शिवनगरी वाराणसी में ऐसे मनाया जाता है गंगा दशहरा पर्व, महिलाएं गाती हैं- चला-चला सखी गंगा नहाए आईं, गुड़िया बहाए आईं ना...

punjabkesari.in Sunday, Jun 20, 2021 - 04:32 PM (IST)

वाराणसीः हमारे देश भारत में नदियों को केवल जल की धारा नहीं बल्कि मां व प्राणदायिनी माना जाता है। इनमें देव नदी गंगा का विशेष महत्व है। बाबा श्री काशी विश्वनाथ व मां गंगा की नगरी वाराणसी में गंगा दशहरा का विशेष महत्व है। काशी के लोग इस उत्सव को बड़े ही अनूठे व धूमधाम के साथ मनाते हैं। जो कि यहाँ की लोक संस्कृति को समझने में भी सहायक है।

आज के दिन स्वर्गलोक से पृथ्वी पर आई थीं मां गंगा
बता दें कि वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि को हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक में अवतरित हुई थी। गंगा की उत्पति के संबंध में मान्यता है कि राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए कठोर तपरस्या कर गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया था।  पृथ्वी लोक में आने से पहले गंगा ब्रम्हा के कमण्डल में थी। राजा भगीरथ की कठोर तपस्या के फलस्वरूप गंगा, ब्रम्हा के कमण्डल से शिव की जटा में प्रवाहित होती हुई पृथ्वी लोक में अवतरित हुईं। इस तरह राजा भागीरथ ने अपने पुरखों की अस्थियों को विसर्जित कर मुक्ति दिलायी। शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा, पृथ्वी लोक में अवतरित हुई थीं। इसलिए इस दिन गंगा दशहरा का पर्व, देवी गंगा को समर्पित त्योहार के रूप में मनाया जाता है। गंगा दशहरे के दिन से वर्षा का आगमन होने लगता है और दसों दिशाओं में हरियाली छाने लगती है। अतः इस दिन, वर्षा आगमन का स्वागत करते हुए खुशियां जाहिर की जाती हैं। 

गुड्डे-गुड़िए के विवाह की ये है मान्यता
दरअसल प्राचीन प्रथा है कि गंगा दशहरे के अवसर पर यहां गुड्डे-गुड़िया का विवाह करने व तमाम तरह के फलों व खान-पान व मिष्ठानों के साथ नदी में प्रवाहित कराया जाता है। इस दिन महिलाएं जुटती हैं और पूजा-पाठ के बाद विवाह संपन्न कराया जाता है। इसके बाद उन्हें गंगा में प्रवाहित या उसके पास डाल दिया जाता है। मान्यता ये भी है कि इस दिन गंगा दशहरा सम्बन्धी अनुष्ठान संपन्न करने से 10 प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ एक मान्यता ये भी है कि मां गंगा को पृथ्वी पर राजा भागीरथ अपने पितरों के लिए लेकर आए थे। तो आज के दिन गुड़िया को उनका प्रतिक बनाकर सभी तरह के फल व मिठाई आदि देकर विदाई की जाती है। महिलाएं गुड़िया को ले जाते हुए गाना गाती हैं...चला-चला सखी गंगा नहाए आईं...गुड़िया बहाए आईं ना...।  

 

 

 

 

 


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Content Writer

Moulshree Tripathi

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