अंतिम संस्कार में नहीं जाने का मिथक तोड़...घाट पर शव जलाकर गुजारा कर रहीं महिलाएं

punjabkesari.in Thursday, Aug 27, 2020 - 03:52 PM (IST)

जौनपुरः देश में हिन्दू धर्म में आम धारणा है कि अंतिम संस्कार के वक्त महिलाएं श्मशान घाट पर नहीं जाती लेकिन उत्तर प्रदेश के जौनपुर में एक श्मशान घाट ऐसा हैं, जहां दो महिलाएं ही शव जला रही हैं। भले ही उन्होंने इस पेशे को पेट भरने की मजबूरी में चुना था, लेकिन अब वह बेफिक्र होकर पूरी निष्ठा से अपने काम को अंजाम दे रही हैं। शमशान घाट पर महिलाओं को शव जलाते देख लोग हैरत में पड़ते हैं। देखने पर लोग उनको टोकते भी हैं। फिर उनकी हिम्मत को सलाम करते हुए इस बदलाव को स्वीकार भी करते हैं। महिलाओं का कहना है कि उन्हें अपने काम पर फक्र है। वह दूसरों के आगे हाथ नहीं फैलाना चाहती हैं।

जौनपुर में आदि गंगा गोमती के तट पर स्थित खुटहन के पिलकिछा घाट पर आसपास के गांवों के लोग शवों का अंतिम संस्कार करते हैं। रोजाना करीब आठ से दस शव यहां जलाए जाते हैं। शव जलाने का जिम्मा दो महिलाओं पर है। चिता पर लेटे शव में आग लगाकर जब परिवार के लोग किनारे हो जाते हैं, तब यह महिलाएं ही शव को अंतिम तक जलाती हैं। धू-धू कर जलती चिता के पास तब तक खड़ी रहती हैं, जब तक वह पूरी तरह जल न जाए।

कई वर्षों से इस कार्य में लगीं महरिता का कहना है कि पहले ससुर यह काम करते थे, फिर पति और उनके निधन के बाद वह खुद इसे कर रही हैं। उन्होंने बताया कि पति की मौत के बाद आजीविका का कोई सहारा नहीं है। पढ़ाई-लिखाई के नाम पर वह सिर्फ साक्षर हैं। बच्चे काफी छोटे थे। पेट भरने के दो ही रास्ते थे। ससुर और पति का पेशा अपनाकर स्वाभिमान से जिऊं या दूसरों के आगे हाथ फैलाकर बेबस, बेसहारा बन जाऊं। मुझे स्वाभिमान से जीना पसंद था। इसलिए इस पेशे को ही चुना। कोई अच्छा और बुरा कहता है, लेकिन मुझे इसकी परवाह नहीं। गर्व है कि अपना काम खुद से करती हूं।

इस पेशे में लगी दूसरी महिला सरिता के भाव भी कमोवेश ऐसे ही हैं। उनका आठ साल का बच्चा है, दो बेटियां है। आजीविका का कोई साधन नहीं था। मजबूरी में इस पेशे को चुना था, लेकिन अब कोई पछतावा नहीं है। लोग तो कहते ही रहते हैं। कुछ करो तो भी न करो तो भी। उनकी परवाह करती तो पेट कैसे भरता। शुरुआत में थोड़ी दिक्कत आई थी, लेकिन अब सब सामान्य ढंग से चल रहा है। लोग भी काफी सहयोग करते हैं। दोनों महिलाओं ने बताया कि एक शव जलाने पर 50 रुपये से लेकर 500 रुपये तक मिल जाते हैं। दिन भर दो-तीन शव जला लेते हैं। इससे गृहस्थी की गाड़ी चल रही है। 


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Tamanna Bhardwaj

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