काशी में सावन केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, यह जीवन की एक भक्ति-यात्रा, पढ़ें स्पेशल स्टोरी

punjabkesari.in Sunday, Jul 13, 2025 - 02:26 PM (IST)

लखनऊ (अश्वनी कुमार सिंह ): भारत की आत्मा उसकी आध्यात्मिता में बसती है, और अगर इस आत्मा का कोई शहर है तो वह है काशी। वह नगरी जो केवल ईंट-पत्थरों की बसावट नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के रहस्यों का उत्तर है। वही काशी, जो आज भी काल को चुनौती देती है। और जब इस काशी पर सावन की छाया पड़ती है, तब यह शहर शिवमय हो उठता है—निराकार शिव के साकार स्पंदन से गूंजने लगता है।

काशी – वह जो अविनाशी है
‘काशी’ का अर्थ ही है ‘प्रकाश’ यह वह नगर है जिसे स्वयं भगवान शिव ने अपने त्रिशूल पर धारण किया है। पुराणों में वर्णित ‘अविमुक्त क्षेत्र’ के रूप में काशी का उल्लेख हमें बताता है कि जब सृष्टि का प्रलय होगा, तब भी यह भूमि सुरक्षित रहेगी। यही कारण है कि लोग मानते हैं—काशी में मृत्यु, केवल अंत नहीं, बल्कि नव आरंभ है। यह नगरी केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि जीवन का गूढ़ पाठ है। यहाँ हर मोड़, हर घाट, हर मंदिर—किसी न किसी दिव्य कथा को समेटे हुए है। और जब इन कहानियों पर सावन की हरियाली छा जाती है, तब यह अनुभव अलौकिक बन जाता है।

सावन – शिव की अनुभूति का महीना
सावन यानी श्रावण मास, हिन्दू पंचांग का पवित्रतम महीना, जो पूर्णतः भगवान शिव को समर्पित है। इसे देवों का प्रिय मास कहा गया है। यह वह समय है जब शिव भक्त गंगाजल से अभिषेक करते हैं, व्रत रखते हैं, शिवपुराण का श्रवण करते हैं और रात्रि जागरण करते हैं। मान्यता है कि सावन में शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्त की हर प्रार्थना को सुनते हैं। इस महीने की विशेषता यह भी है कि यह प्रकृति के साथ आध्यात्मिक सामंजस्य को प्रकट करता है। धरती पर हरियाली, आकाश में वर्षा और मन में भक्ति—इन सबका मेल सावन को अद्वितीय बना देता है।

काशी में सावन – आस्था का चरमोत्कर्ष
काशी में सावन केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, यह जीवन की एक भक्ति-यात्रा है। जैसे ही सावन का पहला सोमवार आता है, बाबा विश्वनाथ का दरबार श्रद्धालुओं से भर जाता है। लाखों की संख्या में शिवभक्त दूर-दूर से गंगाजल लाकर बाबा को अर्पित करते हैं। ये कांवड़िए नंगे पांव, सिर पर कलश, और होंठों पर 'बोल बम' के जयघोष के साथ चलते हैं। यह मार्ग केवल एक यात्रा नहीं, यह तप है—आत्मा की तपस्या। काशी विश्वनाथ धाम जो अब और भी भव्य हो गया है, सावन में अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। सुरक्षा, स्वच्छता और व्यवस्था के बीच जब श्रद्धालु बाबा के दर्शन करते हैं, तो उनकी आंखें अश्रुपूरित हो जाती हैं। वह क्षण जीवन भर का पुण्य बन जाता है।

घाट, गंगा और गूंजती आरती
सावन की शामों में जब आप गंगा घाट पर खड़े होते हैं, तो दशाश्वमेध पर होने वाली आरती मन को भीतर तक आंदोलित कर देती है। घंटियों की गूंज, शंखनाद, दीपों की लौ और मंत्रों की ध्वनि—यह सब मिलकर ऐसा अनुभव देते हैं, मानो साक्षात शिव वहीं सामने खड़े हों। घाटों पर हर उम्र, हर वर्ग के लोग एक साथ भक्ति में लीन दिखाई देते हैं। कोई आरती कर रहा होता है, कोई ध्यान में मग्न होता है, तो कोई गंगा को प्रणाम कर अपने कर्म धो रहा होता है।

सावन और काशी की संस्कृति
काशी की संस्कृति लोक जीवन से जुड़ी हुई है। सावन में यहाँ के मंदिरों में ‘झूला महोत्सव’ मनाया जाता है, जिसमें राधा-कृष्ण झूले पर विराजमान होते हैं। स्त्रियाँ 'कजरी', 'मल्हार' और 'झूला गीत' गाती हैं। यह धार्मिकता और लोक परंपरा का ऐसा संगम है, जो केवल काशी जैसी नगरी में ही संभव है। श्रावण सोमवारी को लेकर यहाँ विशेष शृंगार होते हैं, मंदिरों को फूलों, बेलपत्रों और धूप-दीपों से सजाया जाता है। भंडारे, कीर्तन और रुद्राभिषेक जैसे आयोजन दिन-रात चलते रहते हैं। काशी की ये व्यस्तता थकाती नहीं, बल्कि ऊर्जा देती है।

काशी विश्वनाथ धाम: परंपरा और आधुनिकता का संगम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पुनर्निर्मित काशी विश्वनाथ धाम आज श्रद्धा और सुविधा दोनों का प्रतीक बन चुका है। अब यह धाम तीर्थयात्रियों के लिए और भी अधिक सरल और सुंदर हो गया है। सावन में यहाँ का प्रबंधन एक आदर्श बन जाता है। यह धाम शिव भक्तों के लिए केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि एक अनुभव बन चुका है। जहाँ भक्त केवल बाबा के दर्शन नहीं करता, बल्कि खुद से जुड़ता है।

मन की काशी और आत्मा का सावन
काशी केवल भौतिक स्थान नहीं, वह एक मानसिक अवस्था है। और सावन केवल एक महीना नहीं, एक मन:स्थिति है। जब कोई व्यक्ति अपने भीतर झाँकने लगता है, जब उसका ध्यान बाहरी दुनिया से हटकर शिव में लग जाता है तो वह अपने भीतर ही काशी में सावन का अनुभव करता है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम सबके भीतर वह खालीपन है, जो केवल शिव की शरण में जाकर भर सकता है। सावन हमें यह अवसर देता है। काशी हमें यह राह दिखाती है।

शिव में विलीन हो जाने का अवसर
काशी और सावन—यह दो शब्द नहीं, दो चेतनाएं हैं। जब दोनों मिलते हैं, तो यह मिलन हमें हमारे सबसे गहरे अस्तित्व से जोड़ देता है। यहाँ आकर मृत्यु भी उत्सव बन जाती है, और जीवन—एक तृप्त तप। इस बार जब सावन आए, तो सिर्फ व्रत न करें, केवल पूजा न करें—बल्कि अपने भीतर उतरें। काशी को अपने भीतर महसूस करें। और जब आप बाबा विश्वनाथ के सामने खड़े हों, तो बस इतना कहें "मैं नहीं, अब केवल आप हैं... हर हर महादेव!"


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Content Writer

Ramkesh

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