कैराना उप-चुनावः RLD और BJP के बहाने फिर छिड़ेगी विरासत की जंग

punjabkesari.in Monday, May 07, 2018 - 04:55 PM (IST)

शामली/हर्ष कुमार सिंह। उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा संसदीय सीट पर होने जा रहे उपचुनाव के लिए सपा की तबस्सुब बेगम विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार होंगी। बड़ी बात यह है कि सपा ने यहां भी गोरखपुर फारमूला लगाया है और तबस्सुम को रालोद के टिकट पर उतारने का फैसला लिया है। वहीं बिजनौर जिले की नूरपुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए विपक्ष ने नईमुल हसन को अपना संयुक्त उम्मीदवार बनाया है। कैराना में एक बार फिर चिर प्रतिद्वंद्वी हुकुम सिंह और हसन परिवार विरासत कीी जंग लड़ेंगे। भाजपा से मृगांका सिंह का आना तय है। 

सूत्रों की मानें तो यह फारमूला मायावती का सुझाया हुआ है। पश्चिमी यूपी के साथ-साथ कैराना से मायावती का विशेष रिश्ता है। उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत कैराना से ही की थी। इस लिहाज से कैराना की सामाजिक और जातिगत स्थितियों से वह बखूबी वाकिफ हैं। बताया जा रहा है कि मायावती ने अपने अनुभवों के आधार पर ही अखिलेश से तबस्सुम को उम्मीदवार बनाने की बात कही। वैसे अखिलेश पहले यहां किसी पिछड़ी जाति का अपना उम्मीदवार उतारना चाहते थे। इसी के चलते शुक्रवार को उन्होंने रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को यह सीट देने से मना कर दिया था। लेकिन मायावती से बात होने के बाद अखिलेश रालोद के टिकट पर तबस्सुम को उतारने पर राजी हो गए। वैसे बसपा छोड़ने के चलते तबस्सुम से मायावती खफा थीं, लेकिन भाजपा को हराने के लिए मजबूत विपक्ष खड़ा करने के मकसद से उन्होंने खुद तबस्सुम को सबसे मुफीद उम्मीदवार बताया। गौरतलब है कि 2009 में तबस्सुम कैराना से बसपा की सांसद बनी थी। उनके पति मरहूम मुनव्वर हसन सपा से सांसद थे और बेटा कैराना से ही सपा विधायक हैं। अखिलेश शायद इसलिए भी राजी हो गए। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के प्रभाव और मुस्लिमों के खिलाफ हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के चलते 2014 में इस सीट पर भाजपा के हुकुम सिंह जीते थे।

सपा-बसपा गोरखपुर उपचुनाव में निषाद पार्टी के उम्मीदवार को सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट झटक चुकी हैं। जो भाजपा गोरखपुर में बीते पांच चुनावों से नहीं हारी थी, पिछड़ों-अल्पसंख्यकों और निषाद-दलितों के गठजोड़ ने उपचुनाव में उसे करारी हार दी। यह एक आजमाया हुआ फारमूला है, जिसे सपा-बसपा ने रालोद के साथ मिल कर अब कैराना में लगाया है। कैराना संसदीय क्षेत्र में करीब 17 लाख मतदाता हैं। इसमें सबसे ज्यादा करीब 4.75 लाख मुस्लिम मतदाता हैं। करीब 1.25 लाख जाट और 2.80 लाख दलित मतदाता हैं। गुर्जर, कश्यप, सैनी, प्रजापति मिलाकर करीब 4 से 4.50 लाख मतदाता हैं। बाकी सामान्य जातियां हैँ। इस लिहाज से विपक्ष के पास करीब 8.50 से 9 लाख वोटों का एक मजबूत आधार बनता दिख रहा है।

सपा-बसपा के साथ रालोद का गठजोड़ कैराना में भाजपा पर भारी पड़ता दिख रहा है। हालांकि गोरखपुर-फूलपुर उपचुनाव की हार से हुई फजीहत के बाद कैराना को लेकर भाजपा पूरी तरह सतर्क है। वह किसी भी तरह की चूक नहीं चाहती, लिहाजा अपनी पूरी ताकत झोकने में लग गई है। पार्टी यहां स्वर्गीय सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह पर दांव खेलने का विचार बनाए हुए है। हालांकि अभी तक अधिकारिक तौर पर मृगांका की उम्मीदवारी घोषित नहीं की है। मृगांका 2017 में विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गई थीं। भाजपा के रणनीतिकारों को लगता है कि हुकुम सिंह की मृत्यु और विधानसभा की हार से मृगांका के प्रति क्षेत्र के लोगों में सहानुभूति है, जिसे चुनाव में भुनाया जा सकता है।


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