‘गुरुजी को वापस भेज दो’... शिक्षक के ट्रांसफर होने पर रो पड़े बच्चे, बेसिक शिक्षा अधिकारी से की भावुक अपील

punjabkesari.in Saturday, Mar 16, 2024 - 10:25 AM (IST)

Rampur News, (रवि शंकर): आए दिन खबरों की सुर्खियां बनती है कि छात्रों ने गुरु जी के साथ अभद्रता की, गुरु जी को ही पीट डाला। ऐसे दौर में क्या किसी टीचर के ट्रांसफर होने पर बच्चे इतने भावुक हो सकते हैं कि बिलख-बिलख कर रोने लगें और गुरु जी को छोड़ने को तैयार ही ना हो, यहां तक कि वह बेसिक शिक्षा अधिकारी से गुरु जी को स्कूल से न हटाये जाने की गुहार लगा रहे हैं। ऐसा ही कुछ नज़ारा है रामपुर के एक गांव में जहां सरकारी स्कूल में पिछले 5 वर्षों से शिक्षण कार्य कर रहे एक गुरुजी का जब स्थानांतरण हुआ तो बच्चे बिलख-बिलख कर रोने लगे।
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'हमें कुछ नहीं पता था की खेल क्या होता है, पढ़ाई क्या होती है'
इस विषय पर विद्यार्थी सुहाना ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि मेरे सर का कल्याणपुर पट्टी के लिए ट्रांसफर हो गया और हम नहीं चाहते कि हमारे सर वहां पर जाएं, हमें कुछ नहीं पता हमारे सर हमें स्कूल में चाहिए। हम सब लोग यहां यूं रो रहे हैं हमें कुछ नहीं पता था की खेल क्या होता है, पढ़ाई क्या होती है, सिर्फ हमारे सर ने बताया। 5 साल में उन्होंने क्या बदल दिया हमारे गांव के अंकल से आप जाकर पूछिए। मैं स्टेट के लिए खेलने भी गई हूं और हमारे साथ का भाई उसके तो स्टेट में मेडल भी पड़ा है हम बस इतना चाहते हैं हमारे सर हमें स्कूल में चाहिए।
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स्कूल के लिए मैंने बहुत प्रयास किया: टीचर
टीचर राकेश विश्वकर्मा ने बताया कि मेरी जॉइनिंग साढ़े 5 साल पहले सितंबर 2018 में कंपोजिंट स्कूल सनाया जट में हुई थी। जब से जॉइनिंग हुई है स्कूल के लिए मैंने बहुत प्रयास किया कि सरकारी स्कूल है लोगों को लगता था कि सरकारी स्कूल में कुछ नहीं हो रहा है, पढ़ाई नहीं होती है, टीचर वहां पढ़ाते नहीं है, बच्चे कुछ नहीं कर पाते हैं लेकिन मैने जब से जॉइनिंग की है तब से मैं बहुत ऐसे प्रयास करें हैं। हमारा स्कूल और वहां के बच्चे बहुत आगे बढ़ गए हैं और हर साल वहां के बच्चे स्टेट खेलने जाते हैं। हर प्रतियोगिता में अपना झंडा बुलंद करते हैं बहुत सी ऐसी चीजे हैं जो हम लोगों ने लगातार स्कूल के लिए और बच्चों के लिए प्रयास किया। लोगों से सामुदायिक सहयोग के रूप में फर्नीचर अवेलवल करवाते थे, स्मार्ट क्लास के लिए कहते थे और स्कॉलरशिप भी हमने वहां शुरू की। लोगों को लगता था की टीचर्स बहुत मेहनत कर रहे हैं और उसी का परिणाम है। यह 5 साल बहुत अच्छे रहे और फाइनली कल मेरा किसी वजह से वहां से ट्रांसफर हुआ।
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बच्चों से विदाई मेरी जिंदगी का सबसे भावुक पल
उन्होंने बताया कि कल मैं जब बच्चों से विदा हो रहा था तो शायद वह पल मेरी जिंदगी का सबसे भावुक पल था और बहुत ही यादगार पल था क्योंकि उस फिलिंग्स को शायद मैं आपके सामने बता भी नहीं सकता कैसे मैं उनसे विदा हुआ। बच्चे रो रहे थे मैं रो रहा था ऐसा लगा जैसे किसी से सच्ची मोहब्बत करी और वह हमसे अलग हो रहा है। वह वाली फिलिंग्स आ रही थी कि एक शख्स जो काफी समय से जुड़ा हुआ था वह कैसे अलग हो सकता है। यह सब बच्चों का प्यार था और एक सर के प्रति भरोसा था की सर हमेशा हमारे साथ हैं, सर हमारी केयर करते हैं हमें पढ़ाते हैं। बच्चे यह फील कर रहे थे कि उनके प्रिय सर उनसे अलग हो रहे हैं और कोशिश कर रहे थे कि सर यहां से नहीं जाएं और इसी क्रम में वह शाम को हमारे घर भी आए और मेरी मम्मी से भी उन्होंने कहा की सर को वापस भेज दो। लगातार उनके गार्जियन भी मुझे कॉल कर रहे हैं आज भी लगातार उनसे बात हो रही है।
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बच्चे रो रहे हैं कि सर आप वापस आ जाओ तो यह पल मेरे लिए बहुत यादगार रहा और मुझे ऐसा फील हुआ कि मैंने बच्चों के लिए कुछ किया है कि बच्चे मेरे लिए इतना परेशान है लेकिन यह एक संसार का नियम है कहीं ना कहीं कुछ परिवर्तन होते हैं उसी क्रम में मैंने सोचा आज नहीं तो कल बच्चे ठीक हो जाएंगे। मैं अपने बच्चों को परिवार की तरह मानता था। मैं भी सरकारी स्कूल से ही पढ़ा हूं मैं हर वह चीज अपने बच्चों के साथ करता था जो मुझे अपने टाइम में नहीं मिल पाई। पहले स्कूलों में खेलने के संसाधन नहीं होते थे, स्मार्ट क्लास तो बहुत दूर की चीज होती थी तो मैं इन सब चीजों को सोचता था कि मैं बच्चों पर अप्लाई करूंगा तो मैं उनको अपना परिवार मानता था। शायद इसी वजह से बच्चे मुझसे ज्यादा अटैच हो गए थे, कुल मिलाकर एक ऐसा रिश्ता बन गया था जो टीचर और बच्चों में होता है उससे कहीं ज्यादा एक इमोशनल अटैचमेंट हो गया था और मैं कह सकता हूं कि मैं बहुत लकी इंसान हूं कि मेरे साथ बच्चे ऐसे जुड़े।


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Content Editor

Mamta Yadav

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