 122 वां जन्मदिन मनाया।  

इस अवसर पर कार्यकर्ताओं ने शहीद स्मारक पर मोमबती व अगर बत्ती जलाई और दो मिनट मौन रखकर फिराक गोरखपुरी को अपनी श्रद्धांजलि दी। शहीद स्मारक पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए लक्ष्मीबाई ब्रिगेड की अध्यक्ष मंजीत कौर ने कहा कि रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी का जन्म 28 अगस्त 1896 को उत्तर प्रदेश् के गोरखपुर शहर में हुआ था। विद्यार्थी जीवन से ही वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर देश की आजादी की लड़ाइे में भाग लेना शुरू किया। 

उन्होंने कहा कि जब वे उच्च शिक्षा के लिए गए तो उनकी मुलाकात पंडित जवाहर लाल नेहरू से हुई। नेहरू जी ने उस समय उन्हें कांग्रेस कार्यालय का सचिव बना दिया था,लेकिन उनका ध्यान तो साहित्य की दुनिया में लगा था। पहले वे कानपुर और आगरा में अंगेजी के अध्यापक बने और बाद में वे इलाहाबाद विश्व विद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर बन गये। शिक्षण कार्य के बाद वे उर्दू में शायरी लिखते थे। उन्होंने अपनी शायरी के माध्यम से उर्दू भाषा को बहुत ऊचाई पर पहुंचाया। लोग उन्हें शायर-ए-आजम भी कहते थे।  भारत सरकार ने 1968 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान प्रदान किया था। उन्होंने करीब चालीस हजार शायरी लिखी थी । 3 मार्च 1982 को वे इस दुनिया से सदा के लिए चले गये। 
 


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Ruby

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